तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने इसराइल को लेकर क्या बदल लिया है अपना रवैया

BBC Hindi

बुधवार, 25 अक्टूबर 2023 (07:59 IST)
लीना शवाबकेह ,बीबीसी न्यूज़, अम्मान
 
गाजा पर जारी इसराइली हमलों के बीच एक ऐसी ख़बर आई जिसमें दावा किया गया कि सब्ज़ियों से लदा तुर्की का एक जहाज़ इसराइल की मदद के लिए रवाना हुआ है। 17 अक्टूबर, मंगलवार की शाम तुर्की की एक समाचार एजेंसी ने बयान छापा जिसमें तुर्की ने कहा कि उसने इसराइल की सहायता के लिए कोई जहाज़ नहीं भेजा।
 
तुर्की ने यह खंडन इसराइल से आ रही ख़बरों के बाद किया जिनमें कहा जा रहा था कि 'तुर्की से मदद लेकर आया एक जहाज़ हाइफ़ा बंदरगाह पर रुका है, जिस पर 4500 टन सब्जियां लदी हैं जिनमें से 80 फ़ीसदी टमाटर हैं।'
 
हिब्रू भाषा की समाचार वेबसाइटों में जिस जहाज़ के बारे में लिखा गया और जिसे लेकर तुर्की ने खंडन किया है, उसमें सब्जियां हों न हों, कुछ सवाल ज़रूर लदे थे।
 
जैसे कि गाजा में हो रहे घटनाक्रम पर तुर्की का रुख़ क्या है और इसराइली सरकार के साथ उसके रिश्तों में क्या बदलाव आया है? ये सवाल तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के बयानों के लहज़े से भी उठे थे, जिन्होंने गाजा में हालात बिगड़ने से रोकने के लिए इस क्षेत्र के नेताओं से संपर्क साधा था।
 
और इस बार उनके शब्द वैसे नहीं थे, जैसे वह पहले इसराइल को निशाने पर लेने और हमास के प्रति समर्थन दिखाने के लिए इस्तेमाल करते रहे हैं।
 
'तटस्थता' के मायने क्या?
इसराइल पर हमास के हमले के शुरुआती दौर से ही तुर्की के रवैये को 'तटस्ठ' कहा जा रहा था क्योंकि उसने इस जंग के लिए न तो इसराइल पर उंगली उठाई और न ही हमास पर।
 
शुरू से ही तुर्की आम लोगों की जान जाने की निंदा कर रहा है और 'संघर्ष को ख़त्म करने के लिए सभी पक्षों से संपर्क साधने' पर ज़ोर दे रहा है।
 
गाजा के बैप्टिस्ट अस्पताल में सैकड़ों लोगों के मारे जाने के बाद तुर्की के राष्ट्रपति ने कहा था, “इसराइली बमबारी एक असंतुलित जवाब और एक तरह से नरसंहार है।”
 
उन्होंने इसे 'जातीय संहार' और 'नरसंहार' बताते हुए इसराइल से गाजा पर हमले करने रोकने को कहा।
 
एक ओर जहां अर्दोआन ने इसराइल को फ़लस्तीनी ज़मीन पर हमले रोकने को कहा, वहीं दूसरी ओर फ़लस्तीनियों को भी कहा कि वे इसराइल में आम लोगों की रिहायशी बस्तियों के खिलाफ़ हिंसा रोक दें।
 
अर्दोआन ने हमास के हमले पर इसराइल की जवाबी कार्रवाई पर जो बयान दिए, उनमें हमास और इसराइल को बराबर रखा गया था।
 
जैसे कि उन्होंने कहा, “शांति के लिए जीत और हार के बजाय न्याय को तरजीह देने के सिद्धांत के मुताबिक़, हम सभी पक्षों से अपील करते हैं कि वे शांति स्थापित करने की अपनी ज़िम्मेदारी को समझें।”
 
भले ही अर्दोआन ने इसराइल की निंदा की हो मगर इस भाषण में उनकी प्रतिक्रिया पिछले युद्धों के दौरान दी गई प्रतिक्रिया जैसी नहीं थी।
 
पहले क्या होता था रुख़
2014 में गाजा संघर्ष में 2300 से ज़्यादा फ़लस्तीनियों की जान चली गई थी। उस समय अर्दोआन सिर्फ़ आलोचना करके नहीं रुके थे।
 
उन्होंने कहा था, “इसराइली हिटलर को कोसते हैं। वे होलोकॉस्ट (यहूदी नरसंहार) के कारण दिन रात हिटलर को कोसते हैं। लेकिन आज इस आतंकवादी देश ने गाजा में अपनी कार्रवाइयों से हिटलर के अत्याचारों को भी पीछे छोड़ दिया है।”
 
उन्होंने मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फ़तह अल-सीसी पर भी गाजा संघर्ष में इसराइल की मदद देने का आरोप लगाया था।
 
उसी साल अर्दोआन ने ‘मध्य पूर्व में शांति स्थापित करने के प्रयासों के लिए’ अमेरिकी यहूदी कांग्रेस नाम की संस्था से 2004 में मिले पुरस्कार को लौटा दिया था। 2014 में इस संस्था ने उन्हें 'इसराइल के ख़िलाफ़ ख़तरनाक प्रचार करने वाला शख़्स' क़रार दिया था।
 
... जब नेतन्याहू को कहा था 'आतंकवादी'
जब साल 2018 में गाजा में फिर संघर्ष छिड़ा तो अर्दोआन ने नेतन्याहू को 'आतंकवादी' कहा। उन्होंने तेल अवीव से अपने राजदूत को वापस बुलाते हुए तुर्की में इसराइली राजदूत को अवांछित व्यक्ति घोषित कर दिया था।
 
तुर्की के राजनीतिक विश्लेषक और जस्टिस एंड डिवेलपमेंट पार्टी के यूसुफ़ कातिबोगलु ने बीबीसी से कहा, “अर्दोआन के बयान संतुलित हैं। ये निष्पक्ष हैं और क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए दिए गए हैं। लेकिन ये ऐसे राजनीतिक बयान हैं जो इशारा करते हैं कि अर्दोआन मध्यस्थ की भूमिका निभाना चाहते हैं।”
 
वह कहते हैं, "तुर्की युद्ध की आग को बुझाना चाहता है क्योंकि इसकी लपटें पूरे क्षेत्र में फैल सकती हैं और उस स्थिति में विदेशी ताक़तें भी दख़ल देंगी। ऐसे में अर्दोआन अभी कुछ कहेंगे तो उससे मामला ख़राब ही होगी। इसलिए यह देखना अहम है कि आगे वह क्या करेंगे।"
 
यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेरिस में अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों के प्रोफ़ेसर खत्तार अबु दियाब ने बीबीसी को बताया, "2014 और 2021 के संघर्षों में अर्दोआन ने जिस तरह से फ़लस्तीनियों के पक्ष में आवाज़ उठाई थी, उसकी तुलना में उनका सुर इस बार बदला हुआ है। तुर्की-इसराइली रिश्तों और तुर्की के आर्थिक हालात के कारण ही अर्दोआन को तटस्थ रहने का विकल्प चुनना पड़ा है।"
 
विवाद से सुलह तक
इसी साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के इतर बिन्यामिन नेतन्याहू से मुलाक़ात के बाद अर्दोआन के इसराइली नीतियों की आलोचना करने के रुख में बदलाव आया है।
 
2018 में दोनों देशों के रिश्तों में तब खटास आ गई थी, जब अर्दोआन ने अमेरिका के अपने दूतावास को यरूशलम ले जाने और इसराइल के हमले में दर्जनों फलस्तीनियों की मौत को लेकर टिप्पणी की थी।
 
हालांकि, साल 2020 के बाद से तुर्की ने इस पूरे क्षेत्र के कई देशों से संबंध बेहतर किए हैं, जिनमें इसराइल भी शामिल है। इसी साल तुर्की ने इस्तान्बुल में हिरासत में लिए गए इसराइली जोड़े को रिहा करने का फ़ैसला लिया था। इससे भी दोनों देशों के रिश्ते में नए अध्याय की शुरुआत हुई थी।
 
बदले में इसराइल के राष्ट्रपति इसाक हर्ज़ोग ने तुर्की का दौरा किया। शायद अर्दोआन को अपने देश को हालिया आर्थिक संकट से बाहर निकालने के लिए यही रास्ता सही लगता है।
 
इससे पहले पश्चिमी देशों को अर्दोआन का रवैया दुश्मनी भरा लग रहा था। इससे ख़राब हुए माहौल का नुक़सान तुर्की की अर्थव्यवस्था को उठाना पड़ा था। इस आर्थिक संकट के बोझ के बीच अर्दोआन इसराइल समेत इस पूरे क्षेत्र के देशों से रिश्ते सुधारना चाहेंगे।
 
मध्यस्थता कर सकता है तुर्की
राजनीतिक विश्लेषक यूसुफ़ कातिबोगलु कहते हैं, “तुर्की ने दोनों (हमास-इसराइल) के बीच मध्यस्थ बनने की इच्छा जताना और ऐसा दिखाना शुरू किया है कि ऐसा सिर्फ वही कर सकता है।”
 
तुर्की के राष्ट्रपति कार्यालय के एक सूत्र ने उन ख़बरों को ख़ारिज किया, जिनमें कहा जा रहा है कि तुर्की भी इस संघर्ष में सैन्य दख़ल दे सकता है।
 
सूत्र ने बताया कि अर्दोआन और उनके विदेश मंत्री हकान फिदेन कूटनीतिक प्रयासों से युद्धविराम करवाने की कोशिश कर रहे हैं।
 
डॉक्टर खट्टर अबू दियाब ने कहा कि फ़लस्तीनी प्राधिकरण का तुर्की से अच्छा रिश्ता है और हमास का भी संपर्क है। ऐसे में तुर्की एक अच्छा मध्यस्थ बन सकता है।
 
तुर्की को हमास एक महत्वपूर्ण सहयोगी मानता है। हमास के कई नेता दशकों से वहां रह रहे हैं। इसके राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख इस्माइल हानिए और विदेशी मामले संभालने वाले ख़ालिद मेशाल का इस्तान्बुल आना-जाना लगा रहता है।
 
डॉक्टर खट्टर अबू दियाब को लगता है कि दोनों देशों के अभी काफ़ी हद तक सामान्य हो चुके हैं लेकिन कुछ बिगड़ा तो हालात बेक़ाबू हो सकते हैं।

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