मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35 A के ख़ात्मे
और इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद अब विधानसभा सीटों के परिसीमन की तैयारी में जुटी है। इसकी प्रक्रिया कुछ सप्ताह बाद शुरू होगी और इसकी घोषणा जल्द ही हो सकती है।
इस सिलसिले में गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में हुई अब तक की बैठकों में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, गृह सचिव राजीव गौबा, अतिरिक्त सचिव (कश्मीर) ज्ञानेश कुमार, रॉ और आईबी प्रमुखों, अर्धसैनिक बलों के महानिदेशकों समेत आला अफ़सर शामिल हुए हैं।
चुनाव आयोग ने बीबीसी को बताया कि उसकी तरफ़ से तैयारी पूरी है और उसे केवल केंद्र सरकार के आदेश का इंतज़ार है। गृह मंत्रालय के अनुसार जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को 31 अक्टूबर से लागू किया जाएगा।
जम्मू-कश्मीर में इन दिनों राष्ट्रपति शासन है। नए चुनाव से पहले परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होनी है। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावी क्षेत्रों के पुनर्गठन की मांग वर्षों से की जा रही है।
ख़ासतौर से जम्मू में भारतीय जनता पार्टी ने हमेशा पुरज़ोर वकालत की है, जहां इसकी लोकप्रियता दूसरी पार्टियों से कहीं अधिक है। इस मांग के पीछे वो शिकायत है, जिसमें अक्सर ये कहा जाता है कि राज्य की विधानसभा में जम्मू क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कश्मीर घाटी की तुलना में कम है। जम्मू की दूसरी शिकायत यह है कि कश्मीर घाटी की तुलना में जम्मू डिवीज़न में विकास का काम कम हुआ है।
दूसरी तरफ़ कश्मीर घाटी की पार्टियों को अगर अनुच्छेद 370 के ख़ारिज करने से पहला बड़ा झटका लगा है तो परिसीमन के नतीजे इन पार्टियों के लिए दूसरा बड़ा झटका साबित हो सकते हैं।
फ़िलहाल कश्मीर घाटी के लगभग सभी बड़े नेता नज़रबंद हैं लेकिन 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 के हटाए जाने की घोषणा से एक दिन पहले श्रीनगर में हुई ऑल पार्टी बैठक में कश्मीरी नेताओं ने केंद्र सरकार से अपील की थी कि जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे के साथ छेड़खानी न की जाए।
बीजेपी का सरकार बनाने का सपना
बाद में कुछ ज़िले स्तर के नेताओं ने बीबीसी से कहा था कि बीजेपी जम्मू और कश्मीर के बीच फूट डालने की कोशिश कर रही है। आमतौर पर ये समझा जा रहा है कि परिसीमन के बाद जम्मू क्षेत्र की सीटें बढ़ेंगीं और इनकी संख्या कश्मीर घाटी की सीटों से अधिक हो जाएंगी। इस तरह जम्मू की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के लिए सरकार बनाना आसान हो जाएगा।
पिछले विधानसभा चुनाव (2014) में जम्मू क्षेत्र की 37 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 25 पर जीत हासिल की थी। पांच कांग्रेस और कश्मीर घाटी की दो बड़ी पार्टियों, यानी महबूबा मुफ़्ती की पीडीपी और उमर अब्दुल्लाह की नेशनल कॉन्फ्रेंस को तीन-तीन सीटें मिली थीं। एक सीट निर्दलीय उमीदवार के नाम गई थी।
उधर कश्मीर घाटी की 46 विधानसभा चुनाव क्षेत्रों में से पीडीपी को 28 सीटें मिली थीं जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 15 पर जीत हासिल की थी और कांग्रेस ने 12 पर। राज्य की 6 लोकसभा सीटों में से बीजेपी और पीडीपी ने तीन-तीन सीटें जीती थीं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कश्मीर घाटी की 46 विधानसभा सीटें हैं और तीन संसदीय क्षेत्र हैं। जम्मू में 37 विधानसभा और दो लोकसभा सीटें हैं। एक सीट लद्दाख़ के लिए है। सैद्धांतिक रूप से, पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के लिए 24 विधानसभा सीटें निर्धारित हैं।
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के अनुसार अब जम्मू-कश्मीर में कुल 114 विधानसभा क्षेत्र होंगे, जिनमें पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के लिए 24 सीटें भी शामिल हैं। जम्मू-कश्मीर में आख़िरी बार 1995 में परिसीमन किया गया था। देशभर में आख़िरी परिसीमन 2002 में हुआ था। इसके लिए गठित परिसीमन आयोग के सदस्यों में भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी शामिल थे।
उन्होंने बीबीसी से एक बातचीत में कहा कि जम्मू-कश्मीर में चुनावी क्षेत्रों की दोबारा परिसीमन के लिए सरकार चुनाव आयोग को आदेश दे सकती है जो परिसीमन आयोग की तरह से काम करेगा।
उनके अनुसार, "परिसीमन आयोग का गठन राष्ट्र भर में परिसीमन के समय होता है। उन्होंने 2014 में आंध्रप्रदेश से तेलंगाना के अलग होने पर हुई परिसीमन की प्रक्रिया हवाला देते हुए कहा कि ये काम चुनाव आयोग ने ही किया था।
परिसीमन 2011 की जनगणना के अंतर्गत की जाएगी और इस जनगणना के अनुसार, जम्मू डिवीजन की आबादी 54 लाख है और ये डिवीजन 26,200 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। कश्मीर घाटी की जनसंख्या 69 लाख है और इसका क्षेत्रफल 15,900 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसका मतलब यह है कि क्षेत्रफल में जम्मू बड़ा है और घाटी इससे कहीं छोटी, लेकिन आबादी के हिसाब से कश्मीर घाटी जम्मू क्षेत्र से कहीं बड़ी है।
कैसे होगा परिसीमन
जम्मू की 37 विधानसभा सीटों में से सात अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं जबकि कश्मीर घाटी की 46 सीटों में से एक भी सीट अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित नहीं है।
इसलिए जम्मू वालों की शिकायत यह रही है कि हर बार घाटी की सीटें अधिक जीतने के कारण मुख्यमंत्री घाटी का ही होता है, लेकिन जम्मू-स्थित कश्मीर टाइम्स अख़बार की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन के विचार में जम्मू के ख़िलाफ़ भेद-भाव के ठोस सबूत नहीं हैं।
वो कहती हैं, "जम्मू में एक अरसे से यहां के लोगों के ख़िलाफ़ भेदभाव की फीलिंग रही है, कश्मीर की लीडरशिप हावी रही है जिन्होंने विकास कश्मीर में अधिक किया। यह एक ऐसी धारणा है जिसके ठोस सबूत देना मुश्किल है। बीजेपी का तर्क यह है कि आगामी परिसीमन में केवल आबादी नहीं बल्कि क्षेत्रफल का भी ध्यान देना होगा।
बीजेपी सूत्रों का कहना है कि औसतन जम्मू की एक विधानसभा सीट कश्मीर घाटी की एक सीट से क्षेत्रफल में काफ़ी बड़ी होती है जिसके कारण उस सीट के विधायक को अपने क्षेत्र की सेवा करने में अधिक मेहनत लगती है।
जम्मू और कश्मीर में विधानसभा का गणित ऐसा है कि सभी परिस्थितियों में, कश्मीर घाटी में केंद्रित पार्टियां प्रमुख हैं, ताकि जम्मू और लद्दाख़ को कभी उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिले। यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री कश्मीर घाटी से ही आते रहे हैं।
सूत्रों की मानें तो अगर परिसीमन होता है तो जम्मू में विधानसभा की सीटें बढ़ेंगी और अगर सीटें बढ़ती हैं तो अब्दुल्लाह और मुफ्ती परिवार की राजनीति लगभग समाप्त हो सकती है। साथ ही अलगाववादी शक्तियां भी कमज़ोर होंगी।
लेकिन जम्मू-स्थित पैंथर्स पार्टी के संस्थापक भीम सिंह के अनुसार जम्मू डिवीजन में बीजेपी से अलग राय रखने वाले नेताओं की कमी नहीं है मगर फ़िलहाल उन्हें केंद्र सरकार ने हिरासत में ले रखा हुआ है।
वे कहते हैं कि कश्मीर घाटी के इलावा जम्मू में भी कई नेताओं को नज़र बंद किया गया है या हिरासत में ले लिया गया है। हमारी पैंथर्स पार्टी के अध्यक्ष को जेल में बंद कर रखा है। हम से कई नेताओं की राय बीजेपी से अलग है लेकिन अगर हम इसके खिलाफ आवाज़ उठाए तो सरकार लोगों को नज़रबंद कर देती है।
लेकिन क्या जब परिसीमन शुरू होगी तो उनकी पार्टी इसे मान्यता देगी? उन्होंने इसका जवाब सीधा नहीं दिया, "31 अक्टूबर तो अभी बहुत दूर है" कश्मीर टाइम्स अख़बार की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन के अनुसार बीजेपी विपक्ष को सियासी स्पेस नहीं देना चाहती है। वे कहती हैं, "बीजेपी चाहती है कि जम्मू में ज़्यादा सीटें हों ताकि उसी की सरकार यहां सत्ता पर आए।
बीजेपी की नज़रों में घाटी के नेता अब तक हावी रहे हैं। एक नेता ने कहा कि "अब समय है जम्मू और कश्मीर दोनों क्षेत्रों के एक संतुलित विकास के दौर के शुरू होने का।
प्रदेश के नेता इस उम्मीद में भी बैठे हैं कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दोबारा दिया जा सकता है। यह वादा खुद प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त के अपने भाषण में किया था।