21 सितंबर 2023, भारतीय संसद में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के सांसद रमेश बिधूड़ी ने बहुजन समाज पार्टी के सांसद कुंवर दानिश अली के ख़िलाफ़ अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया था। बिधूड़ी ने उनके समुदाय की तरफ़ इशारा करते हुए आपत्तिजनक बातें कहीं। ये सदन की कार्यवाही के दौरान प्रसारित भी हुआ।
दानिश अली ने इस मामले की संसद की विशेषाधिकार समिति से शिकायत की है। हालांकि कुंवर दानिश अली ने बीबीसी से कहा है कि अभी तक उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
विशेषाधिकार समिति ने गुरुवार को इस मामले पर पहली सुनवाई की है। मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि रमेश बिधूड़ी ने संसदीय समिति के समक्ष अपनी भाषा पर अफ़सोस ज़ाहिर किया है। बीबीसी ने इसकी पुष्टि नहीं की है।
महुआ मोइत्रा को संसद की एथिक्स समिति की सिफ़ारिश के बाद सदन से निष्कासित किया गया
महुआ पर सवाल पूछने के बदले पैसे लेने के आरोप हैं, जो उन्होंने ख़ारिज किए हैं
बसपा सांसद दानिश अली के लिए बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी ने सदन में अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया
दानिश अली ने विशेषाधिकार समिति से शिकायत की लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई
महुआ मोइत्रा के निष्कासन पर राजनीति
वहीं गुरुवार को संसद में एथिक्स समिति की रिपोर्ट के सदन में पेश होने के बाद तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा को लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया।
महुआ मोइत्रा पर सदन में सवाल पूछने के बदले पैसे लेने के आरोप हैं। मोइत्रा ने बार-बार इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज किया है।
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने महुआ मोइत्रा की शिकायत संसदीय समिति से की थी, जिसकी सिफ़ारिश के बाद महुआ को निष्कासित कर दिया गया है।
विपक्ष ने जहां इसे बदले की भावना से की गई कार्रवाई बताया है वहीं सरकार का कहना है कि सबकुछ नियमों के तहत हुआ है।
महुआ मोइत्रा के निष्कासन पर बीजेपी नेता प्रह्लाद जोशी ने कहा है, “उनसे सवाल के बदले पैसे लेने के बारे में पूछा गया था। उन्होंने स्वीकार किया है कि गिफ़्ट लिए। अब और क्या सबूत चाहिए।”
वहीं पश्चिम बंगाल में बीजेपी अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा है, “महुआ को एथिक्स समिति के सामने बुलाया गया था, अगर उन्हें जवाब देना था तो वहां देतीं।”
मामला क्या है?
14 अक्तूबर को अधिवक्ता जय अनंत देहाद्राई, जो महुआ के पूर्व मित्र भी हैं, ने सीबीआई को एक शिकायत दी थी और इसकी कॉपी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को भी भेज दी थी।
इस शिकायत के बाद निशिकांत दुबे ने स्पीकर को पत्र लिखकर महुआ को तुरंत निष्कासित करने की मांग की थी। दुबे ने महुआ पर कारोबारी हीरानंदानी से रिश्वत लेकर कारोबारी गौतम अदानी के ख़िलाफ़ सदन में सवाल पूछने के आरोप लगाये थे।
सदन में दानिश अली को लेकर विवाद 21 सितंबर को शुरू हुआ था और महुआ को लेकर अक्तूबर के दूसरे सप्ताह में। महुआ के मामले में कार्रवाई करते हुए जहां उन्हें निष्कासित कर दिया गया है, वहीं दानिश अली को गाली दिए जाने का मामला लंबित हैं।
दानिश अली ने बीबीसी से कहा, “मेरे मामले में अभी तक कुछ हुआ नहीं है, कुछ होगा तो आगे सामने आएगा। आज एक सत्ता पक्ष की सासंद कह रहीं थीं कि महुआ मोइत्रा का लॉग-इन कहीं और से हुआ और इससे संसद की मर्यादा भंग हुई। मैंने इस पर पूछा कि 21 सितंबर को जब रमेश बिधूड़ी ने एक पूरे समुदाय को संसद में गाली दी, एक चुने हुए सांसद के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया, क्या इससे संसद की मर्यादा भंग नहीं हुई?”
हालांकि, प्रिविलेज समिति ने गुरुवार को इस मामले में एक सुनवाई की है। दानिश अली कहते हैं, “अब देखना है कि उसमें क्या निकलता है।”
दानिश अली मानते हैं कि महुआ मोइत्रा का निष्कासन सदन में हुआ अन्याय है।
वो कहते हैं, “बहुमत का मतलब ये नहीं है कि संसदीय समिति या सदन सिर्फ़ बहुमत के आधार पर किसी को भी फांसी पर लटका दे। आज महात्मा गांधी और बीआर अंबेडकर की आत्मा रो रही होगी। उन्होंने कभी सोचा नहीं होगा कि विपक्ष की एक मुखर सांसद को इस तरह से सदन से निष्कासित कर दिया जाएगा। ना कोई क्रॉस एग्ज़ामिनेशन हुआ, ना विस्तृत जांच हुई, सिर्फ़ भाजपा सांसद की एक शिकायत और एक शपथ पत्र के आधार पर एक संसद की सदस्यता समाप्त कर दी गई। जबकि शपथ पत्र देने वाले ने ना कोई मुक़दमा किया ना पैसे देने के कोई आरोप लगाये। ये सरासर ग़लत हुआ है।”
कुंवर दानिश अली का सवाल
अपने मामले पर कार्रवाई न होने पर दानिश अली कहते हैं, “जहां तक मेरे मामले का सवाल है, इसमें कार्रवाई करने के लिए कोई संवैधानिक चुनौती नहीं है बल्कि सरकार की मंशा नहीं है। भाजपा अपनी ताक़त का दुरुपयोग कर रही है। मैं एथिक्स समिति में था, जिस तरह के भद्दे सवाल महुआ से पूछे जा रहे थे, उसके विरोध में हम पांच सांसदों ने वॉकआउट किया।''
वो कहते हैं, ''एक महिला सांसद को बेआबरू किया जा रहा था और जब हमने उसका विरोध किया तो संसदीय समिति ने हमारे ख़िलाफ़ ही सिफ़ारिश कर दी कि हमारा आचरण ठीक नहीं था। हम एक महिला सांसद को बेआबरू होने से बचा रहे थे, तब हमारा आचरण ठीक नहीं था लेकिन जब रमेश बिधूड़ी ने एक सांसद को, उसके समुदाय को भरी सभा में गाली दी, तब भाजपा के अनुसार उसका आचरण सही था। ये सत्ता पक्ष के दोहरे मानदंडों को दर्शाता है।”
दानिश अली मानते हैं कि सरकार की मंशा बिधूड़ी पर कार्रवाई करने की नहीं है।
वो कहते हैं, “मैं यही कहूंगा कि सरकार रमेश बिधूड़ी पर कार्रवाई करना चाहती तो कर देती, सरकार की मंशा ही नहीं है। सदन अगर चाहता तो जिस दिन की घटना थी उसी दिन कार्रवाई कर दी गई होती। सरकार ने चाहा होता तो अब तक बिधूड़ी को भी दंडित कर दिया गया होता। मैं उनके निष्कासन की मांग करता रहा हूं, आगे भी करूंगा।”
रमेश बिधूड़ी का क्या होगा?
नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में अब तक लोकसभा के 93 और राज्यसभा के 48 सांसदों को अलग-अलग मौक़ों पर अलग-अलग आरोपों में रिकॉर्ड निलंबन किया गया है, जबकि भाजपा के किसी भी सांसद के ख़िलाफ़ निलंबन की कार्रवाई नहीं की गई।
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री महुआ मोइत्रा पर कार्रवाई को लोकतंत्र के लिए काला दिन मानते हैं।
हेमंत अत्री कहते हैं कि कुंवर दानिश अली और महुआ मोइत्रा के मामलों में सरकार का रवैया दर्शाता है कि अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग मानदंड हैं।
अत्री कहते हैं, “महुआ मेइत्रा और दानिश अली को गाली देने के रमेश बिधूड़ी के मामले में संसद की कार्रवाई मौजूदा संसद व सरकार के पक्षपातपूर्ण एवं विरोधाभासी रवैए का मुँह बोलती प्रमाण है। बिधूड़ी द्वारा संसद में प्रयुक्त अपशब्दों के बाद तो किसी जाँच तक की भी ज़रूरत नहीं थी। उनकी भाषा संसद की हर मर्यादा, क़ानून एवं व्यवहार का घोर उल्लंघन थी। हर चीज कैमरे के रिकॉर्ड में थी लेकिन पर्दे के पीछे एक माफ़ी के नाम पर इतने गंभीर मामले को निपटा देना मोदी सरकार के भेदभावपूर्ण और विपक्षी प्रति बदले की भावना को दर्शाता है।”
संसदीय समिति ने बिधूड़ी को नोटिस दिया है और गुरुवार को सुनवाई भी है। पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं कि ये सब सिर्फ़ प्रक्रिया का पालन करने के लिए किया गया है, अगर सरकार की मंशा बिधूड़ी को दंडित करने की होती तो अब तक कर दिया गया होता।
महुआ मोइत्रा के निष्कासन पर सवाल उठाते हुए अत्री कहते हैं, “महुआ पर आरोप है कि उन्होंने अपना लॉग इन पासवर्ड शेयर किया। महुआ ने जब ऐसा किया तब ऐसे कोई नियम नहीं थे जो उन्हें ऐसा करने से रोकते। अब भले ही दो दिन पहले इससे जुड़े नियम बन गए हों। ऐसे में ये नहीं कहा जाता कि महुआ ने किसी नियम का उल्लंघन किया।”
अत्री कहते हैं, “महुआ पर जो आरोप हैं उनका आधार कारोबारी हीरानंदानी का शपथ पत्र है। लेकिन इस शपथ पत्र में भी हीरानंदानी ने महुआ पर पैसे लेने के आरोप नहीं लगाए हैं। इसमें कहीं भी पैसे देने का ज़िक्र नहीं है। संसदीय समिति ने हीरानंदानी के शपथ पत्र को ही अंतिम सत्य मान लिया। ना उनसे सवाल किए गए और ना ही उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया गया। समिति ने अपनी सिफारिश में स्वयं कहा है कि इन आरोपों की जांच किए जाने की ज़रूरत है। जिन आरोपों की अभी जांच की ज़रूरत है, उनके आधार पर ही इतना बड़ा निर्णय ले लिया गया।”
“सवाल ये है कि क्या जांच करना एथिक्स समिति की ज़िम्मेदारी नहीं थी? अगर एथिक्स समिति की ज़िम्मेदारी थी तो क्या उसने इन आरोपों की जांच की?”
अत्री कहते हैं, “दानिश अली के मामले में जो भी आरोप हैं वो कैमरे पर, सबके सामने हैं, लेकिन सदन उस पर नरम है और महुआ, जिन पर आरोप सिद्ध भी नहीं हुए हैं, उन पर सख़्त है। ये सरकार के दोहरे रवैये को दिखाता है और उसकी मंशा पर गंभीर सवाल खड़े करता है।”