कश्मीर, अयोध्या के बाद मोदी का अगला निशाना समान नागरिक संहिता?
बुधवार, 13 नवंबर 2019 (09:26 IST)
- नवीन नेगी
मोदी- 2.0 में अभी तक दो तारीख़ें बहुत अहमियत के साथ दर्ज हुई हैं। ये तारीखें हैं 5 अगस्त और 9 नवंबर। 5 अगस्त को भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांटने का फ़ैसला किया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रमुख प्रावधानों को भी निष्प्रभावी कर दिया।
इसके बाद 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने बरसों पुराने और भारतीय इतिहास के सबसे विवादित मामलों में से एक बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद पर अपना फ़ैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में विवादित भूमि हिंदू पक्ष को देने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के साथ ही अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया।
राजनीतिक हलकों में हलचल है कि अब मोदी सरकार के एजेंडे में कौन-सा नया लक्ष्य है। अब वह अपने किस बड़े चुनावी वादे को पूरा करने के लिए क़ानून बना सकती है।
कौनसा नया लक्ष्य?
कई राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मोदी सरकार के अगले एजेंडे में सबसे आगे समान नागरिक संहिता से जुड़ा बिल होगा। इसके अलावा पूरे देश में एनआरसी लागू करना और नागरिकता क़ानून बनाना भी बीजेपी सरकार के प्रमुख एजेंडो में शामिल है।
बीजेपी की राजनीति पर क़रीबी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं कि बीजेपी के तीन प्रमुख एजेंडे थे अयोध्या, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता। इनमें से दो पर काम लगभग हो चुका है और अब वह समान नागरिक संहिता पर अपना काम शुरू करेगी।
लेकिन प्रदीप सिंह मानते हैं कि समान नागरिक संहिता से भी पहले सरकार एनआरसी और नागरिकता बिल पर काम करना चाहेगी। वो कहते हैं- आगामी शीतकालीन सत्र में सरकार एनआरसी और नागरिकता बिल पेश कर सकती है क्योंकि इस मुद्दे पर सरकार पहले ही काफ़ी काम कर चुकी है और पार्टी इन दोनों ही मुद्दों पर काफ़ी गंभीर भी है।
प्रदीप सिंह बताते हैं कि इसके बाद मोदी सरकार समान नागरिक संहिता के प्रति भी गंभीर है लेकिन उसके लिए उन्हें जनमानस की सहमति लेनी पड़ेगी।
क्या है समान नागरिक संहिता?
समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नागरिक क़ानून का होना, फिर चाहे वो किसी भी धर्म या संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक़ और ज़मीन-जायदाद के बंटवारे जैसे मामलों में भी सभी धर्मों के लिए एक ही क़ानून लागू होने की बात है।
मौजूदा वक़्त में भारतीय संविधान के तहत क़ानून को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा गया है। दीवानी (सिविल) और फ़ौजदारी (क्रिमिनल)। शादी, संपत्ति, उत्तराधिकार यानी परिवार से संबंधित व्यक्ति से जुड़े मामलों के लिए क़ानून को सिविल क़ानून कहा जाता है।
अनुच्छेद 370 से भी मुश्किल चुनौती समान नागरिक संहिता?
बीजेपी के महासचिव राम माधव ने कुछ महीने पहले ही कहा था कि मोदी सरकार समान नागरिक संहिता लाने के लिए प्रतिबद्ध है। इतना ही नहीं, मौजूदा लोकसभा के पहले सत्र में ही बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे देश में यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड लागू करने की मांग उठा चुके हैं।
हालांकि प्रदीप सिंह का मानना है कि इसे लागू करना इतना आसान भी नहीं होगा। वो बताते हैं कि इस बिल को बनाने में सबसे बड़ी दिक्कत यह आएगी कि शादी और संपत्ति जैसे मामलों में अलग-अलग धर्मों अपने-अपने नियम क़ानून हैं। उन सभी नियमों को एक करने में कई समुदायों को नुकसान हो सकता है कुछ को फ़ायदा भी हो सकता है। ऐसे में सभी को बराबरी पर लाने के लिए समायोजन करना बहुत मुश्किल होगा।
प्रदीप सिंह मानते हैं कि सरकार के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 ख़त्म करने से भी ज़्यादा मुश्किल चुनौती होगी। वो बताते हैं- जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना एक तरह से प्रशासनिक काम था जिसे सरकार ने अपने तरीक़े से कर दिया लेकिन इस मामले में अलग-अलग धर्मों की मान्यताएं जुड़ी हैं इसलिए उन्हें ख़त्म करना इतना आसान नहीं होगा।
समान नागरिक संहिता में क़ानूनी पेंच?
संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्छेद 44 के तहत राज्य (केंद्र और राज्य दोनों) की ज़िम्मेदारी बताया गया है। इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता कहते हैं, यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड की बात करें तो उसमें दो पहलू आते हैं। पहला सभी धर्मों के बीच एक जैसा क़ानून। दूसरा उन धर्मों के सभी समुदायों के बीच भी एक जैसा क़ानून।
वो कहते हैं, यह जटिल प्रक्रिया है जिसके लिए संविधान के डायरेक्टिव प्रिंसिपल (नीति निर्देशक तत्व) में ज़िक्र किया गया है कि आने वाले वक़्त में हम समान नागरिक संहिता की दिशा में प्रयास करेंगे। लेकिन उस दिशा में आज तक कोई बहुत बड़ा क़दम नहीं उठाया गया है।
विराग कहते हैं, यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड को हिंदू और मुसलमानों से ही जोड़ा जाता है। एक तरफ़ जहां मुसलमानों की शादी और उत्तराधिकार के अलग तरह के प्रावधान हैं। वहीं हिंदू के भीतर भी कई समुदाय हैं जिसमें कई तरह के अंर्तद्वंद्व हैं।
मुसलमानों या ईसाइयों की आपत्ति की बात होती है लेकिन भारत में कई तरह के समुदाय, कई तरह के वर्ग, परंपराएं हैं। लिहाज़ा एक तरह के सिविल लॉ को लागू करने पर किसी भी समुदाय के रस्मो-रिवाज में अगर एक भी गड़बड़ी होगी तो उसको आपत्ति होगी।
क्या पूरे देश में लागू हो सकता है एनआरसी?
भाजपा सरकार ने उत्तर पूर्वी राज्य असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी लागू कर दी है। अब इस तरह की मांग उठ रही है कि सरकार पूरे देश में एनआरसी लागू कर सकती है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी अपने राज्य में एनआरसी लागू करने की बात कह चुके हैं।
क्या एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जा सकता है, इस पर प्रदीप सिंह कहते हैं, पूरे देश में एनआरसी लागू करने में सरकार को कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन सरकार का कहना है कि उन्होंने असम में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एनआरसी लागू किया जबकि पूरे देश में इसे लागू करने से पहले वह नागरिकता बिल लाना चाहते हैं।
क्या है नागरिकता संशोधन बिल?
नागरिकता संशोधन विधेयक के तहत अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म को मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। लेकिन पड़ोसी देशों के मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोगों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है। विधेयक में प्रावधान है कि ग़ैर-मुस्लिम समुदायों के लोग अगर भारत में छह साल गुज़ार लेते हैं तो वे आसानी से नागरिकता हासिल कर पाएंगे।
प्रदीप सिंह बताते हैं कि मौजूदा सरकार के अनुसार हिंदुओं के लिए भारत के अलावा कोई दूसरा देश नहीं है। वो कहते हैं, सरकार मानती है कि अगर किसी दूसरे देश में रहने वाले हिंदुओं के साथ अत्याचार होता है और उन्हें वह देश छोड़ना पड़े तो इस हालत में उनके लिए एकमात्र देश भारत ही है। वे भारत ही आएंगे। ऐसे लोगों को अगर वो भारत की नागरिकता चाहते हैं और उसके लिए आवेदन करते हैं कि उन्हें भारत की नागरिकता दे देनी चाहिए।
फिर सरकार इस मामले में मुस्लिमों को अलग क्यों कर देती है। इसके जवाब में प्रदीप सिंह बताते हैं कि बीजेपी और सरकार में शामिल उनके सहयोगियों के अनुसार मुस्लिम कभी भी उत्पीड़न की वजह से दूसरे देशों से भारत में नहीं आते हैं, वो दूसरी वजहों से ही भारत में आते हैं।
2024 से पहले फाइनल एजेंडा
मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में तीन तलाक़ पर भी क़ानून बना चुकी है। वह एनआईए, आरटीआई, यूएपीए जैसे बिल भी पहले संसदीय सत्र में पास करवा चुकी है।
मोदी सरकार अपने एजेंडे में शामिल प्रमुख मुद्दों को तेज़ी से ख़त्म करती हुई दिख रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वह समान नागरिक संहिता को अभी पूरा करना चाहेगी या फिर अगले लोकसभा चुनावों में अपने वोट बैंक को लुभाने के लिए एक मुद्दे को बनाए रखेगी।
इस पर वरिष्ठ पत्रकार शेखर अय्यर का मानना है कि फिलहाल सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर अर्थव्यवस्था की सुस्ती और बेरोज़गारी के बढ़ते आंकड़ें हैं। शेखर अय्यर कहते हैं- अनुच्छेद 370 को सरकार की तरफ़ से उठाया गया क़दम कह सकते हैं लेकिन अयोध्या मामला तो सुप्रीम कोर्ट से पूरा हुआ है। इसलिए फ़िलहाल सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था की ख़राब हालत को सुधारना और बेरोज़गारी के आंकड़ों को ठीक करना।