चीन में ब्रिक्स सम्मेलन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी म्यांमार पहुंचे हैं। म्यांमार को भारत के लिए रणनीतिक रूप के काफ़ी महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके साथ ही म्यांमार को दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत के लिए प्रवेश द्वार के तौर पर देखा जाता है।
भारत और म्यांमार के हमेशा से संबंध अच्छे रहे हैं, लेकिन 1990 के दशक के बाद म्यांमार कई मामलों में चीन के क़रीब आता गया। भारत के बारे में कहा जाता है कि वह हरकत में तब आता है जब चीन ने अपना पांव पसार लिया होता है। ऐसा तब है जब भारत अपनी विदेश नीति में 'लुक ईस्ट पॉलिसी' की बात करता है।
भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि जब म्यांमार में सैन्य शासन स्थापित हुआ तो भारत ने कड़ा रुख अपनाते हुए म्यांमार से संबंध ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
चीन म्यांमार के क़रीब कब आया?
उन्होंने कहा कि इसी दौरान चीन ने म्यांमार में तेज़ी से पांव पसारा। सिब्बल कहते हैं, ''म्यांमार हमारा पड़ोसी देश है और वह बिम्सटेक का सदस्य है। म्यांमार को सार्क का सदस्य बनाने के लिए भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन इस पर कुछ हो नहीं पाया। जब लुक ईस्ट पॉलिसी को शुरू किया गया तभी कहा गया कि म्यांमार के साथ हमारे संबंध अच्छे होने चाहिए। जब वहां सैन्य शासक आए और आंग सान सू ची को बेदखल किया गया तो भारत में भी प्रतिक्रिया हुई। वहां की सैन्य सरकार से हमारे संबंध ख़राब हुए और उसी वक़्त चीन ने अपने पांव पसारे।''
कंवल सिब्बल कहते हैं, ''चीन ने वहां काफ़ी मिलिट्री मदद मुहैया कराई। इसके बाद भारत को रुख बदलना पड़ा और वहां की सैन्य सरकार के साथ भी हमने काम करना शुरू किया। भारत के लिए म्यांमार काफ़ी अहम है। एक तो हमारा वह पड़ोसी देश है। दूसरा पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए वह हमारे के लिए ख़ास है। इन राज्यों में उग्रवादियों को म्यांमार से काफ़ी मदद मिलती रही है। ऐसे में हमारे लिए यह बेहद अहम था कि हम वहां की सरकार साथ मिलकर काम करें।''
कारोबार
म्यांमार में चीन के बढ़ते प्रभाव को क्या भारत कम कर पाएगा? फॉर्चुन इंडिया से इंडो-म्यांमार चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ के उपाध्यक्ष अशोक मुरारका ने कहा, ''म्यांमार में भारत की परियोजनाओं की रफ़्तार काफ़ी धीमी है। इस वजह से चीन का प्रभाव वहां लगातार बढ़ रहा है। भारत के मुक़ाबले चीन वहां अपने प्रोजेक्ट्स को काफ़ी तेजी से पूरा कर रहा है।''
सिब्बल भी इस बात को मानते हैं कि जब चीन ने वहां सैन्य आपूर्ति और विद्रोही ग्रुपों की मदद करनी शुरू की तो उसकी मौजूदगी वहां बढ़ती गई। सिब्बल ने कहा कि चीन ने म्यांमार में जमकर निवेश किया है। मुरारका का कहना है कि भारत अपनी परियोजनाओं को पूरा करने में जितनी देरी करेगा, उसके हाथ से मौक़े निकलते जाएंगे। उन्होंने कहा कि चीन का वहां के स्थानीय समूहों और सरकार से काफ़ी अच्छे संबंध हैं।
कंवल सिब्बल ने कहा कि म्यांमार में भारत की छवि है कि वह वादा तो करता है लेकिन पूरा नहीं कर पाता है। म्यांमार में भारत का एक प्रोजेक्ट वर्षों से चल रहा है जो कि अब तक पूरा नहीं हो पाया है। कलादान मल्टीमॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट के तहत मिज़ोरम के ज़रिए कोलकाता को समुद्र और नदी से म्यांमार को जोड़ने की योजना है।
शुरू में भारत ने इसे पूरा करने का लक्ष्य साल 2013 में रखा था। बाद में इसे 2015 किया गया और अब इसकी समय सीमा 2019 रखी गई है। इस प्रोजेक्ट के बारे में कहा जा रहा है कि फ़ंड की भारी कमी है। शुरू में इस प्रोजेक्ट की लागत 600 करोड़ रखी गई जिसे अब संशोधित कर 3000 करोड़ का कर दिया गया है।
कंवल सिब्बल का कहना है कि कई परियोजनाओं की रफ़्तार काफ़ी धीमी है। उन्होंने कहा कि इंडो-म्यांमार-थाईलैंड हाइवे प्रोजेक्ट भी फ़ंड की समस्या से जूझ रहा है। इसे 2015 में पूरा होना था जो अब 2020 तक खिसक गया है। सिब्बल मानते हैं कि वित्तीय रूप से चीन जितना मजबूत है उतना भारत नहीं है। ऐसे में चीन इस मामले में भारत से आगे निकल जाता है।
जेएनयू में दक्षिण एशियाई स्टडी सेंटर की प्रोफ़ेसर सबिता पांडे कहती हैं कि म्यांमार के साथ चीन और भारत के व्यापार के आकार में काफ़ी फ़र्क़ है। फॉर्चुन की रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2017 में ये व्यापार 2।8 अरब डॉलर का रहा। इसमें 6 फ़ीसदी की वार्षिक वृद्धि है। म्यांमार में भारत की कंपनी टाटा मोटर्स, एस्कॉर्ट्स, सोनालिका ट्रैक्टर जैसी कंपनियों के प्लांट हैं। म्यांमार से गैस निकासी के मामले में भारत चीन से पूरी तरह से पिछड़ गया है। म्यांमार की 80 फ़ीसदी गैस चीन जा रही है।
कंवल सिब्बल कहते हैं, ''म्यांमार में चीनी भारी संख्या में फैल गए हैं। हमें म्यांमार में चीन की बढ़ती मौजूदगी को संतुलित करने की सख्त ज़रूरत है। रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर भी एक समस्या खड़ी हो गई है। भारी संख्या में रोहिंग्या शरणार्थी भारत आ रहे हैं। ऐसे में भारत को इस मुद्दे पर भी बात करनी होगी। एक तो पहले से ही लाखों बांग्लादेशी अवैध रूप से यहां आ गए हैं। जिस तरह से रोहिंग्या भारत पहुंच रहे हैं उन पर सख्ती से रोक लगनी चाहिए।''
म्यांमार के भारत के साथ सांस्कृतिक संबंध काफ़ी गहरे हैं। भारत का वहां काफ़ी प्रभाव है। आंग सान सू ची ने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से पढ़ाई की है फिर भी भारत संबंधों के मामले में चीन से कैसे पिछड़ जाता है? इस पर सिब्बल कहते हैं, ''चीन हमसे बहुत बड़ी आर्थिक ताक़त है। वो बहुत आक्रामक तरीक़े से काम करता है। उनकी तो नीति ही है कि कॉन्ट्रैक्ट किसी भी तरीक़े से हासिल करो। हम चीन की तरह रणनीति नहीं बना पाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह पहला म्यांमार दौरा है। इसस पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज म्यांमार जा चुकी हैं। भारत और म्यांमार के बीच 1951 में फ्रेंडशिप संधि हुई थी। इस संधि के बाद राजीव गांधी के कार्यकाल में दोनों देशों के संबंध अच्छे हुए। 1987 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी म्यांमार के दौरे पर गए थे।
इसके बाद दोनों देशों के बीच 1994 में ट्रेड एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हुआ। भारत कई सालों तक पसोपेश में रहा कि उसे मिलिट्री जुंटा से संबंध रखना चाहिए या नहीं। जब चीन ने वहां के सैन्य शासन से संबंध बढ़ाना शुरू किया तो भारत ने भी अपनी नीति बदली। 2012 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह म्यांमार के दौरे पर गए थे। इस यात्रा में दोनों देशों के बीच कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे।