ओडिशा की मतिल्दा कुल्लू को हाल ही में फोर्ब्स पत्रिका ने देश की सबसे ताक़तवर महिला शख्सियत में शामिल किया है। फोर्ब्स की इस सूची में भारतीय स्टेट बैंक की पूर्व महाप्रंबधक अरुंधति भट्टाचार्य और बॉलीवुड अभिनेत्री सान्या मल्होत्रा जैसी महिलाएं शामिल हैं।
मतिल्दा कुल्लू ना तो कोई कोई सेलिब्रेटी हैं ना ही कॉरपोरेट जगत से उनका नाता है। वो ओडिशा में एक आशा कार्यकर्ता हैं। अपने इलाक़े में ग्रामीणों को काले जादू जैसे अंधविश्वासों को दूर करने और कोरोना संक्रमण के दौरान लोगों को जागरुक बनाने में उनकी भूमिका ने उन्हें इस सूची में जगह दिलायी है।
मासिक पगार 45 सौ रुपये
45 साल की मतिल्दा आदिवासी बहुल सुंदरगढ़ ज़िले के गरगड़बहल गांव की रहने वाली हैं, जहां वह बीते 15 सालों से एक सरकारी स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) के रूप में काम कर रही हैं।
गांव के हर घर का दौरा करना, मरीजों को दवाइयाँ उपलब्ध करना, गर्भवती महिलाओं की मदद करना, बच्चों का टीकाकरण करवाना, स्वच्छता को बढ़ावा देना और विभिन्न विषयों पर सर्वे कराने जैसे कई काम मतिल्दा करती आयी हैं। 4500 रुपये महीने की पगार पर वह अकेली गांव की लगभग एक हज़ार आबादी की देखभाल करती हैं।
अंधविश्वास से लड़ाई
15 साल पहले जब मतिल्दा ने एक आशा कार्यकर्ता के रूप में काम करना शुरू किया, तब उनके गांव का कोई व्यक्ति अस्पताल नहीं जाता था। बीमार पड़ने पर वे अपना इलाज करने के लिए काला जादू का सहारा लिया करते थे। मतिल्दा को इसे रोकने और ग्रामीणों को शिक्षित करने में वर्षों लग गए लेकिन अब हालत बदल गए हैं। बीमार पड़ने पर लोग मतिल्दा के पास आते हैं।
मतिल्दा ने बताया कि वह अपने दिन की शुरुआत सुबह पांच बजे करती हैं। सुबह घर के काम ख़त्म करने के बाद वह साइकिल लेकर निकल पड़ती हैं और घर घर जाकर लोगों से मिलती हैं।
वह कहती हैं, "मुझे अपने काम से प्यार है लेकिन वेतन बहुत कम मिलता है। हम लोगों की देखभाल के लिए इतना प्रयास करते हैं। लेकिन फिर भी हमें समय पर वेतन पाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।"
मतिल्दा को आदिवासी होने के कारण तिरस्कार और अस्पृश्यता जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। उनका कहना है कि शुरुआती दिनों से ही उनका काम आसान नहीं रहा है, लेकिन इसकी वजह से उन्होंने कभी भी अपने प्रयास में कोई कमी नहीं रहने दी।
कोरोना ने बढ़ाई चुनौती
कोविड महामारी की शुरुआत के बाद मतिल्दा का काम बढ़ गया। वह बताती हैं, "जब मार्च में देश भर के लोग घर के अंदर थे, हमें स्वास्थ्य जांच के लिए हर घर में जाने और ग्रामीणों को इस वायरस के बारे में शिक्षित करने के लिए कहा गया। तब लोग कोविड टेस्ट कराने से दूर भागते थे। उन्हें समझाना वास्तव में बहुत ही कठिन था।"
लेकिन मतिल्दा दावा करती हैं कि उन्होंने गांव के सभी लोगों का टीकाकरण करा दिया है।
सुंदरगढ़ ज़िले के मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सरोज कुमार मिश्रा कहते हैं, "यह उनके लिए व्यक्तिगत रूप में बहुत खुशी की बात है। कोरोना के समय एक फ्रंट लाइन वर्कर के तौर पर मतिल्दा ने खूब मेहनत की है। लोगों की देखभाल करते हुए वह खुद कोरोना संक्रमित हो गयी थीं। लेकिन स्वस्थ होने के तुरंत बाद वह फिर काम पर लग गईं।"
फोर्ब्स में कैसे आया नाम
मतिल्दा का काम फोर्ब्स पत्रिका की नज़र में कैसे आया। इसकी भी एक कहानी है। दरअसल, नेशनल फेडरेशन ऑफ आशा वर्कर की महासचिव वी विजयालक्ष्मी ने उनके काम की जानकारी फोर्ब्स इंडिया के पत्रकारों को दी।
उन्होंने बताया, "मतिल्दा दूसरे आशा कर्मियों के लिए उदाहरण हैं। एक गरीब अदिवासी महिला होते हुए भी उन्होंने अपने इलाके में बहुत अच्छा काम किया है। काम के प्रति उनके समर्पण को देखकर मैं बहुत प्रभावित हुई थी।"
फोर्ब्स सूची में नाम आने के बाद ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने उनको बधाई देते हुए ट्वीट किया है, "मतिल्दा हज़ारों समर्पित कोविड योद्धाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं जो क़ीमती जीवन बचाने के लिए सबसे आगे हैं।"
वहीं प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री नवकिशोर दास ने लिखा, "ओडिशा ऐसे अभूतपूर्व समय के दौरान मतिल्दा की सेवाओं के लिए आभारी है। वह सभी के लिए एक प्रेरणा हैं।"
साल 2005 में, भारत सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की थी। उस समय आशा कर्मियों की भर्ती की गयी। देश में ऐसे दस लाख से अधिक आशा कर्मी हैं। कोविड प्रबंधन के दौरान इन लोगों ने अहम भूमिका निभायी है, हालांकि इन्हें मामूली वेतन पर काम करना पड़ता है।