रामदेव के नक्शेकदम पर पाकिस्तानी योगी हैदर

सोमवार, 15 जून 2015 (16:13 IST)
- दिलनवाज पाशा 
 
भारत, नेपाल और तिब्बत में योग सीख चुके, योगी शमशाद हैदर पाकिस्तान में योग के प्रचार-प्रसार में जुटे हैं। पाकिस्तान के पंजाब सूबे के एक छोटे से गांव के मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले हैदर को इस सफर में अपने परिवार का भरपूर साथ मिला है।
इस्लामाबाद और लाहौर में योग सिखाने वाले योगी हैदर महाराष्ट्र के गुरु निकम और गुरु गोयनका से प्रभावित हैं। उन्होंने लंबा वक्त भारत के हरिद्वार में भी बिताया है।
 
उनकी पत्नी शुमैला सांस की मरीज थीं और उन्हीं की योग कक्षाओं में आती थीं। ठीक होने पर करीब दो साल पहले उन्होंने योगी हैदर से शादी कर ली। अब वे भी योग सिखाती हैं। तकरीबन सात साल पहले लाहौर के एक मनोचिकित्सक उनके पहले शिष्य बने, इसके बाद उनके छात्रों की संख्या बढ़ती गई, जो अब हजारों में है।
इस्लामाबाद और लाहौर के पार्कों में दाढ़ी-टोपी वाले लोगों का योगासन करते दिखना आम बात है, उनके ज्यादातर शिष्य संभ्रांत तबके से आते हैं। योगी हैदर कहते हैं, 'योग के प्रसार के लिए मैं पब्लिक पार्कों में फ्री क्लासेज चलाता हूं। लेकिन जो लोग व्यक्तिगत कक्षाएं लेते हैं, वे फीस चुकाते हैं।'
 
योगी हैदर मानते हैं कि पाकिस्तान जैसे देश में योग सिखाना एक मुश्किल काम है। पिछले साल उनके एक दोस्त के योग सेंटर में आग लगा दी गई थी लेकिन वे इससे डरे नहीं। वे कहते हैं, 'जब हम नेक राह पर चल रहे होते हैं तो खतरों की परवाह नहीं करते।'
 
योगी शमशाद : योगी हैदर कहते हैं जिस तरह रामदेव ने भारत में योग को घर-घर पहुंचाया है, ठीक वैसे ही मैं भी योग को पाकिस्तान में घर-घर तक पहुंचाना चाहता हूं। योग को सबके बीच स्वीकार्य बनाने के लिए उन्होंने राह निकाली है, वे योग को उसके फायदों तक ही केंद्रित रखते हैं और इसे किसी खास धार्मिक पहचान से दूर रखते हैं।
भारत में योग को लेकर जो विवाद छिड़ा है उस पर योगी हैदर कहते हैं, 'इस्लाम कहता है कि इल्म जहां से मिले ले लो। हिंदुस्तान के आलिमों का विरोध राजनीतिक है क्योंकि हिंदुस्तानी सरकार का एजेंडा अल्पसंख्यकों के लिए ठीक नहीं है। वे योग पर हिंदुओं की मुहर लगाते हैं जो गलत है। बावजूद इसके मुसलमानों को योग का विरोध नहीं करना चाहिए।'
 
हैदर याद दिलाते हैं कि योग के पुरातन गुरु पतंजलि का जन्म मुल्तान में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। योगी हैदर कुछ आसनों के दौरान अपने शिष्यों से 'अल्लाह हू...अल्लाह हू' की आवाज लगवाते हैं और इसे सूफी परंपरा से जोड़ देते हैं।
योग की 'पूरब की कला' बताने वाले हैदर कहते हैं, 'अल्लाह हू की आवाज लगाते हुए लोगों को लगता है कि वे सूफियों की तरह अल्लाह को याद कर रहे हैं।'

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