बीते कुछ सालों में औरतों का फ़ैशन तेज़ी से बदला है। बेहद तंग कॉर्सेट से लेकर फ्लेयर्ड ड्रेस तक और लेड मिक्स मेकअप प्रोडक्ट से लेकर नेचुरल ट्रीटमेंट तक सबकुछ बदल चुका है। आज के समय में महिलाओं का ट्राउज़र्स पहनना बहुत सामान्य बात है और अब तो ज़्यादातर महिलाओं के वॉर्डरोब में जींस और ट्राउज़र ही नज़र आते हैं।
इन तमाम अच्छे बदलावों के बावजूद ऐसा क्यों है कि आज भी महिलाओं के कपड़ों में एक ढंग की पॉकेट नहीं होती? सवाल पिछले दिनों वायरल हो गया जब एक अमेरिकी लेखिका हीदर केज़ीन्सकी ने एक ट्वीट कर पॉकेट का मुद्दा उठाया।
''कृपा करके लड़कियों की पैंट में भी पॉकेट बनाएं''
उन्होंने लिखा, ''हे भगवान, मेरी तीन साल की बेटी बहुत नाराज़ है क्योंकि उसकी ड्रेस में पॉकेट नहीं है और जो पॉकेट है वो सिर्फ़ नाम के लिए है। उसके पास कई ऐसी चीज़ें होती हैं जो वो रखना चाहती है। कृपया लड़कियों के लिए भी पॉकेट बनाएं।''
हालांकि उनकी इस अपील के बाद कई लोगों ने कमेंट करते हुए लिखा कि बाज़ार में कई ऐसी ड्रेसेज़ मौजूद हैं जो लड़की और लड़के दोनों समान रूप से पहन सकते हैं और जिनमें पॉकेट्स भी होते हैं। जबकि बहुत से ऐसे लोग भी हैं जिनका ये कहना है कि महिलाओं के कपड़ों में पॉकेट का नहीं होना एक समस्या है और ये सिर्फ़ बच्चों नहीं वयस्क के साथ भी लागू होती है।
अमूमन महिलाओं की ड्रेसेज़ में ऐसी पॉकेट्स होती हैं जो सिर्फ़ दिखावे के लिए होते हैं। या फिर ड्रेस को ख़ूबसूरत दिखाने के लिए होती हैं।
हीदर की पोस्ट का असर
बाद में हीदर ने मूल ट्वीट को डिलीट कर दिया और उन्होंने लिखा कि, ''बात सिर्फ़ पॉकेट की नहीं है, इसके अलावा बहुत-सी ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें लेकर मैं चिंतित हूं। मेरा बच्चा। बदलता मौसम। नस्लभेद। नेट-न्यूट्रैलिटी। अमेरिकी गणराज्य। स्कूल फ़ंड। स्कूलों में होने वाली फ़ायरिंग। यौन-हिंसा। रॉयल बेबी।''
हम मानते हैं कि कई और बड़ी परेशानियां हैं, लेकिन उनकी पोस्ट ने कई लोगों को झकझोरने का काम किया। महिलाओं की ड्रेसेज़ में अच्छे पॉकेट की कमी के चलते औरतों की ज़िदगी में और परेशानियां बढ़ती ही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर काम करने वाली कैरोलीन क्रियाडो पेरेज़ ने भी ये मुद्दा 2016 में उठाया था।
एक ओर जहां आज के फ़ैशन के दौर में महिलाओं के कपड़ों में पॉकेट की कमी देखने को मिल रही है वहीं दोनो विश्व युद्धों के दौरान महिलाओं के कपड़ों में पॉकेट हुआ करते थे। ''जी हां, उनके कपड़ों में पर्याप्त पॉकेट हुआ करते थे और ये इतने बड़े होते थे कि इनमें कोई भी सामान बहुत आसानी से रखा जा सकता था।''
विश्व युद्ध के बाद
युद्ध के बाद महिलाओं के ड्रेस रेंज में एक बड़ा बदलाव आया और स्कर्ट का चलन शुरू हो गया और धीरे-धीरे पॉकेट का चलन कम होने लग गया। साल 1954 में क्रिस्टिन डायोर ने कहा था कि मर्दों के लिबास में पॉकेट चीज़ों को रखने के लिए होती है जबकि औरतों के लिए ये महज़ सजावट की चीज़ है।
धीरे-धीरे पॉकेट का चलन महिलाओं के कपड़ों से जाता गया और उसका साइज़ छोटा होता गया। ठीक उसी वक़्त बैग का चलन शुरू हो गया। लेकिन अब 2010 में जबकि महिलाओं को अपने स्मार्टफ़ोन रखने और क्रेडिट कार्ड रखने की ज़रूरत आन पड़ी तो भी पॉकेट की कमी बनी हुई है।
ये बहुत शर्म की बात है। महिलाओं के लिए भी यह ज़रूरी है। काइली कहती हैं कि हालांकि डोंगरी पॉकेट का एक अच्छा विकल्प है, लेकिन हर कोई 80 के दशक का फ़ैशन पहनना पसंद नहीं करेगा। ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या फ़ैशन की दुनिया कभी भी महिलाओं के फ़ैशन को समझ पाएगी? तो आप बताएं कि महिलाओं के लिबास में पॉकेट के मुद्दे पर आप किस ओर हैं?