बचपन में राजीव और सोनिया के साथ अमेठी जाने पर प्रियंका गांधी के बाल हमेशा से छोटे रहते थे और गांव में ज़्यादातर लोग राहुल की तरह उन्हें भी भईया बुलाने लगे जो बाद में बदल कर भईयाजी हो गया। गांधी परिवार का दर्जा अमेठी रायबरेली में किसी मिथक से कम नहीं। लोग सालों बाद भी उस पल के बारे में बताना नहीं भूलते जो उन्होंने गांधी परिवार के सदस्य के साथ साझा किया था।
सब ऐसे बताते हैं जैसे उनके घर या मुहल्ले का कोई सदस्य हो। जैसे प्रियंका का रूटीन, उनका खानपान और उनका लोक व्यवहार भी। रायबरेली से चंद किलोमीटर दूर भुएमऊ गेस्ट हाउस में प्रियंका गांधी का दिन सुबह छ: बजे ट्रेडमिल पर थोड़ी मशक्कत और फिर ज़्यादा समय के लिए योग से शुरू होता है।
पोहे, ब्रेड या कॉर्नफ्लेक्स के नाश्ते के बाद 'भईयाजी' यानी प्रियंका लोगों से मिलना शुरू करतीं हैं और उनके लंच का समय तय नहीं रहता। भाई राहुल गांधी से थोड़ा अलग। रोटी या परांठे के साथ सब्ज़ी और दाल लेकिन साथ में आम/ नींबू का अचार तो रहना ही चाहिए।
उन्हें और पति रॉबर्ट वाड्रा को मुग़लई खाना बेहद पसंद है। वर्ष 2004 में रायबरेली चुनाव प्रचार प्रियंका की निगरानी में जारी था। उन्होंने परिवार के एक पुराने क़रीबी जो अमेठी में थे उनसे फ़ोन पर कुछ फरमाइशें कीं जिनमें गलावटी कबाब, बिरयानी और कोरमा शामिल था। चंद घंटों बाद खाना पैक होकर गेस्ट हाउस पहुंचा जहां प्रियंका और रॉबर्ट ने खाने के बाद बचा हुआ खाना अपनी शाम वाली दिल्ली की फ्लाइट के लिए रख भी लिया।
वैसे मलाई-चाप और सफेद रसगुल्लों का भी शौक रखने वाली प्रियंका रात को सोने से पहले भुएमऊ या मुंशीगंज गेस्ट हाउस के कई चक्कर लगाना नहीं भूलतीं। अब उनके बच्चे भी गाहे-बगाहे यहां दिखाई दे जाते हैं। दिल्ली में प्रियंका गांधी ने अपने परिवार को मीडिया की नज़र से काफ़ी हद तक बचाकर रखा है. पर यहां ऐसा नहीं है।
शायद 2004 के बाद से प्रियंका के प्रचार करने की शुरुआत हुई थी जब प्रियंका बतौर मेहमान रायबरेली निवासी रमेश बहादुर सिंह के घर पर एक महीने ठहरी थीं। रमेश को वो दिन आज भी याद है, "प्रियंका प्रचार करने अकेले निकलतीं थी और देर रात लौट पातीं थीं। दोनों बच्चे घर में आया के साथ रहते थे। उस दिन वे जल्दी लौट आईं और मुझसे बोलीं बच्चों को रिक्शे की सैर करानी है इसलिए दो रिक्शे मिल सकते हैं क्या?"
"जैसे ही रिक्शे आए वे बच्चों के साथ एक पर बैठकर बाहर निकल चलीं और भौचक्के एसपीजी वाले पीछे भागे। आधे घंटे बाद वे लौटीं और रिक्शा वालों को 50 रुपए का नोट देकर हंसते हुए भीतर लौट आईं। कुछ महीने पहले अब 14 वर्ष के हो चुके उनके बेटे रेहान अपने दोस्तों के साथ मामा राहुल गांधी के चुनाव क्षेत्र अमेठी पहुंचे थे।
रेहान और उनके दोस्तों ने दाल, चावल और सब्ज़ी का खाना खाया, खुले में चारपाई पर सोए और मच्छरदानी का भी इस्तेमाल किया। पहले उनके साथ इन क्षेत्रों में काम कर चुके कुछ व्यक्ति ये तो मानते हैं कि प्रियंका की शख्सियत बहुत सुलझी हुई है लेकिन उनके मन में इसकी गंभीरता को लेकर संदेह भी है। ऐसे ही नज़दीकी रहे एक मुस्लिम परिवार की रसोई से प्रियंका के लिए यदा-कदा मुग़लई खाना जिसमें कोरमा-बिरयानी शामिल है वो जाता रहता था।
एक दिन इन्हीं सज्जन ने कहा कि "भइयाजी को इस बात की याद दिलाई कि उनकी तहसील से गुज़रने वाली एक मशहूर ट्रेन के स्टॉपेज को वादे के बाद भी अमल में नहीं लाया गया। प्रियंका ने बात भी सुनी और काम न होने पर अपनी नाराज़गी भी जताई। लेकिन अगले तीन साल प्रियंका के इर्द-इर्द रहने वालों ने कथित तौर पर इन सज्जन को 'भइयाजी' से मिलने का एपॉइंटमेंट नहीं लेने दिया। ट्रेन अभी भी नहीं रुकती वहां पर।
तीन वर्ष बाद यही शख्स अपने बेटे की शादी का कार्ड लेकर प्रियंका के दिल्ली आवास पहुंचे। कोरमा और कबाब इस बार भी साथ आए थे। प्रियंका ने हाल भी पूछा और मिलीं भी, लेकिन इन्हें इस बात का मलाल है कि उन्होंने ये नहीं पूछा कि तीन साल कहां रहे। ज़ाहिर है, उनके शुभचिंतक उनकी तारीफ़ करते नहीं थकते और आलोचक उनके इस सहज अंदाज़ को बनावटी बताते हैं।
कांग्रेस के एक साधारण कार्यकर्ता मंसूर अहमद ख़ान जैसे लोग कहते हैं कि प्रियंका उनके लिए भगवान से कम नहीं हैं।
उन्होंने बताया कि राहुल गांधी का 2009 का चुनाव प्रचार चल रहा था, अचानक मेरी तबीयत खराब हुई और मैं बेहोश हो गया. तीन दिन बाद मुझे होश आया तो में दिल्ली के बत्रा अस्पताल में था, जहां बताया गया कि मेरी किडनी खराब हो चुकी थी।
"हफ्ते भर के इलाज के बाद डरते हुए मैंने डॉक्टर से कहा, ग़रीब आदमी हूं यहां इलाज नहीं करा पाऊंगा. डॉक्टर ने मुझे डांटते हुए कहा कि तुम्हारे ऊपर 11 लाख रुपए का इलाज हो चुका है और तुम अपने को ग़रीब बता रहे हो। मसूद बताते हैं कि प्रियंका के आदेश पर कांग्रेस के वरिष्ठ लोग उन्हें देखने बत्रा अस्पताल जाते रहे
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स्थानीय लोग इस बात पर ज़ोर देते हैं कि प्रियंका की याददाश्त बहुत अच्छी है और वे सभी को नाम से बुलाती हैं। हालांकि राय बरेली या अमेठी में कुछ पुराने कांग्रेसी भी हैं जो ये मानते हैं कि प्रियंका की शख्सियत भले ही इंदिरा गांधी की तरह दिखती हो लेकिन प्रियंका में अपनी दादी की तरह अपने लोगों के प्रति गंभीर लगाव नहीं दिखता है।
एक पुराने सहयोगी ने बताया कि बतौर प्रधानमंत्री भी इंदिरा गांधी हर दो-चार महीने में रायबरेली पहुंच जाया करतीं थीं। राजीवजी को भी अमेठी के लोगों से विशेष प्रेम था, लेकिन प्रियंका चुनाव के समय ज़्यादा दिखतीं हैं। मिसाल के तौर पर सात महीने से वे रायबरेली आई ही नहीं हैं।