22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में भगवान राम की नई प्रतिमा स्थापित की जाएगी। लेकिन पहले से मौजूद रामलला की प्रतिमा का क्या होगा? यह सवाल कई लोगों के ज़ेहन में उठ रहा है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी कुछ दिनों पहले यह सवाल पूछा था।
पहले जनसंघ फिर भाजपा और संघ परिवार की ओर से लगातार दावा किया जाता रहा है कि 22-23 दिसंबर 1949 को मूर्ति का 'प्रकट होना' एक दैवीय घटना थी।
रामलला की मूर्ति को स्वयंभू बताने वाले लोग समय-समय पर श्रीराम लला के प्रकट होने में प्रकरण में कई लोगों के सहयोग की भी सराहना करते रहे हैं।
'रामलला के प्रकाट्य के प्रसंग में' जनसंघ और आरएसएस के नेता तत्कालीन कलेक्टर केके नायर और गीता प्रेस के संचालक हनुमान प्रसाद पोद्दार की अहम भूमिका की प्रशंसा करते रहे हैं। पिछले 74 सालों से रामलला के रूप में उसी मूर्ति की पूजा-अर्चना होती रही है।
आज़ादी से पहले की कहानी
दरअसल, 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद नवाबी शासन समाप्त होने पर ब्रिटिश क़ानून, शासन और न्याय व्यवस्था लागू हुई। माना जाता है कि इसी दरम्यान हिंदुओं ने मस्जिद के बाहरी हिस्से पर क़ब्ज़ा करके चबूतरा बना लिया और भजन-पूजा शुरू कर दी, जिसको लेकर वहाँ झगड़े होते रहते थे।
इसको लेकर दोनों पक्षों के बीच कई बार झगड़े और मुक़दमे भी हुए। यह सिलसिला 90 से भी ज़्यादा सालों तक चला। हिंदू वैरागियों ने 24 नवंबर, 1949 से मस्जिद के सामने क़ब्रिस्तान को साफ़ करके वहाँ यज्ञ और रामायण पाठ शुरू कर दिया जिसमें काफ़ी भीड़ जुटी। झगड़ा बढ़ता देखकर वहाँ एक पुलिस चौकी बनाकर सुरक्षा में अर्धसैनिक बल पीएसी लगा दी गई।
पीएसी तैनात होने के बावजूद 22-23 दिसंबर 1949 की रात महंत अभय रामदास ने घोषणा कर दी कि राम लला मस्जिद के भीतर अवतरित हुए हैं, इसके बाद प्रचार चला कि भगवान राम ने वहाँ प्रकट होकर अपने जन्मस्थान पर वापस क़ब्ज़ा ले लिया है।
बाद में जब अयोध्या में ज़मीन के स्वामित्व का मामला अदालत में पहुँचा तो भगवान रामलला विराजमान मुक़दमे में मुख्य याचिकाकर्ता बने।
रामलला की मूर्ति कैसे सामने आई और उसकी राम मंदिर से जुड़े आंदोलन में क्या भूमिका रही, इस बारे में जानने के लिए हमने साल 1992 से राम जन्मभूमि मंदिर के प्रमुख पुजारी रहे आचार्य सत्येंद्र दास से बात की।
रामलला विराजमान की अहमियत
आचार्य सत्येंद्र दास रामलला विराजमान को 'सबसे ज़्यादा अहम' बताते हुए कहते हैं, “नए वाले भगवान राम का तो भव्य मंदिर बन ही गया है, लेकिन ज़्यादा महत्व इन्हीं (1949 वाले रामलला) का है।"
वह कहते हैं, "इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील देवकी नंदन अग्रवाल ने रामलला विराजमान के सखा की हैसियत से मुक़दमा दायर किया कि बालक रूप में रामलला वहाँ पर विराजमान हैं। कोर्ट को इसका सबूत दिया गया। कोर्ट ने इन्हीं रामलला विराजमान के आधार पर फ़ैसला दिया कि यही राम जन्मभूमि है। इसी के बाद मंदिर बनना शुरू हुआ।"
आचार्य सत्येंद्र दास बताते हैं, "आप जानते हैं कि जितना विवाद हुआ है और जो कोर्ट में मुक़दमा लड़ा गया वो पहले से मौजूद रामलला विराजमान के नाम से लड़ा गया। इन्हीं के नाम पर सुप्रीम कोर्ट ने हुक्मनामा दिया है। अब मंदिर बन गया है तो इसलिए जैसे रामलला विराजमान की पूजा-अर्चना पहले से होती रही, उसी प्रकार से होती रहेगी।"
उनके मुताबिक़ जहाँ नए रामलला रखे जाएंगे, वहीं पर पुराने रामलला भी रखे जाएंगे।
रामलला की पूजा के बारे में आचार्य सत्येंद्र दास कहते हैं, "सभी संप्रदाय अपनी पद्धति के हिसाब से रामलला विराजमान की पूजा अर्चना करते हैं। 16 मंत्रों से एक-एक वस्तु को भगवान को समर्पित किया जाता है। राम के साथ भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न, सभी भाइयों की पूजा होती आई है। अब जो भव्य मंदिर बना है, उसी में इनकी स्थापना होगी।"
आचार्य सत्येंद्र दास के मुताबिक़, "पहले मूर्ति गुम्बद (मस्जिद के) के नीचे थी। जब 6 दिसंबर 1992 को गुम्बद ढह गया तो फिर यह मूर्ति तिरपाल में रखी गईं और वहां पूजा होती रही। फ़िलहाल यह एक अस्थायी लकड़ी के मंदिर में हैं। इसी लकड़ी के मंदिर में सारी सुविधाएं हैं। यहीं पर फ़िलहाल पूजा हो रही है और दर्शनार्थी दर्शन कर रहे हैं। बाद में ये मूर्ति भव्य मंदिर में चली जाएगी।"
पुरानी मूर्ति 'उत्सव मूर्ति' मानी जाएगी
आचार्य सत्येंद्र दास बताते हैं कि रामलला विराजमान को चल मूर्ति माना जाता है। यह उत्सव मूर्ति है। इसका मतलब यह है कि जिस 51 इंच मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होगी वो अचल मूर्ति होगी और वो हटाई नहीं जा सकती है।
वो कहते हैं कि रामलला विराजमान जो एक चल मूर्ति है, उसे किसी उत्सव में ले जाया जा सकेगा और उत्सव में जाकर वो वापस चले आएंगे। मसलन, जैसे अयोध्या में मणि पर्वत पर एक झूला उत्सव होता है तो रामलला को वहाँ ले जाते हैं।
आचार्य सत्येंद्र दास कहते हैं कि, "अगर कुछ लोग अपना अनुष्ठान (धार्मिक कार्य) करते हैं और अगर चाहते हैं कि रामलला की प्रतिमा वहाँ जाए तो उस अनुष्ठान में भी रामलला विराजमान की प्रतिमा जा सकती है। वहीं उनकी पूजा-अर्चना होगी और फिर मूर्तियां वापस चली आएंगी।"
रामलला के कपड़े सिलने वाला परिवार
भगवत प्रसाद पहाड़ी 1985 से रामलला के वस्त्र सिल रहे हैं, उनकी बाबूलाल टेलर्स नामक दुकान है।
भगवत प्रसाद कहते हैं, "पिताजी के साथ हम दो भाई, तीन बेटे और एक बहू मिलकर रामलला की सेवा कर रहे हैं। रामलला के वस्त्र बनाने के लिए रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की तरफ़ से और भक्तों की तरफ़ से उन्हें ऑर्डर मिलते हैं।"
भगवत प्रसाद कहते हैं कि जब रामलला विराजमान गुम्बद में थे तो साल में एक ही पोशाक बनती थी।
वो बताते हैं, ''गुम्बद गिरने के बाद जब रामलला टेंट में आ गए तो केंद्र सरकार की तरफ़ से एक साल में सात बार रामलाल की पोशाक बनती थी।"
पहाड़ी बताते हैं कि रामलला विराजमान ज़्यादा बड़े नहीं हैं, 7 से 8 इंच के हैं। भगवान राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न सब एक ही नाप के हैं, बाल स्वरूप हैं और घुटनों के बल बैठे हुए हैं।
जब से रामलला लकड़ी के मंदिर में आए हैं, तब से भगवत प्रसाद को दर्शन करने आने वाले राम भक्तों से भी वस्त्र बनाने के आर्डर मिलने लगे। वो चारों भाइयों, भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के वस्त्र सिलने का काम करते हैं।
भगवत प्रसाद बताते हैं कि मौजूदा मंदिर में भगवान हनुमान और शालिग्राम भी विराजमान हैं। जब राम मंदिर का भूमिपूजन हुआ था तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर में एक शिवलिंग भी स्थापित किया था।
भगवत प्रसाद कहते हैं कि भगवान को रोज़ नया वस्त्र और नया भोजन मिलना चाहिए।
वो कहते हैं कि 22 जनवरी को होने वाली प्राण प्रतिष्ठा की पूजा के लिए अभी उन्हें नए वस्त्र बनाने के लिए ट्रस्ट की तरफ़ से कोई आदेश नहीं मिला है।
नई मूर्ति के बारे में क्या कहा चंपत राय ने
राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने कुछ दिन पहले अपने एक भाषण में नई मूर्ति के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था कि मूर्ति पत्थर की है, खड़ी है और उसे पांच वर्ष के बालक का स्वरूप दिया गया है।
उन्होंने बताया था, "मूर्ति में पांच साल के बालक का कोमल मुस्कुराता चेहरा, आखें और शरीर है। मूर्ति में देवत्व है, वो भगवान का अवतार है, विष्णु का अवतार है और एक राजा का बेटा भी है। तो वो राजपुत्र हैं, उनमें देवत्व है, लेकिन वो पांच वर्ष के हैं। ऐसी प्रतिमा तैयार हो गई है।"
ये मूर्ति 51 इंच ऊंची है। इसके ऊपर थोड़ा मस्तक थोड़ा मुकुट थोड़ा आभा मंडल है।
चंपत राय के मुताबिक़ ऊंचाई का निर्णय करते समय यह विचार हुआ कि प्रत्येक वर्ष रामनवमी के दिन, दोपहर 12 बजे जब सूर्य देव चमकते हैं और क्योंकि भगवान का जन्म रामनवमी के दिन दोपहर 12 बजे होता है तो भगवान पर सूर्य की किरण आकर पड़े।
चंपत राय ने बताया कि देश के काफ़ी क़ाबिल वैज्ञानिकों की मदद से यह सुनिश्चित किया गया है। इसी वजह से मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच निर्धारित की गई है।
यह मूर्ति लगभग डेढ़ टन की है और पूरी पत्थर की है। मूर्ति बनाते वक़्त इस बात का ख़ास ध्यान रखा गया है कि अगर उसका जल से स्नान हो, दूध से स्नान हो तो पत्थर का कोई प्रभाव दूध और पानी पर नहीं पड़ना चाहिए और अगर उस पानी को पी लें तो उसका शरीर पर कोई दुष्परिणाम ना हो।
दरअसल, तीन मूर्तिकारों ने तीन अलग-अलग पत्थरों पर मूर्ति बनाई थी। इसमें से एक मूर्ति को स्वीकार किया गया है।
चंपत राय ने बताया कि सभी मूर्तियां ट्रस्ट के पास रहेंगी। मूर्ति बनाने वालों ने बहुत तन्मयता से काम किया है।
उन्होंने बताया कि मूर्ति की प्रतिष्ठा, इसकी पूजा विधि, 16 जनवरी से शुरू होगी और मूर्ति गर्भ गृह में अपने आसन पर, 18 जनवरी की दोपहर को स्थापित कर दी जाएगी।
चंपत राय ने सोमवार को बताया कि भगवान की वर्तमान प्रतिमाएं जिनकी उपासना, सेवा, पूजा लगातार 70 साल (1950 से) से चली आ रही है, वो भी मूल मंदिर के मूल गर्भगृह में ही उपस्थित होंगी।
उन्होंने बताया कि जैसे अभी उनकी पूजा और उपासना की जा रही है, वैसी ही 22 जनवरी से भी अनवरत की जाएगी। उन्होंने ये भी बताया कि पुरानी प्रतिमाओं के साथ-साथ श्रीरामलला की नई प्रतिमा को भी अंग वस्त्र पहनाए जाएंगे।
राम दरबार के लिए अलग से मूर्तियाँ बनेंगी
राम मंदिर के प्रथम तल पर भगवान राम का दरबार स्थापित होगा। राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ऑफिस के इंचार्ज प्रकाश गुप्ता ने बताया, "अगर आप राम के दरबार का चित्र देखेंगे तो उसमें राम जी की, सीता जी की, हनुमान जी की वो सब रहेंगी लेकिन अभी वो मूर्तियां बननी शुरू नहीं हुई हैं"।
प्रकाश गुप्ता कहते हैं कि अभी तो केवल सिर्फ़ मुख्य मूर्ति बनी है जिसकी स्थापना हुई है और जब प्रथम तल तैयार हो जाएगा तब भगवान राम के दरबार की मूर्तियाँ बनेंगी और लगेंगी।"
लेकिन दरबार कब तक बनकर तैयार होगा इस बारे में प्रकाश गुप्ता कहते हैं, "अभी उसमें समय है और ट्रस्ट ने उसका अभी कोई फैसला नहीं किया है। अभी मुख्य काम प्राण-प्रतिष्ठा का है। जब प्रथम तल बनकर तैयार होगा तब उसकी संरचना होगी।"
वे कहते हैं, "मान्यता के हिसाब से जो चित्र है जिसमें राम जी, सीता जी, लक्ष्मण जी, हनुमान जी, भारत जी और शत्रुघ्न जी हैं उसी हिसाब से बनना चाहिए। इसमें सिंहासन बनेगी और उसी पर मूर्तियाँ बैठाई जाएँगी। सिंहासन संगमरमर का बनेगा उस पर चांदी चढ़ाई जाएगी।"
प्रकाश गुप्ता कहते हैं, "राम दरबार सिर्फ़ भगवान राम का रहेगा, बाकी देवी देवताओं के तो परिसर में अलग मंदिर बन रहे हैं।"