दुनिया में सब से ज़्यादा शराब भारत में पी जाती है और यहाँ स्कॉटलैंड की स्कॉच व्हिस्की बहुत पसंद की जाती है। ज़ाहिर है इसकी मांग भी बहुत है। लेकिन इसकी बोतलों में भारी क़ीमत के लगे टैग देख कर कई ग्राहक देश में बनी सस्ती शराब पीना ही पसंद करते हैं।
लेकिन अगर भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते (एफ़टीए) पर हस्ताक्षर हो जाए तो बहुत मुमकिन है कि भारत में इनकी क़ीमत काफ़ी गिर जाएगी।
गुरुवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के बीच फ़ोन पर बातचीत हुई। दोनों देशों के बीच एफ़टीए पर जल्द समझौते पर ज़ोर दिया गया। इसकी जानकारी ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी ने एक ट्वीट में दी।
समझौते में हो रही है देरी
भारत और ब्रिटेन के बीच एफटीए पर हस्ताक्षर इस दिवाली में होना था लेकिन ब्रिटेन में सियासी और आर्थिक अनिश्चितता के कारण इसमें देरी हो रही है।
देरी की दूसरी वजह थी ब्रितानी गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन की एफटीए को लेकर चिंताएं। अक्टूबर के पहले हफ़्ते में सुएला ब्रेवरमैन ने कहा था कि भारत के साथ व्यापार समझौते की वजह से ब्रिटेन में आने वाले भारतीयों की संख्या बढ़ सकती है और इससे ब्रेग्ज़िट के मक़सद को भी नुक़सान पहुँच सकता है।
भारतीय मूल की सुएला ने ये भी कहा था कि ब्रिटेन में वीज़ा समाप्त होने के बाद सबसे ज़्यादा भारतीय प्रवासी ही रह जाते हैं।
सुएला के इस बयान पर भारत में तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं। उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था लेकिन ऋषि सुनक ने प्रधानमंत्री बनने के बाद सुएला को दोबारा गृहमंत्री बनाया है। प्रधानमंत्री ऋषि सुनक चाहते हैं कि भारत के साथ व्यापार समझौते को जल्द से जल्द अंजाम दिया जाए।
दोनों देशों के बीच पाँच राउंड की बातचीत हो चुकी है लेकिन अगला राउंड कब होगा ये अभी तय नहीं हुआ है। पिछले राउंड की बातचीत में ब्रिटेन की कोशिश ये रही थी कि स्कॉच व्हिस्की पर भारत की तरफ़ से लगे 150 प्रतिशत आयात शुल्क को इस समझौते के तहत घटा कर 20 प्रतिशत कर दिया जाए। भारत इससे सहमत नहीं है।
अगर भारत सरकार ने ब्रितानी सरकार की ये मांग पूरी की तो स्कॉटलैंड के विश्व प्रसिद्ध व्हिस्की उद्योग में जाम छलकेंगे और जश्न मनाया जाएगा। हरमीत सिंह आहूजा के अनुसार, स्कॉटलैंड में इससे ख़ुशी होगी।
स्कॉटलैंड के व्यापारियों को उम्मीद है कि भारत में पाँच वर्षों में निर्यात एक अरब पाउंड तक बढ़ जाएगा।
मुक्त व्यापार समझौता क्या होता है?
लेकिन एफटीए सिर्फ़ शराब या किसी दूसरे वस्तु पर लगे आयात शुल्क को ख़त्म करने या घटाने की प्रक्रिया नहीं है।
ये दो या इससे अधिक देशों के बीच एक व्यापक समझौता है, जिसके तहत सीमा शुल्क और ग़ैर-टैरिफ बाधाओं को व्यापार के कई आइटम पर से समाप्त कर दिया जाता है या काफ़ी कम कर दिया जाता है।
इससे द्विपक्षीय व्यापार बढ़ता है और दोनों पक्ष एक दूसरे की अर्थव्यवस्था को मज़बूती प्रदान करते हैं। एफटीए में आम तौर से गुड्स एंड सर्विसेज़, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी अधिकार और निवेश इत्यादि शामिल होते हैं
भारत ने इस साल संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए पर दस्तख़त किए हैं। इसके तहत आयात टैरिफ़ 85 प्रतिशत घटने की संभावना है। इसके अलावा भारत का मलेशिया, जापान, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और आसियान देशों जैसे कई अन्य देशों के साथ एफटीए समझौता है।
ब्रिटेन ने भी इस साल ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के साथ एफटीए समझौता किया है। यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के बाद ब्रिटेन अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कई देशों के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर करने की कोशिश कर रहा है, ख़ासतौर से भारत के साथ।
इस साल मार्च में भारत की अर्थव्यवस्था ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ कर 3।1 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई। भारत एक विकासशील अर्थव्यवस्था है, जिसमें बड़े पैमाने पर विकास की क्षमता है जिसके लिए बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश की आवश्यकता होगी।
भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज़्यादा है और ऐसा सालों तक क़ायम रहेगा। इसीलिए दुनिया भर के देशों की भारत के साथ स्पेशल व्यापर समझौते करने की इच्छा है, जिनमें ब्रिटेन भी शामिल है।
क्या है भारत ब्रिटेन व्यापार समझौता?
मई 2021 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके तत्कालीन यूके समकक्ष बोरिस जॉनसन ने संभावित व्यापक मुक्त व्यापार समझौते के पहले चरण के रूप में "बढ़ी हुई व्यापार साझेदारी" की घोषणा की। तब से वार्ता के पाँच दौर पूरे हो चुके हैं और अब ये अंतिम दौर में है।
ब्रिटेन के शराब के व्यापारी कहते हैं कि मुश्किल अंतिम चरणों में ही आती है, शुरू के दौर में नहीं। उनके एक बयान में कहा गया कि व्यापार वार्ता का पहला चरण अक्सर आसान हिस्सा होता है। "सबसे पेचीदा मामला अंत तक छोड़ दिया जाता है। इसलिए चुनौती का वास्तविक पैमाना स्पष्ट होने में कुछ समय लग सकता है"
अगस्त में पांचवें दौर में, दोनों पक्षों के तकनीकी विशेषज्ञ 15 नीति क्षेत्रों को कवर करते हुए 85 अलग-अलग सत्रों में विस्तृत मसौदा संधि पाठ चर्चा के लिए एक साथ आए थे। भारत और ब्रिटेन ने जनवरी 2022 में दिल्ली में मुक्त व्यापार समझौते के लिए वार्ता शुरू की थी।
भारत और यूके दोनों के पास विश लिस्ट हैं और वे अंतिम पंक्ति तक पहुँचने में बड़ी बाधा साबित हो सकती हैं।
ब्रिटेन चाहता है कि इस समझौते के तहत भारत उसे मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज़ उद्योगों में अधिक भागीदारी दे। लेकिन ये दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमे भारत परंपरागत रूप से विदेशी भागीदारी का विरोध करता आया है।
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत घरेलू उद्योगों और श्रमिकों के लिए ट्रेड बैरियर्स द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा को दूर करने के लिए आसानी से तैयार नहीं होगा। उदाहरण के तौर पर भारत में व्हिस्की बनाने वाले वर्कर्स के हितों के बारे में सोच सकता है और इसीलिए आयात शुल्कों को कम करने में संकोच कर सकता है। भारत पर देशी शराब मैनुफक्चरर्स का शुल्क कम न करने का दबाव भी है।
अगर भारत आयात शुल्कों को कम करता है, तो बदले में भारत को भी रियायतें देनी होंगी। दवाओं जैसे भारतीय उत्पादों को ब्रितानी मार्केट में लाने की अनुमति देने के लिए ब्रिटेन को दबाव का सामना करना पड़ सकता है। भारतीय वर्कर्स को और अधिक संख्या में वीज़ा देने के लिए उसे मजबूर होना पड़ सकता है
ब्रेग्ज़िट के बाद की नई इमिग्रेशन व्यवस्था के तहत, पिछले साल 60,000 से अधिक भारतीयों को स्किल्ड वर्कर वीज़ा मिला और इसकी संख्या एफटीए के बाद काफ़ी ज़्यादा बढ़ेगी।
क्या ब्रिटेन इसके लिए तैयार होगा? सिंगापुर के नेशनल विश्वविद्यालय के अमितेंदु पालित, जो पहले भारत के वित्त मंत्रालय में थे, बीबीसी से कहते हैं कि यूके को और आगे जाने की आवश्यकता होगी, जिससे अधिक भारतीय पेशेवरों को लंबे समय तक यूके में रहने की अनुमति मिल सके।
ब्रिटेन की फ़ूड और बेवरेजेज़ की आयात और निर्यात करने वाली कंपनी सन मार्क के सीइओ हरमीत सिंह कहते हैं ,"चूंकि हमने यूरोपीय संघ छोड़ दिया है, देश में कौशल की कमी है, ब्रिटेन में लेबर की कमी है और भारत के पास एक इच्छुक काम करने वाले हैं जो हमारे देश में अपना योगदान देने के लिए अस्थायी रूप से यहां आने के लिए तैयार है और हमें इसे स्वीकार करना चाहिए। साथ ही हमें भारत सरकार से आग्रह करना चाहिए कि वे लोगों को वीज़ा से अधिक समय तक रहने वालों को नियम पालन करने के लिए कहें।"
ब्रिटेन परिवहन उपकरण, इलेक्ट्रिक उपकरण, चिकित्सा, रसायन, मोटर वाहन और पुर्जे, वाइन, स्कॉच, स्प्रिट और कुछ फलों और सब्ज़ियों के लिए भारतीय बाज़ारों तक पहुँच हासिल करना चाहता है - जो भारतीय पक्ष के अनुसार स्थानीय उद्योग से जुड़े लोगों को प्रभावित कर सकता है
भारत, अपनी ओर से, ब्रिटेन को कपड़ा, फ़ूड एवं बेवरेजेज़, फार्मास्यूटिकल्स, तंबाकू, चमड़ा , जूते और चावल जैसी कृषि वस्तुओं का निर्यात बढ़ाना चाहता है। ब्रिटेन का कहना है कि इस समझौते से भारत के लिए होने वाला ब्रिटेन का निर्यात लगभग दोगुना हो जाएगा और 2035 तक दोनों देशों के बीच सालाना कारोबार 28 अरब पाउंड और बढ़ जाएगा।
इस समझौते से किसको अधिक फ़ायदा?
हरमीत सिंह आहूजा के मुताबिक़ इस सवाल का फ़िलहाल जवाब देना मुश्किल है। "क्या यह ब्रिटेन या भारत के लिए अधिक फायदेमंद होने जा रहा है, इसका जवाब देना लगभग असंभव है क्योंकि हम नहीं जानते कि इस समय एफटीए समझौते में क्या है। अंतत: दोनों देशों को लगता है कि उन्हें कम से कम एक समान सब कुछ मिल रहा है,अंततः यह दोनों के लिए एक जीत की स्थिति होगी"
कहा जा रहा है कि एफटीए के प्रति भारत का दृष्टिकोण ये है कि ये निष्पक्ष और संतुलित हो और प्रतिस्पर्धा के बजाय सहयोग पर अधिक ध्यान केंद्रित हो। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ये इतना आसान नहीं होगा। उनके अनुसार व्यापार के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसका अर्थ ये है कि भले ही विदेशी ब्रैंड भारतीय बाज़ारों में तेज़ी से उपलब्ध होंगे, लेकिन उनकी उपस्थिति भारत के विभिन्न वस्तुओं के छोटे और मध्यम घरेलू ब्रांडों को ख़तरे में नहीं डाल दे।
भारत को उम्मीद है कि ब्रितानी सरकार के अंतरराष्ट्रीय व्यापार विभाग ने भारत के साथ प्रस्तावित एफटीए पर एक रणनीतिक दस्तावेज़ तैयार किया है।
इसमें साफ़ कहा गया है कि इससे ब्रिटेन को फ़ायदा होना चाहिए। दस्तावेज़ में लिखा है, "भारत के साथ एफटीए को यूके के लिए काम करने की ज़रूरत है। ये स्पष्ट हैं कि भारत के साथ कोई भी व्यापार समझौता यूके के उपभोक्ताओं, उत्पादकों और व्यवसायों के लिए सही साबित होना चाहिए। हम भारत के साथ अपने व्यापार समझौते में अपने उच्च पर्यावरण, लेबर, खाद्य सुरक्षा और पशु कल्याण मानकों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"
ब्रिटेन के साथ किसी भी तरह के कारोबारी समझौते में भारत की प्राथमिकता भारतीय छात्रों और पेशेवरों के लिए वीज़ा नियमों में राहत हासिल करना ही होगी। ब्रिटेन भारत के साथ व्यापार समझौते को सुनहरे मौक़े के रूप में देखता है। वहीं भारत चाहता है कि भारतीयों के पास ब्रिटेन में काम करने और वहाँ रहने के अधिक अवसर हों।
ब्रिटेन को उम्मीद है कि अगर समझौता होता है तो भारत ब्रिटेन की ग्रीन टेक्नोलॉजी और ब्रितानी सेवाओं का बड़ा ख़रीदार बनेगा।
लेकिन ब्रिटेन में निर्यातक हरमीत सिंह आहूजा की नज़रों में मुक्त व्यापार में टैरिफ हमेशा सबसे महत्वपूर्ण चीज़ नहीं है जिसे वो कहते हैं, "मुक्त व्यापार निश्चित रूप से संबंधित देशों में आयात और निर्यात को सस्ता कर देगा लेकिन वास्तव में जो मायने रखता है वह है व्यापार करने में आसानी।
क्या दोनों देश वास्तव में एक दूसरे के साथ व्यापार करना आसान बना देंगे? क्या कुछ नौकरशाही, पेपर वर्क, पूंजी प्रवाह के लिए माहौल आसान बनाया जाएगा? क्या दोनों देश पेशेवर संस्थाओं द्वारा एक-दूसरे की योग्यता या प्रमाणन स्वीकार करेंगे? यह मेरे लिए अधिक महत्वपूर्ण है न कि शुल्क की दर में कमी आना।"
ख़ुद उनका अनुभव सकारात्मक नहीं रहा है, जैसा कि वो ख़ुद बताते हैं, "भारत को निर्यात करने के बजाय भारत से आयात करने के बाद मैंने हमेशा प्रक्रिया को कठिन पाया है। लेकिन इनमें से कुछ में हाल के दिनों में सुधार हुआ है। इसलिए मुझे लगता है कि हमें ग़ैर-व्यापारिक बाधाओं के बारे में बात करनी है।"
समझौते पर कब तक मुहर लग सकती है?
ब्रिटेन में विपक्षी लेबर पार्टी के सांसद तनमनजीत सिंह ढेसी ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि एफटीए से 'हम इस समय कोसों दूर हैं।'
वो कहते हैं, "हमसे बहुत वादे किए गए हैं। पहले बोरिस जॉनसन ने वादा किया, ऋषि ने वित्त मंत्री की हैसियत से वादा किया। सब ने कहा था कि ब्रेग्ज़िट के बाद अमेरिका और भारत के साथ जल्द से जल्द एफ़टीए होंगे लेकिन हुआ कुछ नही। इस महीने जो बयान आ रहे हैं, अगर हम उन पर गौर करें तो मालूम पड़ता है कि हमसे ये वादा किया गया, बोरिस जॉनसन और ऋषि सुनक ने जो वादा किया था कि दिवाली तक ट्रेड डील पर मुहर लग जाएगी भी कुछ नहीं हुआ।"
प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुवार के अपने ट्वीट में आशा जताई कि एफटीए पर जल्द समझौता हो जाएगा। भारत के उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने हाल में कहा कि दोनों पक्ष समझौते पर मुहर लगाने के लिए प्रतिबध हैं। ये साफ़ समझ में आता है कि दोनों देशों किसी डेडलाइन पर काम नहीं कर रहे हैं। अंतिम राउंड की बातचीत की तारीख़ भी नहीं साझा की गई है।
हरमीत सिंह आहूजा का तर्क है कि डील तुरंत होनी चाहिए, बाद में इसमें कमियां होंगी उन्हें दूर सकता है।
वह कहते हैं, "हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि व्यापार समझौता अंत है, यह दोनों देशों के बीच घनिष्ठ सहयोग और दोहराव की एक श्रृंखला में पहला क़दम है। मुझे लगता है कि जितनी जल्दी हम हस्ताक्षर कर लेंगे वो अच्छा होगा।''
''बेशक इसमें समय के साथ बदलाव की आवश्यकता होगी। हम जल्दी से शुरू करते हैं, हम इसे आसान बनाना शुरू करते हैं और पहला दिन पिछले दिन की तुलना में बेहतर होता है। वहाँ से हम आगे बढ़ सकते हैं और देख सकते हैं कि आगे कैसे सुधार किया जाए। पूर्णता की खोज में हमें प्रक्रिया को धीमा नहीं करनी चाहिए।"
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर दोनों पक्ष रियायतें देने को तैयार हो जाएं तो अगले साल के शुरू तक एक अंतरिम समझौता हो सकता है।