मोदी आए तो दक्षिण में संघ कितना मजबूत हुआ?

शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2014 (10:01 IST)
- इमरान क़ुरैशी बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

हर बार विपरीत परिस्थितियों में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने अपनी क्षमता का विकास कर अपना प्रसार किया है। दक्षिण भारत के विभिन्न राज्यों के अलग-अलग इलाकों में इसकी रणनीतियां अलग-अलग रही हैं लेकिन नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय पटल पर आने के बाद इसमें तेजी आई है।


नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आरएसएस को विस्तार के लिए ख़ुराक मिल रही है। लेकिन कैसे?

इमरान कुरैशी की पड़ताल : भारतीय जनता पार्टी के उत्थान में नरेंद्र मोदी की क्या भूमिका रही, ये सभी जानते हैं। अब जब वे भारत के प्रधानमंत्री हैं तो गुजरात से राष्ट्रीय स्तर तक उनके पहुंचने से उनके पैतृक संगठन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को विस्तार में बल मिल रहा है।

2013 से 2014 के बीच तमिलनाडु की आरएसएस इकाई की शाखाओं में पंजीकृत सदस्यों की संख्या दोगुनी हो गई है।

बढ़ती शाखाओं की संख्या : संघ की तमिलनाडु इकाई के प्रवक्ता एन सादागोपन ने बीबीसी हिंदी को बताया, 'पहले हमारी शाखाओं में एक दिन में 10 से कम नए सदस्यों का पंजीकरण होता था। पिछले 18 महीनों में जब से मोदी जी राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभरे हैं, हम प्रतिदिन 20 नए सदस्यों का पंजीकरण कर रहे हैं।'

यह दिलचस्प है कि कठिन दौर में संघ का उभार ज्यादा होता दिखा है। मीनाक्षीपुरम की एक घटना में तथाकथित निचलती जाति के सैकड़ों लोगों ने जब इस्लाम कबूल किया था तो हिंदू समाज स्तब्ध था। इस घटना ने समाज के जातीय भेदभाव को उजागर किया लेकिन इसका फायदा भी संघ को हुआ और इसके बाद संघ मजबूत होने लगा।

तब से ये नई ऊचाइयों की ओर बढ़ता ही जा रहा है। वजहें कई हो सकती हैं:- रामानाथनपुरम में इस्लाम में धर्मांतरण या नागरकोइल में कई हिंदुओं का ईसाई होना या फिर चेन्नई में 1993 में संघ के मुख्यालय पर हुए विस्फोट या 1998 में कोयंबटूर में हुए विस्फोट की घटना।

सादागोपन ने कहा, '1980 के दशक से अब तक हमने अपने 68 काडर खोए हैं। हमलों के बावजूद हमारे शाखाओं की संख्या 1800 हो गई है। बड़ी संख्या में नौजवान जिसमें आईटी पेशेवर भी शामिल हैं, हमारी साप्ताहिक शाखाओं में आते हैं।'

उद्देश्य : संयुक्त आंध्रप्रदेश में आरएसएस की रणनीति अलग थी क्योंकि ईसाइयों का प्रभाव विशेषकर आदिवासियों में मजबूत है।

संघ के आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के प्रभारी वी नागराज ने बताया, 'हम धर्म जागरण और हिंदू मूल्यों की शिक्षा देने के आयोजन के साथ-साथ वनवासी कल्याण आश्रम के माध्यम से सामुदायिक विकास के लिए प्रशिक्षण देने का काम करते हैं। लेकिन हमारा उद्देश्य आदिवासियों के मानवाधिकार और मज़दूरी के अधिकार के लिए लड़ना भी है।'

उन्होंने बताया, 'रणनीतिक बाध्यताएं एक ही राज्य के हर क्षेत्र में अलग-अलग होती है। हिंदू समाज के साथ समस्याएं ज्यादा हैं। छूआछूत ने हिंदू समाज को कमजोर बना दिया है। इसलिए मंदिर में सभी के लिए प्रवेश, सभी के लिए पानी और दलितों सहित सभी को दफनाने के लिए एक ही जमीन हो इस पर हमारा जोर है।'

प्रसिद्ध लेखक, राजनीतिक कार्यकर्ता और विश्लेषक कांचा ईलैय्या कहते हैं, 'उन्होंने ये माना है कि अगर अपना अस्तित्व कायम रखना है तो पिछड़ी जातियों और दलितों को हिंदुत्व के खोल में लाना होगा। उन्होंने पहले धर्म के ईर्द-गिर्द काम करना शुरू किया, फिर राजनीति पर। इसी रणनीति के तहत उन्होंने मोदी को अजमाया और ये काम कर गया।'

सक्रिय संगठन : लेकिन उन्होंने बताया, 'वे आदिवासियों को उस तरह की आध्यात्मिक संतुष्टि नहीं दे सकते जैसी ईसाइयत देने में सक्षम है।'

कर्नाटक में संघ का उभार लगातार हो रहा है। इसकी सुबह की तुलना में शाम में चलने वाली और सप्ताहांत पर लगने वाली शाखाओं की संख्या बढ़ गई है। कर्नाटक में बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और श्रीराम सेना जैसे अन्य संगठन भी सक्रिय हैं।

लेकिन कर्नाटक में भाजपा के सत्ता में आने के साथ इन संगठनों के हौसले बुलंद हो गए थे।

नए चर्च का धर्मप्रचार कैथोलिक चर्च के लिए भी खतरा बनता जा रहा है। लेकिन बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने तटीय शहर मंगलोर में कैथोलिक चर्च पर भी हमला किया है जिससे राष्ट्रीय स्तर पर समुदाय की मुश्किलें बढ़ गई हैं।

संघ के वरिष्ठ सदस्य ने पहचान छुपाने की शर्त पर कहा, 'यह बहुत मूर्खतापूर्ण था कि उन्होंने धर्म प्रचारकों और कैथोलिक चर्च में फर्क नहीं समझा। आज हमारे संगठन के समाने ईसाइयत में धर्मांतरण सबसे बड़ी चुनौती है।'

झटका : वैलेंटाइन डे के खिलाफ अभियान और श्रीराम सेना के हमले ने तटीय इलाकों में भाजपा की जमीन खिसका दी है। भाजपा 2013 का चुनाव भी उस वक्त हार गई थी जब इसके सहयोगी संगठनों के सदस्यों ने युवाओं को 'लव जिहाद' के नाम पर एक-दूसरे से मिलने से रोकना शुरू किया था।

लेकिन ज्यादा बड़ा झटका बीजेपी को उस वक्त लगा जब राज्य के मुख्यमंत्री और संघ के स्वंयसेवक बीएस येदुरप्पा के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उन्होंने संघ का आदेश मानने से मना कर दिया।

तो क्या संघ की शाखाओं में दिए जा रहे प्रशिक्षण में कोई कमी है?

पहचान छुपाने के शर्त पर संघ के एक कार्यकर्ता ने कहा, 'अगर कुछ छात्र आत्म केंद्रित हो जाते हैं और शाखा में सिखाए मूल्यों को भूल जाते हैं तो आप इसके लिए शिक्षक को दोष नहीं दे सकते हैं।'

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