अमेरिका में एक तरफ़ मुसलमान बहुल आबादी वाले सात देशों से आने वालों पर लगी पाबंदी पर हंगामा मचा हुआ है तो वहीं कई अमेरिकी कंपनियों ने एच-1बी वीज़ा पर काम कर रहे अपने भारतीय कर्मचारियों को फ़िलहाल अपनी भारत यात्रा टालने या रद्द करने का सुझाव दिया है। राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के आदेश के बाद अमेरिका में पहले से एच-1 बी वीज़ा पर आकर काम कर रहे लोगों में अफरातफरी का आलम है।
अमेरिकी कंपनियों के क़ानूनी सलाहकारों के अनुसार पिछले दिसंबर के बाद से भारत की यात्रा पर गए कई एच-1 बी वीज़ाधारकों को वापस अमेरिका लौटने में काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कई को वीज़ा पर मुहर लगवाने के लिए दोबारा से गहन सरकारी जांच से गुज़रना पड़ रहा है।
बीबीसी को मिली जानकारी के अनुसार यहां पिछले चार साल से अपनी पत्नी और बच्चे के साथ रह रहे एक दक्षिण भारतीय वीज़ाधारक अपने भाई की शादी में शामिल होने के लिए भारत गए थे। वे अब वहां से लौट नहीं पा रहे हैं जबकि उनका परिवार यहीं है। ये जानकारी उनके वकील ने उनका नाम नहीं छापने की शर्त पर दी है।
आप्रवासन और एच-1 बी वीज़ा पर काम करने वाली सबसे बड़ी कानूनी कंपनियों में से एक, मूर्ति लॉ फ़र्म, ने अपनी बेवसाइट पर लिखा है कि आप्रवासन पर ट्रंप प्रशासन के नए आदेश के जारी होने से पहले से ही वो 221(g) क़ानून के तहत वीज़ा रद्द किए जाने के मामलों में तेज़ी देख रहे हैं।
फ़र्म के अनुसार, "जब तक बिल्कुल ही ज़रूरी न हो, यात्रा नहीं करें। इस वक्त स्थिति काफ़ी उथल-पुथल भरी है और बिना किसी चेतावनी के क्या बदलाव आ जाए ये किसी को नहीं पता।"
न्यू जर्सी की एक कंपनी ने अपने भारतीय कर्मचारियों से कहा है कि "221 (g) के मामलों में चौंकाने वाली तेज़ी दिख रही है और उसकी कोई वजह नहीं बताई जा रही।" इस क़ानून के तहत एच-1 बी वीज़ा का नया आवेदन हो या पहले कई बारी जारी हो चुका केस हो, दूतावास के अधिकारी आवेदक को 221 (g) फ़ॉर्म जारी कर दे सकते हैं और उस फॉर्म में मिली जानकारी पर अंसतुष्टि जताकर वो पूरे मामले को और आगे सरकारी जांच के लिए भेज सकते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में महीनों लग सकते हैं और आवेदक की नौकरी भी जा सकती है।
हाइटेक इमिग्रेशन लॉ ग्रुप के वकील जॉनसन म्यालिल ने बीबीसी को बताया कि उनके भी कई ग्राहक इसकी चपेट में आ गए हैं।
उनका कहना था कि आमतौर पर 221(g) तब जारी किया जाता है जब दूतावास के अधिकारी आवेदन के समय दी गई जानकारी से संतुष्ट नहीं होते।
म्यालिल का कहना था कि आमतौर पर किसी के पासपोर्ट पर एक बार मुहर लग चुकी हो और उसके एच-1 बी की मंज़ूरी बरकरार हो तो दूसरी या तीसरी बार दूतावास के अधिकारियों का रवैया काफ़ी लचीला रहता है। दिसंबर से वैसे मामलों को भी रोका जा रहा है और मुहर लगाने के लिए ऐडमिनिस्ट्रेटिव प्रोसेसिंग (गहन सरकारी जांच) के लिए भेजा जा रहा है। उनका कहना था, "माना जा रहा है कि नए प्रशासन की एच-1 बी नीति क्या होगी ये स्पष्ट नहीं है इसलिए संभवत: दूतावास के अधिकारी ये रुख़ अपना रहे हैं।"
यही वजह है कि कंपनियां अपने भारतीय स्टाफ़ से फ़िलहाल अपनी यात्रा टालने को कह रही हैं। न्यू जर्सी और वर्जीनिया की दो कंपनियों के ऐसे आदेश की प्रति बीबीसी के पास है। अमेरिकी विदेश विभाग के ब्यूरो ऑफ़ काउंसलर अफ़ेयर्स की वेबसाइट पर कोई ऐसी जानकारी नहीं जिसके तहत नियमों में कड़ाई या बदलाव के आदेश हों।
वकीलों का कहना है कि पिछले दिनों अमेरिकी हवाई अड्डों पर भी कई एच-1 बी वीज़ाधारकों को गहन पूछताछ से भी गुज़रना पड़ा है, उनके फ़ोन की जांच की गई है, उनकी कंपनी, उनके काम के बारे में पूछा गया है और ये भी पूछा गया है कि जितने दिनों के लिए वो अमेरिका से बाहर थे क्या उन्हें उसका पैसा दिया गया है?
राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने एच-1 बी वीज़ा को एक चुनावी मुद्दा बनाया था और कहा था कि वो सबसे पहले अमेरिकी नागरिकों के हितों की रक्षा करेंगे। माना जा रहा है कि बहुत जल्द ही वो एच-1 बी से जुड़े एक एक एक्ज़िक्यूटिव ऑर्डर पर दस्तख़त करने जा रहे हैं जिससे इसके प्रावधानों में बदलाव आ सकता है।
अमेरिका में एच-1 बी एक विवादास्पद मामला बन चुका है। क्योंकि कहा जा रहा है कि आईटी उद्योग से जुड़ी कंपनियां आधी कीमत पर भारतीय या दूसरे देशों के इंजीनियरों को ले आती हैं और अमेरिकी नागरिकों को बेरोज़गार रहना पड़ता है। पिछले हफ़्ते कांग्रेस में एक डेमोक्रेट सांसद ने एक बिल भी पेश किया है जिसमें एच-1 बी के तहत नौकरी दिए जानेवालों का सालाना वेतन साठ हज़ार डॉलर से बढ़ाकर एक लाख तीस हज़ार किए जाने का प्रस्ताव है।
वर्जीनिया में एक कंपनी के सीईओ ने, अपना नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर बीबीसी को बताया कि अगर ये बिल पास होता है तो उनके पास एच-1 बी पर काम कर रहे भारतीय कर्मचारियों को नौकरी से निकालने के अलावा कोई चारा नहीं होगा। उनका कहना था। "जिस तरह की हमारी ज़रूरत है उस तरह के लोग अमेरिका में हमें मिलते भी नहीं हैं और जिस वेतन की बात हो रही है वो उस तरह के हुनर के लिए बहुत ज़्यादा है।"
ट्रंप के भारतीय समर्थकों का कहना है कि वो एक बिज़नेसमैन हैं और इन बातों को समझते हैं इसलिए एच-1बी वीज़ाधारकों को फ़िलहाल घबराने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन भारत में इस मामले को लेकर किस तरह की घबराहट है इसका अंदाज़ा इसी बात से लग सकता है कि कांग्रेस में एक डेमोक्रेट की तरफ़ से एक हफ़्ते पहले पेश किए गए एक बिल, जिसके पास होने के आसार बेहद कम हैं, की ख़बर छपने पर कई कंपनियों के शेयर औंधे मुंह गिर गए।
एच1बी वीजा ऐसे विदेशी पेशेवरों के लिए जारी किया जाता है जो ऐसे 'खास' कार्य में कुशल होते हैं। इसके लिए आमतौर उच्च शिक्षा की जरूरत होती है।