नज़रिया: आसाराम बापू का वेलेंटाइंस डे आइडिया

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017 (12:29 IST)
- राजेश प्रियदर्शी
 
वेलेंटाइंस डे को हटाकर उसकी जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने का प्रचार करने वाली साइटें युवकों को मानो संदेश दे रही हैं कि बेटा, गुलाब माताजी के पूज्य चरणों में अर्पित कर दो, गर्लफ्रेंड के चक्कर में न पड़ो। अगर आप इन साइट्स को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं तो व्हाट्सऐप पर कोई आपको आगाह कर जाएगा- 'महान राष्ट्र की युवा पीढ़ी में वासना का ज़हर भरने की विदेशी साज़िश से सावधान!'
वेलेंटाइंस डे उन ख़ास दिनों में है जब 'अखंड भारत' साकार हो उठता है। सच्ची हिंदू-मुस्लिम एकता देखने को मिलती है जब सरहद के दोनों तरफ़, संस्कृति और नैतिकता के पहरेदार ट्वेंटी-20 के फ़ील्डरों की तरह चौकस हो जाते हैं...
 
पाकिस्तान धर्म और संस्कृति की रक्षा में भारत से हमेशा आगे रहा है, राष्ट्रपति ममनून हुसैन पिछले ही साल वेलेंटाइंस डे को 'अनैतिक और इस्लामी संस्कृति के विरुद्ध' बताते हुए उस पर प्रतिबंध लगा चुके हैं।
 
अलग होने के बाद सत्तर सालों में भारत और पाकिस्तान अलग-अलग राह चले हैं और उनकी तुलना करना किसी तरह सही नहीं होगा। लेकिन एक मासूम सवाल भारत में बहुत सारे लोगों के दिमाग़ में कुलबुलाता है, पाकिस्तान में अगर 'इस्लामी संस्कृति' के विरुद्ध कुछ करने की अनुमति नहीं है तो भारत में 'हिंदू संस्कृति' के प्रतिकूल कुछ भी क्यों बर्दाश्त किया जाए?
 
इस मासूम सवाल का जवाब है- क्योंकि भारत के संविधान के मुताबिक़, ये सेक्युलर डेमोक्रेसी है जिसका सांस्कृतिक और राजनैतिक अतीत उदारवादी रहा है। ऐसा जवाब देने पर 'शेख़ुलर', 'सिकुलर', 'लिबटार्ड' और 'बुद्धूजीवी' जैसे ताने बरसाए जाते हैं क्योंकि ऐसे लोग बहुसंख्यकों के सांस्कृतिक वर्चस्व की राह के रोड़े हैं।
 
कोई शक नहीं है महानता में लेकिन...
कम-से-कम पाँच हज़ार वर्षों का निरंतर प्रवाह है विराट भारतीय संस्कृति। वह आदिवासी, हिंदू, बौद्ध, जैन, इस्लामी और ईसाई संस्कृतियों का संगम है जिसे सिर्फ़ हिंदू संस्कृति बनाने की कोशिश हर बार नाकाम ही होती दिखती है।
 
बीते साल ओणम पर जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 'वामन जयंती' की बधाई दी तो केरल के लोगों की नाराज़गी का उन्हें सामना करना पड़ा क्योंकि उस दिन वहाँ के हिंदू, मुसलमान और ईसाई अपने प्रिय पौराणिक राजा बलि को याद करते हैं, विष्णु के अवतार वामन को नहीं।
 
इसके अलावा, हिंदू संस्कृति की कोई एक सर्वमान्य व्याख्या असंभव है, और फिर उसकी व्याख्या करने का अधिकार किसके पास है? क्या वसंतोत्सव और मदनोत्सव, जिनके वर्णन से संस्कृत साहित्य भरा पड़ा है, वो महान भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं?
 
भारत के हर प्रांत, हर क्षेत्र का हिंदू, दूसरे हिंदू से अलग है और उसे एक हिंदू शक्ति बनाने का सपना, एक राजनीतिक सपना है। ये जिनका राजनीतिक सपना है, वे ही हिंदू संस्कृति की व्याख्या का एकाधिकार हासिल करना चाहते हैं।
सोचिए, ऐसा क्यों है कि गोवा के हिंदू मुख्यमंत्री बीफ़ पर बैन लगाने से खुल्लमखुला इनकार कर चुके हैं और संघ के नेता अनेक बार सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि पूर्वोत्तर भारत, केरल और गोवा के संघ कार्यकर्ता बीफ़ खा सकते हैं, संघ को कोई एतराज़ नहीं है।
 
ये सच है कि वेलेंटाइंस डे भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है, लेकिन जन्मदिन पर केक काटना, कार्ड देना, हैप्पी न्यू ईयर विश करना वगैरह भी भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं, ये भी सच है कि वेलेंटाइंस डे के पीछे बाज़ार की ताक़त है, तो अब दीपावली और रक्षाबंधन कहां बाजार की पकड़ से बाहर हैं।
 
वेलेंटाइंस डे के विरोध करने वाले लोग ये मानते दिखते हैं कि भारत की सभी समस्याओं का समाधान हिंदू धर्म की जड़ों में छिपा है, भारत जब पूरी तरह हिंदू हो जाएगा तो फिर से महान हो जाएगा, इसके लिए सतयुग की तरफ़ देश को लौटाने के सभी प्रयास किए जाने चाहिए। याद कीजिए, जब केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने बीज हाथ में मंत्रोच्चार करने की सलाह दी थी।
 
कथानक कुछ इस तरह बुना जा रहा है जिसमें तथ्य, तर्क, लोकतंत्र, व्यक्तिगत आज़ादी, धर्मनिरपेक्षता, विज्ञान, कला, साहित्य और इतिहास...इन सबके ऊपर है- प्रश्नों से परे हिंदू संस्कृति की महानता। हर धर्म, हर संस्कृति, हर सभ्यता को हक़ है यशोगान का, उसका भविष्य भी टिका है इसी पर, लेकिन भारत जैसे परतदार देश में ऐसे किसी कोरस में सत्ता से जुड़े लोगों का सुर मिलाना बाक़ी के बीसियों करोड़ों लोगों को कैसा संदेश देगा, इसकी चिंता क्या बेवजह है?
 
सांस्कृतिक इंजीनियरिंग की कोशिश
वामन जयंती और मातृ-पितृ पूजन दिवस जैसे दिव्य विचार एक ही गंगोत्री से आते हैं। वेलेंटाइंस डे के मामले में बजरंग दल के बल को ख़ास कामयाबी नहीं मिलती देख, सोशल मीडिया के इस दौर में वैकल्पिक सांस्कृतिक धारा बहाने वाले लोग एक सूत्र में जुड़े हुए हैं।
 
मातृ-पितृ पूजन दिवस का ऑरिजनल आइडिया कारागृह में बंद संत आसाराम बापू का है, उन्होंने मातृ-पितृ पूजन दिवस की पूरी विधि, मंत्र, पूजन सामग्री, आरती और महात्म्य सब बताया है। अगर आप इस पेज को ग़ौर से देखें तो पता चलता है कि शास्त्र कैसे रचे जाते हैं।
 
आसाराम बापू का ये आइडिया दो साल पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को बहुत पसंद आया, उन्हें मालूम था कि उनके शिखर पुरुषों को भी पसंद आएगा, इस तरह मातृ-पितृ पूजन दिवस 'सेक्युलर डेमोक्रेटिक' भारत के एक राज्य में सरकार प्रायोजित कार्यक्रम बन गया।
 
जेल जाने की बदनामी के बाद आसाराम बापू इसका क्रेडिट लेने की दशा में नहीं रहे, और क्रेडिट देने वाले जानते हैं कि इससे फ़ायदा नहीं, नुकसान होगा।
 
लेकिन मातृ-पितृ दिवस का आयोजन लगातार जारी है, अगर आप गूगल सर्च करें तो आपको बाबा रामदेव, योगी आदित्यनाथ, रमण सिंह, राजस्थान सरकार के कई मंत्रियों के वीडियो मिल जाएंगे जो 14 फ़रवरी की इस नवजात परंपरा को उत्साहपूर्वक आगे बढ़ा रहे हैं।
 
मातृ-पितृ पूजन दिवस या वेलेंटाइंस डे कोई बुराई नहीं है, लेकिन उनके पीछे की बारीक़ राजनीति को समझने की कोशिश की जानी चाहिए। जनता जैसे जीवन जीती है वही संस्कृति है, वही तय करेगी, कोई धर्मगुरु या संगठन नहीं।

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