पीएम केयर्स फंड से वेंटिलेटर ऑर्डर हुए, कितने आए, कितने कारगर, कितने बेकारः बीबीसी पड़ताल

BBC Hindi
मंगलवार, 27 अप्रैल 2021 (14:07 IST)
कीर्ति दुबे, बीबीसी संवाददाता
बीते साल पीएम केयर्स फंड से 2000 करोड़ रुपए वेंटिलेटर्स के लिए दिए गए थे, उन वेंटिलेटर्स का क्या हुआ? बीबीसी ने अपनी पड़ताल में ये पाया -
पीएम केयर्स फंड से ऑर्डर किए गए 58 हज़ार 850 वेंटिलेटर्स में से तक़रीबन 30 हज़ार वेंटिलेटर्स ख़रीदे गए
कोरोना की पहली लहर का ज़ोर कम होने के बाद वेंटिलेटर की ख़रीद में ढील
एक ही स्पेसिफ़िकेशन वाले वेंटिलेटरों की क़ीमतों में भारी अंतर
बिहार, यूपी, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्यों के कई अस्पतालों में पीएम केयर्स के वेंटिलेटर धूल खा रहे हैं
कई जगहों से मिल रही हैं वेंटिलेटरों के ठीक से काम न करने की शिकायतें
कहीं प्रशिक्षित स्टाफ़ नहीं, कहीं वायरिंग ख़राब, कहीं एडॉप्टर नहीं

पढ़िए पूरी रिपोर्ट विस्तार से
 
दिल्ली के साकेत में रहने वाले आलोक गुप्ता अपनी 66 साल की माँ के लिए वेंटिलेटर वाला एक बेड तलाश कर रहे हैं। दिल्ली, फ़रीदाबाद, गुड़गाँव और नोएडा के सभी अस्पतालों से उन्होंने संपर्क किया है लेकिन उन्हें कहीं कोई बेड नहीं मिला। उनकी माँ का ऑक्सीजन लेवल जानलेवा स्तर तक गिर चुका है।
 
वो बताते हैं, "जिस दिन ऑक्सीजन लेवल 90 से नीचे आया, तब से अस्पताल में वेंटिलेटर वाला बेड खोज रहे हैं। लेकिन अब तक नहीं मिला है, मेरी माँ को आईसीयू बेड की सख़्त ज़रूरत है।"
 
यूपी के अलीगढ़ में 18 साल के नदीम ने दो दिन पहले आईसीयू में बेड न मिलने के कारण दम तोड़ दिया।
इलाहाबाद के स्वरूप रानी अस्पताल में 50 सालों तक बतौर डॉक्टर काम करने वाले 80 साल के डॉ। जेके मिश्रा को उसी अस्पताल में एक वेंटिलेटर वाला बेड नहीं मिल सका और इलाज के बिना उन्होंने दम तोड़ दिया। उनकी पत्नी शहर की जानी मानी डॉक्टर हैं लेकिन अपने पति को बचा नहीं सकीं।
 
राजधानी और देश के बाक़ी शहरों के अस्पतालों में जो मंज़र है उसने लिए 'भयावह' शब्द भी छोटा है। एक-एक साँस के लिए तड़पकर दम तोड़ने वालों की कितनी ख़बरें हर दिन लोग देख-पढ़ रहे हैं।
 
पहले से पता था सब कुछ
जब पिछले साल देश में कोरोना के मामले बढ़े तो एक बात जो पूरी तरह साफ़ हो चुकी थी वो ये कि अस्पताल आने वाले कोविड-19 से संक्रमित लोगों को साँस लेने में परेशानी हो रही है और देश में वेंटिलेटर की बड़ी कमी है।
 
वेंटिलेटर एक तरह का मेडिकल डिवाइस है जो संक्रमित हो चुके इंसानी फेफड़ों के कमज़ोर होने पर उसे ज़रूरी ऑक्सीजन दे कर काम करने की स्थिति में बनाए रखता है। इसके इस्तेमाल से गंभीर मरीज़ों की जान बचाई जा सकती है।
 
वैसे तो साल 2020 में देश में वेंटिलेटर्स की संख्या को लेकर कोई सरकारी आँकड़ा उपलब्ध नहीं था लेकिन सरकारी अस्पतालों में कुल आईसीयू बेड के हिसाब से अंदाज़न देश में 18 से 20 हज़ार वेंटिलेटर उपलब्ध थे। माना जा रहा था कि भारत में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए दो लाख तक वेंटिलेटरों की ज़रूरत हो सकती है।

27 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री मोदी ने पीएम केयर्स फंड का ऐलान किया। इस फ़ंड को कोविड-19 को देखते हुए शुरू किया गया था, हालाँकि प्रधानमंत्री राहत कोष पहले से मौजूद है। ख़ुद प्रधानमंत्री ने देशवासियों से इसमें सहयोग देने के लिए कहा।
 
जानी-मानी हस्तियों और औद्योगिक घरानों ने इसमें बड़ी रकम दान की, इस फंड के लिए पैसे देने वालों को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉनस्बिलिटी (सीएसआर) के तहत टैक्स में छूट की सुविधा दी गई।
 
कई मंत्रालयों और सार्वजनिक निगमों में लोगों की सैलरी का कुछ हिस्सा काटकर पीएम केयर्स में डोनेट किया गया। हालाँकि इस फ़ंड में कितने पैसे जुटे और उन पैसों का क्या हुआ इसकी जानकारी नहीं मिल सकती क्योंकि सरकार ने इस फंड को काफ़ी आलोचना के बावजूद सूचना के अधिकार संबंधी आरटीआई एक्ट के दायरे से बाहर रखा है।
 
58,850 वेंटिलेटर्स में से 30,000 वेंटिलेटर्स ही ख़रीदे गए
18 मई 2020 को प्रधानमंत्री के सलाहकार भास्कर कुल्बे ने स्वास्थ्य मंत्रालय को एक चिट्ठी लिखी जिसमें पीएम केयर्स फ़ंड से दो हज़ार करोड़ की रक़म से 50 हज़ार 'मेड इन इंडिया'वेंटिलेटर्स का ऑर्डर दिए जाने की जानकारी दी थी।
 
इस बीच स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से मार्च महीने के अंत में ही वेंटिलेटर ख़रीदने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी थी। 5 मार्च 2020 को स्वास्थ्य मंत्रालय के उद्यम एचएलएल ने वेंटिलेटर्स की सप्लाई के लिए एक टेंडर निकाला।
 
इसमें एचएलएल ने टेक्निकल फ़ीचर्स की लिस्ट जारी की जो इन वेंटिलेटर में होनी चाहिए। इस लिस्ट को समय-समय पर बदला गया और कुल नौ बार संसोधन किए गए। 18 अप्रैल, 2020 को नौवीं बार कुछ नए फ़ीचर जोड़े गए यानी कंपनियों को दिए गए फ़ीचर्स में बदलाव होता रहा।
 
सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज की साल 2020 की एक आरटीआई पर दिए गए जवाब से पता चला कि सरकारी उद्यम भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) को तीस हज़ार वेंटिलेटर बनाने का कॉन्ट्रैक्ट मिला है। इसके लिए बीईएल ने मैसूर की कंपनी स्कैनरे से मदद ली।
 
नोएडा की कंपनी एग्वा हेल्थकेयर को दस हज़ार वेंटिलेटर बनाने का ऑर्डर मिला। इससे पहले एग्वा के पास वेंटिलेटर बनाने का कोई अनुभव नहीं था।आंध्र प्रदेश सरकार की एक कंपनी आंध्र प्रदेश मेडटेक ज़ोन यानी एएमटीज़ेड को साढ़े तेरह हज़ार वेंटिलेटर बनाने का ऑर्डर मिला।
 
गुजरात के राजकोट की कंपनी ज्योति सीएनसी को पाँच हज़ार वेंटिटेलर का ठेका मिला, ये वही कंपनी है जिसके धमन-1 वेंटिलेटर को लेकर अहमदाबाद के डॉक्टरों ने सवाल खड़े किए थे लेकिन इसके बावजूद कंपनी को ऑर्डर दिया गया। गुरूग्राम की कंपनी अलाइड मेडिकल को 350 मशीनों का ऑर्डर मिला।
 
पीएम केयर्स के तहत कितने वेंटिलेटर बनाए गए ये जानने के लिए बीबीसी ने आरटीआई के ज़रिए और मैन्युफ़ैक्चर कंपनियों के मालिकों से बात करके स्थिति का पता लगाने की कोशिश की।
 
7 सितंबर, 2020 के आरटीआई आवेदन के जवाब में एचएलएल ने बताया कि बीईएल ने 24332, एग्वा ने 5000 और अलाइड मेडिकल ने 350 वेंटिलेटर और बीपीएल के 13 वेंटिलेटरों की सप्लाई की है। इसके बाद से वेंटिलेटर सप्लाई नहीं किए गए हैं। एक साल बाद 29695 वेंटिलेटरों की सप्लाई हुई है जबकि ज़रूरत डेढ़ लाख से अधिक वेंटिलेटरों की थी।
 
वेंटिलेटर तैयार होने के बावजूद एचएलएल ने परचेज़ ऑर्डर नहीं दिया
 
एग्वा हेल्थ ने आख़िरी खेप जुलाई 2020 के पहले के सप्ताह में भेजी और बीते सितंबर 2020 तक उसे 41 करोड़ 59 लाख 40 हज़ार का पेमेंट किया गया, अलाइड मेडिककल को उसकी 350 वेंटिलेटर्स के लिए 27 करोड़ 16 लाख के पेमेंट हुआ और बीईएल के वेंटिलेटर्स के लिए एक करोड़ 71 लाख का भुगतान किया गया।
 
आरटीआई के जवाब से एक बात निकल कर सामने आती है और वो ये कि एक ही सरकारी टेंडर में एक ही तरह के स्पेसिफ़िकेशन वाली अलग-अलग कंपनी के वेंटिलेटर्स की क़ीमत में भारी अंतर है। अलाइड मेडिकल के एक वेंटिलेटर की क़ीमत 8.62 लाख है और एग्वा के एक वेंटिलेटर की क़ीमत 1.66 लाख है यानी कीमत में सात-आठ गुना तक का अंतर है।
 
बीबीसी ने स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव और नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल को मेल के ज़रिए वेंटिलेंटर के मामले में सवाल भेजे हैं जिसका जवाब मिलते ही इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा। नोएडा की कंपनी एग्वा हेल्थकेयर जिसका इससे पहले वेंटिलेटर बनाने का कोई अनुभव नहीं था। उसने 10 हज़ार के ऑर्डर में से अब तक सिर्फ़ 5 हज़ार वेंटिलेटर ही डिलीवर किए हैं। ये जानकारी ख़ुद कंपनी ने दी है। 
 
एग्वा के सह-संस्थापक प्रो. दिवाकर वैश्य ने बीबीसी के बताया कि बीते साल जुलाई के पहले सप्ताह में उनके वेंटिलेटर डिलीवर हो गए और उसके बाद से हमसे वेंटिलेटर नहीं लिए गए। अब हमें कुछ सप्ताह पहले बचे हुए पाँच हज़ार वेंटिलेटर देने को कहा गया है, हालाँकि उन्होंने बीबीसी को इससे जुड़े कोई दस्तावेज़ नहीं दिखाए।
 
आंध्र प्रदेश राज्य सरकार के अधीन काम करने वाली आंध्र प्रदेश मेडटेक ज़ोन (एएमटीज़ेड) जिसे साढ़े 13 हज़ार वेंटिलेटर्स के ऑर्डर मिले थे उसने अब तक एक भी वेंटिलेटर सरकार को नहीं दिया है। एएमटीज़ेड को साढ़े नौ हज़ार बेसिक वेंटिलेटर और 4 हज़ार हाई-एंड वेंटिलेटर बनाने का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था।
 
बीबीसी को मिली वेंकटेश नायक की आरटीआई के मुताबिक़ बेसिक मॉडल की क़ीमत एक लाख 66 हज़ार रुपए तय हुई और हाई एंड मॉडल की क़ीमत 8 लाख 56 हज़ार रुपए तय हुई। अप्रैल में एएमटीज़ेड ने चेन्नई की एक मेडिकल टेक्नॉलजी कंपनी ट्रिविटॉन हेल्थ केयर को 6 हज़ार वेंटिलेटर बनाने का काम दिया।
 
ट्रिविट्रॉन के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. जीएसके वेलू ने बीबीसी को बताया कि उनकी कंपनी को 4000 बेसिक मॉडल और 2000 हाई एंड मॉडल बनाने को कहा गया। इस वेंटिलेटर के बनने के बाद और हमें कई टेक्निकल ट्रायल देने पड़े। इससे देरी हुई जब तक ट्रायल पूरे हुए तब तक कोरोना की पहली लहर थोड़ी कम होने लगी थी और हमें कहा गया कि वेंटिलेटर की ज़रूरत नहीं है।
 
वेलु कहते हैं, "हमारे पास काफ़ी स्टॉक पड़ा हुआ था लेकिन एचएलएल की ओर से एक कोई परचेज़ ऑर्डर नहीं मिला। एचएलएल की ओर से कहा गया कि सरकार वैक्सीनेशन पर ज़ोर दे रही है और इतने वेंटिलेटर की ज़रूरत नहीं है लेकिन दूसरी लहर आने के बाद दो सप्ताह पहले हमें ऑर्डर मिला है और हमने 1000 वेंटिलेटर गुजरात सहित कुछ राज्य सरकारों को भेजा है"।
 
मंत्रालय की ओर से एचएलएल ने सीधे ट्रिविटॉन को ठेका नहीं दिया था बल्कि एएमटीज़ेड को ठेका दिया गया उसने ट्रिविटॉन को ये कॉन्ट्रैक्ट दिया यानी उसने अपने साढ़े 13 हज़ार ऑर्डर में से 6 हज़ार वेंटिलेटर का ऑर्डर ट्रिविटॉन को आगे बढ़ा दिया।
 
ट्रिविटॉन के वेंटिलेटर के बेसिक मॉडल की क़ीमत डेढ़ लाख का क़रीब है और हाई एंड मॉडल की क़ीमत 7 लाख से ज़्यादा है। हालाँकि वेलु कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि सरकार हाई एंड मॉडल ख़रीदना चाहती है। साथ ही, ट्रिविट्रॉल हेल्थ केयर को वेंटिलेटर्स का पूरा भुगतान तक नहीं किया गया है।
 
सितंबर में छपी हफ्‍फपोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, ट्रिविट्रॉन को 10 हज़ार वेंटिलेटर का ऑर्डर आंध्र प्रदेश एएमटीज़ेड की ओर से दिया गया था। हालाँकि बीबीसी से बात करते हुए वेलू इस बात से इनकार करते हैं।
बीबीसी ने एएमटीज़ेड को ईमेल के ज़रिए सवालों की लिस्ट भेजी जिसका जवाब हमें अब तक नहीं मिला है।
 
एएमटीज़ेड का मामला
20 जुलाई, 2020 को एक आरटीआई के जवाब में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने बताया कि मंत्रालय ने पीएम केयर्स से मिले 2 हज़ार करोड़ रुपए में 58 हज़ार 850 वेंटिलेटर का ऑर्डर दिया था। लेकिन डायरेक्टर जनरल ऑफ़ हेल्थ सर्विस यानी डीजीएचएस की टेक्निकल कमेटी के क्लीनिकल ट्रायल में गुजरात की कंपनी ज्योति सीएनसी और एएमटीज़ेड के वेंटिलेटर फेल हो गए, ऐसे में इन दोनों कंपनियों का नाम मैन्युफ्रैक्चर्स की लिस्ट से हटा दिया गया।
 
और इस समय तक तीन वेंटिलेटर निर्माता पीएम केयर्स के लिए वेंटिलेटर बना रहे थे। जिनमें बीईएल- 30 हज़ार, एग्वा-10 हज़ार और अलायड-350 वेंटिलेटर। कुल वेंटिलेटर जो बन रहे थे उनकी संख्या 58 हज़ार 850 से घटकर 40 हज़ार 350 पर आ गई।
 
20 जुलाई 2020 को एक आरटीआई के जवाब में स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि 17 हज़ार वेंटिलेटर डिस्पैच किए जा चुके हैं। लेकिन वेंकटेश नायक ने 7 सितंबर, 2020 की आरटीआई का जो डेटा बीबीसी से को दिया है उसके मुताबिक़ 13 हज़ार 500 वेंटिलेटर के पीओ (परचेज़ ऑर्डर) के साथ एएमटीज़ेड का नाम मैन्युफ्रैक्चर्स की फ़ेहरिस्त में फिर शामिल कर लिया गया था।
 
एक और बात जो समझना मुश्किल है वो ये कि जब एचएलएल ने टेंडर निकाला तो उसके फ़ीचर्स एक कमेटी ने तय किए थे। और ये शर्त रखी गई कि हर निर्माता को वेंटिलेटर में ये फ़ीचर रखने होंगे। ऐसे में बेसिक और हाई एंड का अंतर कहां से आया और बेसिक के फ़ीचर और हाई एंड वेंटिलेटर के फ़ीचर एक-दूसरे से कैसे अलग होंगे इस पर कुछ भी साफ़ नहीं है।
 
एग्वा वेंटिलेटर पर उठते सवाल
एग्वा हेल्थकेयर जिसे नीति आयोग ने ख़ासा प्रचार-प्रसार दिया उसके पास वेंटिलेटर बनाने कोई तजुर्बा नहीं था लेकिन उसे 10 हज़ार वेंटिलेटर का ऑर्डर दिया गया। एग्वा ने कार बनाने वाली कंपनी मारूति की मदद से वेंटिलेटर बनाए।
 
'हफ़्फपोस्ट इंडिया' की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सरकार की ओर से बनाई गई टेक्निकल इवैल्युएशन कमेटी ने 16 मई 2020 को दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में इन वेंटिलेटर्स का ट्रायल किया, इसके बाद एग्वा वैंटिलेटर के बारे में कहा गया कि वह रेस्पीरेट्री पैरामीटर बनाए नहीं रख पा रहे हैं।
 
इस कमेटी ने कहा, "इस वेंटिलेटर को और जाँचने की ज़रूरत है। उन्हें मल्टी-डीज़ीज वाले मरीज़ों पर इस्तेमाल करके देखना होगा ताकि ये पता चल सके कि क्या ये इमरजेंसी वेंटिलेटर की तरह काम कर सकते हैं या नहीं। साथ ही, ये भी देखना होगा कि जहां मेडिकल गैस पाइपलाइन सिस्टम नहीं है वहाँ ये मशीन कैसे कैसे करेंगी"।
 
मेडिकल गैस पाइपलाइन सिस्टम एक सेंट्रल ऑक्सीजन पाइपलाइन सिस्टम होता है जो बड़े अस्पतालों में मिलता है लेकिन छोटे शहरों के अस्पतालों में ये सुविधा नहीं होती और ऑक्सीजन सिलेंडर का इस्तेमाल ज़्यादा होता है।
 
इस रिपोर्ट के 11 दिन बाद 27 मई को एग्वा वेंटिलेटर्स की दोबारा टेस्टिंग के लिए नई टीम गठित की गई और दोबारा टेस्टिंग हुई। इस टीम ने कहा कि एग्वा ने पहली टीम की ओर से दिए गए सुझाव के साथ सुधार कर लिया है और इसका पीईईपी ठीक काम कर रहा है।
 
एक जून 2020 को इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में ये लिखा कि इस वेंटिलेटर को टेस्टिंग में पास कर दिया गया है जैसा कि 'कोविड-19 के कारण हालात को देखते हुए हमें वेंटिलेटर की देश भर में ज़रूरत है।'
 
हालाँकि दिवाकर इस बात से इनकार करते हैं। वो बार-बार कहते हैं कि उनके वेंटिलेटर किसी भी महँगे वेंटिलेटर से कम नहीं हैं। ना ही सरकारी कमेटी की ओर से इस तरह की बातें कही गई हैं।
 
धूल खा रहे वेंटिलेटर
बीबीसी ने बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में पीएम केयर्स फंड के तहत मिले वेंटिलेटर्स का हाल जानने के लिए कुछ अस्पतालों से संपर्क किया और ज़्यादातर अस्पतालों से हमें ये पता चला कि या तो ये वेंटिलेटर अब तक इंस्टॉल ही नहीं हुए हैं, या स्टाफ़ की ज़रूरी ट्रेनिंग तक नहीं हुई है। जहां ये इंस्टॉल हो गए हैं और स्टाफ़ भी है, वहाँ डॉक्टरों को इसमें ऑक्सीजन को लेकर समस्याएँ आ रही हैं।
 
'टाइम्स ऑफ इंडिया' में आठ जुलाई 2020 को केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे के हवाले से छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पीएम केयर्स फंड के तहत बिहार को 500 वेंटिलेटर मिले। आवश्यकता के अनुसार ये वेंटिलेटर्स राजधानी पटना समेत राज्य के अलग-अलग अस्पतालों में भेजे गए।
 
बीबीसी की पड़ताल में यह बात सामने निकलकर आई कि पटना के एम्स को छोड़कर राज्य के लगभग सभी सरकारी अस्पतालों में पीएम केयर्स फंड के तहत मिले ये वेंटिलेटर्स अभी तक चालू भी नहीं हो पाए हैं। कहीं स्टाफ़ की कमी का हवाला दिया जा रहा है तो कहीं वेंटिलेटर चलाने के लिए संसाधन की कमी का।
 
गया के अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज को भी पिछले साल पीएम केयर्स के तहत 30 वेंटिलेटर मिले। लेकिन, मौजूदा समय में इसमें एक भी चालू नहीं है। अस्पताल के नोडल अधिकारी डॉ एनके पासवान कहते हैं, "वेंटिलेटर्स को चलाने के लिए तकनीकी रूप से सक्षम स्टाफ और संसाधन चाहिए जो कि फ़िलहाल हमारे पास नहीं है। हमने इस संबंध में राज्य स्वास्थ्य विभाग को लिखा है। जल्द ही वेंटिलेटर चालू कर लिया जाएगा।"
 
दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भी पीएम केयर्स फंड के तहत 40 वेंटिलेटर दिए गए थे। लेकिन, वहां भी एक भी वेंटिलेटर चालू नहीं है। अस्पताल के डॉ मणिभूषण शर्मा कहते हैं, "बिजली के वायरिंग में दिक्कत होने की वजह से वेंटिलेटर्स चालू नहीं हो पा रहे। इसके लिए बेंगलुरू से टीम बुलाई गई है। जल्द ही वेंटिलेटर्स शुरू हो जाएंगे।"
 
राज्य के अलग-अलग जिलों के सदर अस्पतालों का भी वेंटिलेटर के मामले में बुरा हाल है। सुपौल सदर अस्पताल में पीएम केयर्स फंड के तहत छह वेंटिलेटर मिले लेकिन पिछले 10 महीने से ये वेंटिलेटर्स जंग खा रहे हैं। अस्पताल मैनेजर अभिलाष वर्मा बताते हैं, "वेंटिलेटर्स को इंस्टॉल करने के लिए महीनों पहले स्वास्थ्य विभाग को पत्र लिखा गया था, लेकिन अभी तक इंस्टॉल नहीं हो पाया है। हम लोग फिर से विभाग से आग्रह करेंगे।"
 
मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट ने बताया, "हमारे यहां अभी 80 वेंटिलेटर्स हैं। सारे पीएम केयर्स फंड के तहत ही मिले हैं। इनमें से 15 वेंटिलेटर अभी कोविड वार्ड में लगाए हैं और बाकी के वेंटिलेटर शिशु वार्ड में रखे गए हैं। जरूरत पड़ने पर उन वेंटिलेटर्स को भी कोविड वार्ड में लगाया जाएगा, लेकिन हमारे पास फिलहाल स्टाफ़ की कमी है। स्वास्थ्य विभाग को इस बाबत अवगत कराया गया है।"
 
उत्तर प्रदेश का हाल
यूपी में पीएम केयर्स फंड से पांच सौ से भी ज़्यादा वेंटिलेटर्स दिए गए थे लेकिन ज़्यादातर वेंटिलेटर आज भी अस्पतालों में पड़े हैं और मरीज़ वेंटिलेटर्स के अभाव में दम तोड़ रहे हैं।
 
राजधानी लखनऊ के केजीएमयू, लोहिया, पीजीआई समेत केवल कुछ ही अस्पतालों में आईसीयू बेड उपलब्ध हैं जहां वेंटिलेटर्स की सुविधा है लेकिन कई अस्पताल ऐसे भी हैं जहां वेंटिलेटर्स हैं तो ज़रूर उन्हें अभी तक इंस्टॉल नहीं किया गया है और उन्हें चलाने वाले प्रशिक्षित लोगों की कमी है, जिसकी वजह से ये वेंटिलेटर वहीं पड़े-पड़े धूल फांक रहे हैं।
 
लखनऊ में लोकबंधु अस्पताल के डायरेक्टर डॉक्टर अरुण लाल बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, "हमारे यहां आईसीयू बेड नहीं हैं इसलिए गंभीर मरीजों को दूसरी जगह भेजना पड़ता है। वेंटिलेटर्स आए थे लेकिन अभी वो काम नहीं कर रहे हैं। कुल कितने वेंटिलेटर हैं हमारे अस्पताल में इसकी अभी ठीक से जानकारी भी नहीं है।"
 
यह हाल केवल एक अस्पताल का नहीं बल्कि ज़्यादातर अस्पतालों का है। प्रयागराज के ज़िला चिकित्सालय बेली अस्पताल में भी वेंटिलेटर आकर रखे हुए हैं लेकिन इन्हें चलाने वाले लोग नहीं हैं। बेली अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "वेंटिलेटर्स की तो अभी पैकिंग भी नहीं खुली है, ऑपरेट करने वालों की तो बात ही छोड़ दीजिए।"
 
वहीं ग्रामीण क्षेत्रों की बात की जाए तो गोंडा ज़िले में टाटा कंपनी के सहयोग से बनाए गए कोविड हॉस्पिटल में भी कई वेंटिलेटर्स ऑपरेटर न होने की वजह से धूल फांक रहे हैं।
 
गोंडा के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक अजय सिंह गौतम कहते हैं, "एल-2 लेवल के इस कोविड हॉस्पिटल में गोंडा ज़िले के अलावा लखनऊ, बलरामपुर, संतकबीर नगर और बस्ती के 45 कोविड मरीज भर्ती हैं। यहां 17 वेंटिलेटर लगे हुए हैं, लेकिन बिना प्रशिक्षित स्टाफ के ये यूं ही पड़े हैं और लोगों को इसकी सुविधा भी नहीं मिल पा रही है।"
 
राजस्थान
राजस्थान को पीएम केयर्स फंड से क़रीब डेढ़ हज़ार वेंटिलेटर बीते साल मिले। लेकिन अभी तक कई जगह यह वेंटिलेटर इंस्टॉल तक नहीं हुए हैं जबकि अधिकतर जगह से इनमें सॉफ्टवेयर, प्रेशर ड्राप, कुछ समय बाद ख़ुद-ब-ख़ुद बंद होने समेत कई शिकायतें सामने आ रही हैं।
 
उदयपुर के रवींद्रनाथ टैगोर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर लखन पोसवाल बताते हैं, "मरीज को वेंटिलेटर पर रखने पर हमें बहुत सचेत रहना पड़ता है। वेंटिलेटर दो-तीन घंटे में ख़ुद ही बंद हो जाते हैं, कई बार ऑक्सीजन प्रेशर डाउन हो जाता है। इसमें ऑक्सीजन सेंसर ही नहीं हैं, इसलिए पता ही नहीं चलता कि मरीज को कितनी ऑक्सीजन मिल रही है। वेंटिलेटर कब धोखा दे जाए और मरीज को दूसरे वेंटिलेटर पर लेना पड़े, इसलिए एक रेजीडेंट डॉक्टर को वेंटिलेटर के पास ही खड़ा रहना पड़ता है।"
 
डॉ लखन पोसवाल कहते हैं, "जयपुर से बाहर के सभी मेडिकल कॉलेजों में लगे इन वेंटिलेटर में यही समस्या है। कई जगह इन्स्टॉल तक नहीं हुए क्योंकि इनके इंजीनियर बहुत सीमित संख्या में हैं।" वे आगे बताते हैं, "हमें 95 वेंटिलेटर मिले और लगभग सभी में यही समस्या है। मुख्यमंत्री से वीडियो कॉन्फ्रेंस मीटिंग में भी यह समस्याएं बताई थीं, जिसके बाद उन्होंने सभी जगह से रिपोर्ट ली है।"
 
जयपुर के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर सुधीर भंडारी भी इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं कि पीएम केयर फंड से मिले इन वेंटिलेटरों में समस्याएं हैं। हालांकि, वह इस बारे में ज़्यादा बात नहीं करते। वह हमें इतना ज़रूर बताते हैं कि, "वेंटिलेटर्स में प्रॉब्लम हैं।"
 
बीते साल कोरोना संक्रमण मामलों को लेकर भीलवाड़ा मॉडल देश भर में चर्चाओं में रहा था। लेकिन, अब हालात भीलवाड़ा मेडिकल कॉलेज के हालात कुछ और ही हैं।
 
भीलवाड़ा मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल डॉक्टर राजन नंदा जो अब झालावाड़ मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल पद पर हैं। वह बताते हैं कि, "पीएम केयर्स फंड से भीलवाड़ा मेडिकल कॉलेज को 67 वेंटीलेटर्स मिले थे। इनमें से 30 वेंटीलेटर्स आज तक इंस्टॉल नहीं हुए हैं, क्योंकि सेंट्रल लाइन से कनेक्ट करने के एडेप्टर ही उपलब्ध नहीं कराए गए हैं।"
 
डॉक्टर नंदा कहते हैं, "क़रीब आधा दर्जन में प्रेशर ड्रॉप हो जाता है। इंजीनियर इस समस्या पर सॉफ्टवेयर की खामी बताते हैं। पुराने वेंटीलेटर्स हैं, उनसे काम चला रहे हैं।"
 
केंद्र से पीएम केयर फंड के तहत मिले इन वेंटीलेटर्स में आ रही समस्या और समाधान के लिए राज्य सरकार की ओर से की जा रही कार्रवाई पर राजस्थान चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव वैभव गालरिया फोन पर बीबीसी को बताया कि, "पीएम केयर से हमें डेढ़ हज़ार से अधिक वेंटीलेटर्स मिले। 1200 मेडिकल कॉलेजों और बाक़ी ज़िला अस्पतालों में लगाए हैं। इनमें प्रेशर ड्रॉप की समस्या आ रही थी।"
 
छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ में पीएम केयर्स फंड से मिले वेंटिलेटर पर अलग विवाद चल रहा है। राज्य में कांग्रेस पार्टी के संचार प्रमुख शैलेश नितिन त्रिवेदी ने 12 अप्रैल को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की एक बैठक का हवाला देते हुए दावा किया कि केंद्र सरकार से मिले 69 में से 58 वेंटीलेटर चल ही नहीं रहे हैं। कंपनी से संपर्क करने पर कंपनी में कोई फोन ही नहीं उठा रही है।
 
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और भाजपा के दूसरे नेता भी सक्रिय हुए और मामला राजभवन तक पहुंचा। रमन सिंह के अनुसार, "केंद्र सरकार से जो वेंटिलेटर मिले थे, उनका उपयोग राज्य सरकार ने क्यों नहीं किया? वेंटिलेटर किन परिस्थितियों में खराब हो गए? वे वेंटिलेटर खराब मिले थे या छत्तीसगढ़ में आने के बाद खराब हुए, इन सबकी जांच की मांग राज्यपाल से की गई।"
 
किसी भी वेंटिलेटर को मानक सर्टिफ़िकेट नहीं
जब अप्रैल 2020 से देश में कोरोना के मामले तेज़ी से सामने आने लगे तो वेंटिलेटर्स की माँग बढ़ी। इससे पहले भारत में ज्यादातर वेंटीलेटर्स विदेशों से आते थे। जिस भी देश से ये वेंटिलेटर आते थे उन पर उसकी क्वालिटी परखने वाली संस्था का सर्टिफिकेट होता था। जैसे अमेरिकी संस्था यूएस एफडीए या यूरोप की संस्था यूरोपियन सर्टिफिकेशन। ये संस्थाएँ किसी मेडिकल मशीन को अपने स्तर पर जाँचकर एक सर्टिफिकेट जारी करती हैं जो बताता है कि यह मशीन तय मानकों के अनुरूप है।
 
जब भारत में कोरोना के कारण देसी कंपनियों को वेंटिलेटर बनाने का काम दिया गया तब तक देश में वेंटिलेटर्स के लिए कोई संस्थागत नियम नहीं थे। इसी बीच गुजरात में ज्योति सीएनसी कंपनी के धमन-1 वेंटिलेटर की क्वालिटी को लेकर सवाल उठे तो ये समझ आया कि भारत में वेंटिलेटरों को सर्टिफ़ाई करना होगा क्योंकि बिना सर्टिफिकेट के अच्छे वेंटिलेटर और खराब वेंटिलेटर का अंतर पता लगाना एक मुश्किल काम साबित होता जा रहा था।
 
इसके लिए 5 जून को भारतीय मानक ब्यूरो की बैठक हुई और ये तय किया गया कि कोविड-19 के वेंटिलेटर्स के मानक बनाने होंगे। 26 जून, 2020 को बीआईएस ने ये स्ट्रैंडर्ड स्पेसिफ़िकेशन तैयार किए ताकि उनकी क्वालिटी के लिए मानक तय किए जा सकें।
 
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लेकिन 12 अक्टूबर को वेंकटेश नायक की आरटीआई के जवाब में ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआईएस) ने बताया कि किसी भी कंपनी ने अब तक अपने कोविड-19 वेंटिलेटर्स के लिए सर्टिफ़िकेट का आवेदन भी नहीं दिया है।
 
एग्वा हेल्थकेयर के दिवाकर वैश्य से जब हमने यही सवाल किया तो उन्होंने कहा कि "हमारे पास आईओसी का सर्टिफिकेट है"।

दरअसल, यह फ़्रेंच सर्टिफिकेशन बॉडी है जिसके सर्टिफ़िकेट की ज़रूरत उत्तर अमेरिका और यूरोप के बाज़ारों में मशीन बेचने के लिए ज़रूरी है। सवाल ये है कि भारत में बनने वाले ये वेंटिलेटर्स जिनकी क्वालिटी को लेकर बार-बार सवाल उठ रहे हैं उन्होंने भारत के मानकों के तहत सर्टिफिकेट का आवेदन क्यों नहीं किया।

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