पश्चिमी देशों के जासूसों का मानना है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपनी ही बनाई एक बंद दुनिया में फंस गए हैं। और इससे वे परेशान हैं। ये जासूस सालों से पुतिन के दिमाग़ में उतरने की कोशिश करते रहे हैं ताकि उनके इरादों को बेहतर तरीक़े से समझा जा सके।
यूक्रेन में रूस के सैनिकों के फंसते जाने के साथ ऐसा करने की ज़रूरत और अधिक हो गई है। ऐसा इसलिए कि ये जाससू ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि रूस दबाव में कैसी प्रतिक्रिया देगा। यूक्रेन संकट को और भी ख़तरनाक होने से बचाने के लिए व्लादिमीर पुतिन की मनोदशा को समझना बेहद अहम है।
ऐसी अटकलें लगाई जाती रही हैं कि पुतिन बीमार हैं। हालांकि कई विश्लेषकों का मानना है कि वास्तव में वो अलग-थलग पड़ गए हैं और किसी वैकल्पिक विचार की तलाश में हैं। उनकी बैठकों की सामने आने वाली तस्वीरों से उनका अलगाव साफ़ दिखता है। उदाहरण के लिए, जब वो फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से मिले, तो दोनों बड़े आकार वाली मेज़ के दो सुदूर किनारों पर थे। युद्ध के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा टीम के साथ बैठक में भी पुतिन की स्थिति वैसी ही थी।
पश्चिम के एक ख़ुफ़िया अधिकारी बताते हैं कि पुतिन की शुरुआती सैन्य योजना केजीबी के किसी अधिकारी ने तैयार की थी। वो कहते हैं, उसे गोपनीय रखते हुए षडयंत्रों के सहारे तैयार किया गया था। हालांकि उसका नतीजा बेहद अराजक रहा। रूसी सैन्य कमांडर युद्ध के लिए तैयार नहीं थे और सैनिक यह जाने बिना सीमा पर चले गए कि वे करने क्या जा रहे हैं।
निर्णय लेने वाले इकलौते शख़्स
पश्चिमी देशों के जासूस यूक्रेन युद्ध से जुड़ी योजनाओं के बारे में रूसी नेतृत्व को कई लोगों से कहीं अधिक जानते थे। लेकिन अब उन जासूसों के सामने नई चुनौती है। उनको अब यह पता लगाना होगा कि व्लादिमीर पुतिन आगे क्या करने वाले हैं, और ऐसा करना कोई आसान काम नहीं है।
अमेरिकी ख़ुफ़िया इकाई सीआईए के लिए रूस का काम संभालने वाले जॉन सिफ़र बताते हैं, 'क्रेमलिन की अगली चाल समझना इसलिए मुश्किल है क्योंकि पुतिन रूस के लिए निर्णय लेने वाले इकलौते शख़्स हैं।' पुतिन के विचार सार्वजनिक बयानों के ज़रिए भले ही अक्सर ज़ाहिर होते रहे हैं, लेकिन वे उसे कैसे लागू करेंगे, इसका पता लगाना काफ़ी कठिन ख़ुफ़िया चुनौती है।
ब्रिटेन की ख़ुफ़िया एजेंसी एमआई6 के पूर्व प्रमुख सर जॉन सॉवर्स ने इस बारे में बीबीसी से कहा, 'रूस जैसे बेहद बंद सिस्टम में उनके नेता के दिमाग़ में क्या चल रहा है, उसके बारे में बेहतर ख़ुफ़िया जानकारी जुटाना बहुत कठिन है। ख़ासकर तब जब उनके अपने ही ज़्यादातर लोग नहीं जानते कि चल क्या रहा है।'
ख़ुफ़िया अधिकारियों का कहना है कि व्लादिमीर पुतिन अपने स्वयं के बनाए बुलबुले में अलग-थलग पड़े हैं। उनके पास बहुत ही कम बाहरी सूचना पहुंचती है, ख़ासकर वैसी बातें जिनसे उनके विचार को चुनौती मिले।
पुतिन के दिमाग़ को समझने की कोशिश
मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर और 'द साइकोलॉजी ऑफ़ स्पाइज़ एंड स्पाइंग' के लेखक एड्रियन फ़र्नहैम इस बारे में कहते हैं, 'वो इस मायने में अपने ख़ुद के प्रोपेगैंडे का शिकार हैं कि वो केवल चुनिंदा लोगों की ही सुनते हैं और बाक़ी लोगों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। इससे उन्हें दुनिया के बारे में अजीब ही विचार मिलते हैं।'
पश्चिमी ख़ुफ़िया अधिकारियों का मानना है कि व्लादिमीर पुतिन जिन लोगों से बात करते हैं, उनका दायरा कभी भी बड़ा नहीं रहा। लेकिन जब यूक्रेन पर आक्रमण करने का फ़ैसला करने की बात आई, तो मामला कुछ मुट्ठी भर लोगों तक सीमित हो गया। इन अधिकारियों का मानना है कि पुतिन को सलाह देने वाले सारे लोग उनके 'पक्के विश्वासपात्र' होने के साथ उन्हीं की तरह सोच वाले और जुनूनी लोग हैं।
पुतिन का क़रीबी समूह कितना छोटा हो गया है, इसका पता यूक्रेन पर आक्रमण करने के ठीक पहले हुई राष्ट्रीय सुरक्षा की बैठक से चला। उन्हें अपनी ही विदेश ख़ुफ़िया सेवा के प्रमुख को मनाने के लिए सार्वजनिक मंच का सहारा लेना पड़ा। बाद में उनके दिए भाषण से यह भी पता चला कि वो यूक्रेन और पश्चिमी देशों से कितने नाराज़ हैं।
पुतिन को जिन लोगों ने भी देखा है, उनका कहना है कि वो 90 के दशक में रूस के कथित अपमान का बदला लेने की इच्छा रखने के साथ इस बात में यक़ीन करते हैं कि पश्चिमी देश, रूस को नीचे ले जाने और उन्हें सत्ता से हटाने को लेकर दृढ़ हैं।
व्लादिमीर पुतिन से मिलने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि लीबिया के पूर्व शासक कर्नल गद्दाफ़ी के 2011 में सत्ता से हटाए जाने के बाद उनके मारे जाने का वीडियो उन्होंने बार-बार देखा था। अमेरिकी ख़ुफ़िया संस्था सीआईए के निदेशक विलियम बर्न्स को जब पुतिन की मानसिक दशा का आकलन करने को कहा गया, तो उन्होंने बताया कि वो 'सालों से शिक़ायत और महत्वाकांक्षा की आग में जलते रहे हैं।' ऐसे में सवाल उठता है कि रूस के राष्ट्रपति क्या सनकी हैं? इस सवाल को पश्चिमी देशों में कई लोग पूछ रहे हैं।
सीआईए के पास विदेशी मामलों के निर्णय करने वाले नेताओं को समझने के लिए एक 'लीडरशिप एनालिसिस' टीम है। यह टीम हिटलर को समझने के लिए बनाई गई थी और तभी से काम कर रही है। यह टीम ख़ुफ़िया सूचनाओं के आधार पर ऐसे नेताओं की पृष्ठभूमि, उनके रिश्तों और सेहत का अध्ययन करती है।
इसके अलावा, इन नेताओं को समझने के दूसरे स्रोत वे लोग या नेता होते हैं, जो इन नेताओं से आमने-सामने कभी मिल चुके होते हैं। जैसा कि 2014 में जर्मनी की तब की चांसलर एंगेला मर्केल ने तब के अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से कहा था कि व्लादिमीर पुतिन 'दूसरी दुनिया में' रहते हैं।
क्या पुतिन अलग-थलग पड़ गए हैं?
हाल में फ़्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों जब पुतिन से मिले तो बताया गया कि पिछली मुलाक़ातों की तुलना में इस बार रूस के नेता 'कहीं अधिक कठोर और अलग-थलग' पाए गए। तो क्या वाक़ई कुछ बदला है? हालांकि कई लोग बिना किसी ठोस सबूत के उनके ख़राब स्वास्थ्य या किसी दवा के प्रभाव का अंदाज़ा लगाते हैं। वहीं कई लोग दूसरे मनोवैज्ञानिक कारकों को इसके लिए ज़िम्मेदार मानते हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि पुतिन शायद सोचते होंगे कि उनकी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का उनका समय अब तेज़ी से निकलता जा रहा है।
पुतिन के बारे में ये मशहूर रहा है कि वो रूस को सुरक्षित करने और उसकी महानता फिर से बहाल करने की पुरज़ोर ख़्वाहिश रखते हैं। वहीं कई लोग कोरोना से बचने के लिए पुतिन द्वारा ख़ुद को दूसरों से अलग-थलग रखने के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को भी एक कारण मानते हैं।
अमेरिका के सरकारी डॉक्टर और राजनयिक रहे और फ़िलहाल अमेरिका-चीन संबंधों पर जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश फ़ाउंडेशन में सीनियर फ़ेलो केन डेकलेवा इस बारे में कहते हैं, 'पुतिन मानसिक रूप से बीमार नहीं हैं, न ही वो बदल गए हैं। हालांकि वो जल्दबाज़ी में हैं और आगे उनके और अलग-थलग पड़ने की संभावना है।'
लेकिन चिंता की बात ये है कि पुतिन के पास शायद अभी भी विश्वसनीय सूचना नहीं पहुंच रही है। यूक्रेन पर हमले को लेकर उनकी ख़ुफ़िया सेवा शायद उन्हें ठीक जानकारी नहीं दे रही हो। ऐसा इसलिए कि ख़ुफ़िया अधिकारी शायद पुतिन को वैसी सूचना नहीं देना चाहते हों, जिसे वो सुनना नहीं चाहते होंगे।
इस हफ़्ते पश्चिम के एक अधिकारी ने बताया कि व्लादिमीर पुतिन को अभी भी इस बात की जानकारी नहीं है कि उनके सैनिकों के लिए हालात कितने बुरे हो गए हैं और इसका पता पश्चिम की ख़ुफ़िया एजेंसियों को भी है। इससे इस बात को लेकर चिंता हो सकती है कि बिगड़ते हालात का मुक़ाबला करने पर रूस कैसी प्रतिक्रिया दे सकता है।
व्लादिमीर पुतिन अपने बचपन में एक चूहे का पीछा करने की एक कहानी सुनाते रहते हैं। ब्योरे के मुताबिक़ उन्होंने जब चूहे को खदेड़ा तो चूहे ने उन पर हमला करके अपना जवाब दिया और वे डरकर भागने को मजबूर हो गए।
पश्चिमी देशों के नीति निर्माता जो सवाल पूछ रहे हैं, वो ये कि पुतिन यदि ख़ुद को ठगा महसूस करते हैं तो वे क्या करेंगे? पश्चिम के एक अधिकारी ने कहा, 'सवाल वाक़ई यह है कि रूस का जवाब क्या और अधिक क्रूर हो जाएगा और क्या दूसरे हथियारों को चुनने की नौबत भी आ सकती है?''
ऐसी चिंताएं भी जताई जा रही हैं कि रूस रासायनिक हथियारों, यहां तक कि एक सामरिक परमाणु हथियार का उपयोग कर सकता है। पश्चिम के जासूसों और नीति बनाने वालों के लिए आज पुतिन के इरादों और उनकी मानसिकता को समझना सबसे अहम हो गया है।