अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल के उत्तर में अंदराब की ख़ूबसूरत घाटियों में सफ़र करते हुए संघर्ष के कोई निशान नहीं दिखते। लेकिन एक तरफ़ जहां तालिबान पहले से कहीं अधिक ताक़तवर हैं और उनके पास बेहतर हथियार हैं, यहां और पास के पंजशीर प्रांत में उन्हें अफ़ग़ानिस्तान में अपनी सत्ता के ख़िलाफ़ उभरते हुए विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है।
पहाड़ियों की चोटियों पर छुपे हुए गुरिल्ला लड़ाकों के छोटे समूह छुपकर हमले कर रहे हैं और तालिबान के ख़िलाफ़ झड़पों में शामिल हैं। अफ़ग़ान सेना के पूर्व सैनिक इन गुरिल्ला समूहों का नेतृत्व कर रहे हैं। उपजाऊ हरे-भरे खेतों से गुज़रते हुए तालिबान हमेशा हमारे साथ रहते हैं। तालिबान की निगरानी में हमसे बात करते हुए स्थानीय लोग बेहतर हुई सुरक्षा व्यवस्था की तारीफ़ करते हैं और विद्रोहियों की आलोचना करते हैं।
कुछ तारीफ़ बहुत हद तक सही भी लगती है लेकिन एक बाज़ार की एक गली में एक व्यक्ति स्याह पक्ष बताते हुए कहता है, 'मैं आपको सच नहीं बता सकता हूं, अगर मैंने सच बताया तो मैं मारा जाऊंगा।' यहां चल रही लड़ाई की सही तस्वीर तक पहुंचना बहुत मुश्किल है। विद्रोही गुट अपनी क्षमता को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं जबकि तालिबान उनकी मौजूदगी को सीधे तौर पर खारिज करते हैं।
हालांकि पंजशीर में तालिबान विरोधी लड़ाके एक हेलीकॉप्टर को मार गिराने और उसमें सवार लोगों को बंदी बनाने में कामयाब रहे हैं। वहीं बग़लान प्रांत के एक इलाक़े में विद्रोही लड़ाकों ने एक चौकी पर क़ब्ज़ा करने और वहां से तालिबान का झंडा उतारने का वीडियो जारी किया है। हालांकि जब जून में बीबीसी ने अंदरबा घाटी का दौरा किया था तब तालिबान की पकड़ यहां मज़बूत नज़र आई थी।
हमने क़ाइस तराच गांव का दौरा किया था और स्थानीय तालिबान कमांडरों ने भरोसा जताते हुए कहा था कि 'यहां किसी तरह की कोई समस्या नहीं है।' एक चोटी पर खड़े हुए तालिबान की सेना की ओमरी कॉर्प का नेतृत्व करने वाले कमांडर क़ारी जुमादीन बदरी ने घाटी की तरफ़ इशारा करते हुए बीबीसी से कहा था, 'आप ख़ुद देख सकते हैं, यहां हमारी सैनिक सीमित संख्या में मौजूद हैं।'
लेकिन भरोसेमंद सूत्रों ने हमें बताया था कि इस इलाक़े में मई में विद्रोही लड़ाकों ने तालिबान के वाहन पर हमला किया था जिसमें 2 तालिबान मारे गए थे। बदरी कहते हैं, 'ये बहुत पुरानी बात है। हमने पहाड़ों में कुछ अभियान चलाए थे। अब वहां कुछ नहीं है।'
पंजशीर में तालिबान के वाहनों के काफ़िलों के वीडियो सामने आए हैं जिनमें लड़ाके आते हुए दिख रहे हैं। हालांकि ताबिलान ने वहां भी झड़पों की रिपोर्टों को खारिज किया है। तालिबान विद्रोही भावना के एक और गढ़ अंदराब में लड़ाकों की मौजूदगी कम नज़र आती है। लेकिन जब हमने छुपकर स्थानीय लोगों से बात की तो हमें विद्रोह को कुचलने के लिए तालिबान के हाथों बार-बार हो रहे गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों के बारे में जानकारी दी गई।
अब्दुल हाशिम नाम के एक ग्रामीण के रिश्तेदार ने हमें बताया कि क़ाइस तराच में हमले के तुरंत बाद उसे और 3 अन्य ग्रामीणों को तालिबान ने हिरासत में लिया था और बाद में उन्हें मार दिया गया था। उन पर हमले में शामिल होने के ग़लत आरोप लगाए गए थे। रिश्तेदार ने बताया, 'उसके हाथ बांध दिए गए थे और उसे सिर और छाती में गोली मारी गई थी।'
बीबीसी से बात करते हुए वो दावा करते हैं, 'उन्होंने पुरुषों को अब्दुल हाशिल के जनाजे में शामिल नहीं होने दिया। सिर्फ़ महिलाओं को ही उनका शव दफ़नाने की अनुमति दी गई थी।' हमले के बाद हिरासत में लिए गए पुरुषों में से एक ने बताया कि उनके गांव से तालिबान क़रीब 20 लोगों को उठाकर झड़प वाली जगह ले गए थे। यहां इन सभी को लोहे की तार और डंडों से पीटा गया था।
वो बताते हैं, 'तालिबान ने मुझे एक पिक ट्रक के पीछे डाल दिया था, किसी ने हमारे सर को नीचे झुका दिया। नूरुल्ला और अब्दुल हाशिम दूसरे ट्रक में थे। उन्हें नीचे उतारकर एक हमवी के पीछे ले जाया गया, जहां एक छोटे झरने के पास उन्हें गोली मार दी गई।' उस दिन इसी गांव के 2 अन्य पुरुषों की भी हत्या कर दी गई थी।
तालिबान पर यहां के लोग और भी कई गंभीर आरोप लगाते हैं। विद्रोही गतिविधियों के गढ़ तगारक गांव की तरफ जाते हुए 4 पुरुषों को तालिबान ने पकड़ा था। आरोप है कि पूछताछ के बाद उन्हें भी मार दिया गया था। उन्होंने अब्दुल हाशिम के शव की तस्वीरें बीबीसी के साथ साझा कीं और दावा किया कि उनके बहनोई नूरुल्लाह भी इस घटना में मारे गए थे।
पिछले साल अगस्त में अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े के कुछ दिन बाद ही अंदराब में विद्रोही लड़ाकों ने दावा किया था कि उन्होंने कुछ समय के लिए कई ज़िलों को छुड़ा लिया था। तालिबान के ज़िलों पर फिर से नियंत्रण के बाद ज़ैनुद्दीन नाम के एक डॉक्टर की 5 अन्य रिश्तेदारों के साथ घर में हत्या कर दी गई थी। इनमें बच्चे भी शामिल थे। उनके रिश्तेदार दावा करते हैं कि विद्रोही लड़ाकों का इलाज करने की वजह से उनकी हत्या की गई थी।
एक रिश्तेदार अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर करते हुए कहते हैं, 'वो डॉक्टर थे। हर किसी की जान बचाना उनका फ़र्ज़ था।' इस साल फ़रवरी में देह सालाह ज़िले के एक अन्य डॉक्टर की भी हत्या कर दी गई थी। एक रिश्तेदार आरोप लगाते हैं कि हत्या से पहले तालिबान ने उन्हें विद्रोह से जुड़े लोगों का इलाज न करने की चेतावनी दी थी।
स्थानीय लोगों के मुताबिक एक अन्य डॉक्टर तालिबान की हिरासत में है। वहीं कई ऐसे परिवार जिन पर विद्रोहियों से संपर्क होने के आरोप हैं, का कहना है कि उनसे गांवों को छोड़कर जाने के लिए कहा गया है। अंदराब बग़लान प्रांत का हिस्सा है। प्रांत में तालिबान के सूचना प्रमुख असदउल्लाह हाशमी इन सभी आरोपों को निराधार बताते हैं।
वो कहते हैं कि इलाक़े में एक डॉक्टर की हत्या ज़रूर हुई है लेकिन ये व्यक्तिगत दुश्मनी का मामला था। गैर-न्यायिक हत्याओं के सवाल पर हाशिमी कहते हैं कि हिरासत में लिए गए किसी भी व्यक्ति की हत्या नहीं की गई है। हालांकि वो कहते हैं कि यदि कोई हिंसक तरीक़े से सरकारी बलों का विरोध करेगा तो उसे अभियान के दौरान मारा भी जा सकता है और हिरासत में भी लिया जा सकता है। 'दुनिया के हर हिस्से में ये होता है।'
हालांकि हाशमी इलाक़े में विद्रोही बलों की मौजूदगी को स्वीकार नहीं करते हैं। हालांकि वो ये ज़रूर कहते हैं कि इलाक़े में कम संख्या में 'आतंकवादी' सक्रिय हैं। इस इलाक़े का तालिबान का विरोध करने का इतिहास रहा है। अंदराब और पंजशीर, दोनों इलाक़ों में फ़ारसी बोलने वाले ताजिक समुदाय के लोग अधिक संख्या में रहते हैं। दूसरी तरफ़ तालिबान अधिकतर पश्तून होते हैं।
इस बार तालिबान कुछ स्थानीय लोगों की भर्ती करने में ज़रूर कामयाब रहे हैं। हालांकि तालिबान के 1990 के दशक के पिछले प्रशासन में ऐसा नहीं हुआ था। तालिबान के कई स्थानीय ख़ुफ़िया अधिकारी और पुलिस प्रमुख ताजिक मूल के हैं या फारसी बोलने वाले हैं। अंदराब में तैनात किए गए कुछ सैनिक भी ताजिक मूल के ही हैं।
हालांकि बाक़ी लोग पश्तून ही हैं। अंदराब में रहने वाले बहुत से लोग पिछली सरकार की सेना में काम करते थे और अब तालिबान का ज़बरदस्त विरोध करते हैं। ये लोग तालिबान को बाहरी मानते हैं। हालांकि गैर-न्यायिक तरीके से मारे गए कई लोगों के रिश्तेदार विद्रोही बलों की भी आलोचना करते हैं। उनका आरोप है कि विद्रोहियों के गुरिल्ला हमलों की वजह से आम नागरिक तालिबान का निशाना बनने के लिए बेबस हैं।
बीबीसी अंदराब में एक वरिष्ठ विद्रोही लड़ाके कमांडर शूज़ा से बात करने में कामयाब रहा। बीबीसी के भेजे गए सवालों का जवाब देते हुए एक रिकॉर्ड किए गए संदेश में कमांडर शूज़ा ने कहा, 'हमारी लड़ाई न्याय के लिए है। भाईचारे के लिए है, बराबरी और सच्चे इस्लाम के लिए है। हम तालिबान के इस्लाम के लिए नहीं लड़ रहे हैं, जो कि धर्म का ही अपमान करता है।' 'हमारी लड़ाई हमारी बहनों के अधिकार के लिए हैं। पैगंबर मोहम्मद ने कहा था कि शिक्षा महिलाओं और पुरुष दोनों के लिए अनिवार्य है।'
अंदराब और पंजशीर में चल रही हिंसा और विरोध स्थानीय स्तर तक सीमित है और पूरे देश में तालिबान के नियंत्रण के लिए ख़तरा नहीं है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि तालिबान भी वहीं ग़लतियां दोहरा रहा है, जो यहां उनके पिछले विरोधियों ने की थीं।
बीते 2 दशकों में अंतरराष्ट्रीय बलों और अफ़गान सुरक्षा बलों पर नागरिकों पर छापेमारी करने और मासूम नागरिकों की हत्या करने के आरोप लगते रहे थे जिसे तालिबान को देश के कई इलाक़ों में लोकप्रियता हासिल करने का मौका मिला। यहां तालिबान की मौजदूगी और उसके लिए कुछ हद तक समर्थन पहले से ही था।
अब तालिबान पर उसी तरह के विद्रोही विरोधी तरीक़ों के इस्तेमाल के आरोप लग रहे हैं। हालांकि ज़िम्मेदारी का कोई अहसास दिखाई नहीं देता है। अब्दुल हाशिम जिन्हें कथित तौर पर तालिबान ने हिरासत में लेने के बाद मार दिया था, के रिश्तेदार आक्रोश ज़ाहिर करते हुए कहते हैं, 'तालिबान सरकार होने का दावा करते हैं, फिर तो उन्हें जांच करनी चाहिए न कि लोगों को सीधे गोली मार देनी चाहिए।'