कोरोना: हाहाकार वाले इस दौर में आपसे 'पॉज़िटिव सोच' क्यों चाहती है सरकार?

BBC Hindi

गुरुवार, 27 मई 2021 (11:45 IST)
विनीत खरे (बीबीसी संवाददाता)
 
कोरोनावायरस के कारण होने वाली मौतों की कम गिनती किए जाने के आरोपों के बीच भारत में मरने वालों का आधिकारिक संख्या 3 लाख के पार चला गया है। हालात थोड़े बेहतर हैं लेकिन ये भूलना मुश्किल है कि किस तरह तस्वीरें चीख-चीख कर कह रही थीं कि सड़कों पर और घरों में ऑक्सीजन की कमी, अस्पतालों में आईसीयू बेड और वेंटिलेटर की कमी से तड़पकर लोगों की मौत हो रही थी। कैसे लोगों को दवाओं और ऑक्सीजन लिए ब्लैक मार्केट का रुख़ करना पड़ा और कई परिवार आर्थिक तौर पर बर्बाद हो गए और कैसे उन्हें अपनों के शवों को अंतिम संस्कार के लिए कंधों पर ले जाना पड़ा।
 
आरोप लगाए जा रहे हैं कि ये सब हुआ, क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार कोरोना महामारी की दूसरी लहर के लिए तैयार नहीं थी। देश और दुनिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की लगातार होती तीखी आलोचनाओं के बीच आया सरकार का 'सकारात्मक सोचिए' अभियान विवादों के घेरे में है। क्या इस अभियान का मक़सद बुरी ख़बरों से लोगों में बढ़ती नकारात्मकता को कम करना है या फिर आलोचनाओं से उनका ध्यान भटकाना है?
 
मुहिम की शुरुआत
 
कोविड-19 रिस्पॉन्स टीम के संयोजक लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) गुरमीत सिंह के मुताबिक़ 'पॉज़िटिविट अनलिमिटेड- हम जीतेंगे' नाम की इस मुहिम की शुरुआत अप्रैल में एक ज़ूम मीटिंग से हुई जिसमें कई संस्थाओं के लोग शामिल हुए।
 
उन्होंने बताया कि इस मुहिम के तहत क़रीब 100 मीडिया चैनलों पर लेक्चरों का आयोजन किया गया, लोगों तक मदद पहुंचाने के लिए 19 आइसोलेशन सेंटर बनाए गए, ऑक्सीजन सिलेंडर की सप्लाई की गई और क़रीब 3,500 से ज़्यादा शवों का अंतिम संस्कार किए गए।
 
लेक्चर देने वालों में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, कारोबारी अज़ीम प्रेमजी और आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर शामिल थे।
 
सकारात्मकता पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के 'जो लोग चले गए, वो मुक्त हो गए' बयान के अख़बार के एक ग्रैब को ट्वीट करने पर वरिष्ठ पत्रकार सीमा चिश्ती को हाल ही में काफ़ी ट्रोल किया था।
 
सीमा चिश्ती के मुताबिक़ 'राजनीति से प्रेरित' इस मुहिम का असल मक़सद है 'जो कुछ भी हुआ है लोग किसी तरह से वो सब भूल जाएं।'
 
वो कहती हैं सरकार का उद्देश्य है कि कोरोना महामारी से हुई मौतों से किसी तरह से लोगों की तवज्जो हटाना है ताकि वो ये बातें करें कि 'अच्छे दिन' आने वाले हैं।
 
आलोचकों के मुताबिक़ कोरोना पर होने वाली पीआईबी ब्रीफ़िंग्स में भी सरकारी कोशिश होती है कि कैसे देश के हालात की एक बेहतर तस्वीर पेश की जाए, और ये मीडिया के सामने बात की जाए कि कैसे देश में स्थिति सुधर रही है, लोग ठीक हो रहे हैं, रिकवरी रेट बेहतर हो रहा है और लोगों को कोरोना की वैक्सीन लग रही है। वगैरह-वगैरह।
 
सीमा चिश्ती कहती हैं, 'यही तो पूरी सोच है प्रोपेगैंडा मैनेजमेंट की। आप इतने आंकड़े फेंक दें ताकि जिन आंकड़ों में ज़रूरी बात है वो बिलकुल खो जाएं।'
 
'वामपंथी इकोसिस्टम मोदी को बदनाम करना चाहता है'
 
कम्युनिकेशंस कंसल्टेंट दिलीप चेरियन ने बीबीसी संवाददाता सौतिक बिस्वास को बताया कि नरेंद्र मोदी सरकार की समस्या ये है कि किसी संकट से निपटने के लिए उसका पहला हथियार संचार और इमेज मैनेजमेंट होता है।
 
वहीं, भाजपा प्रवक्ता सुदेश वर्मा के मुताबिक़ किसी ने चेतावनी नहीं दी थी कि कोरोना की इतनी बड़ी लहर आएगी। उनका मानना है कि 'अगर आप विश्वास से भरे हैं तो आप इस महामारी से ज़्यादा मज़बूती से लड़ पाएंगे।'
 
सरकारी पक्ष को पेश करने वाला उनका 'द डेली गार्डियन' का लेख 'वायरस आपका दुश्मन है, प्रधानमंत्री मोदी नहीं' हाल में काफ़ी चर्चा का विषय रहा था। इस लेख में उन्होंने विपक्ष पर अफ़वाह फैलाने का आरोप लगाया था।
सुदेश वर्मा कहते हैं, 'हमारा मानना है कि एक वामपंथी इको सिस्टम मोदी सरकार को बदनाम करना चाहता है क्योंकि वो बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा को बर्दाश्त नहीं कर सकते।'
 
लेकिन सरकार की फ़िक्र की वजह क्या है, इसका अंदाज़ा शायद रॉयटर्स की एक रिपोर्ट से दिखा जिसके मुताबिक़ दो ताज़ा सर्वे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अप्रूवल रेटिंग्स गिरी हैं।
 
'लोग बेड के लिए किसी के मरने का इंतज़ार करने को मजबूर'
 
यहां ये जानना ज़रूरी है कि जिन लोगों ने अपनों को कोरोना काल में खोया, वो सरकार के इस अभियान के बारे में क्या सोचते है। इसके लिए हमने रुख़ किया उत्तरप्रदेश का, जो कोरोना महामारी की दूसरी लहर के केंद्र में रहा है।
 
यहां रहने वाले ऐडवोकेट आदित्य राघव के गांव कुंवरपुर में स्थिति अब सुधर रही है लेकिन राघव के मुताबिक़ वहां कोरोना से 15-16 लोगों की जान जा चुकी है। सकारात्मकता पर सरकारी बयानों पर वो खफ़ा हैं।
 
वो कहते हैं, 'अपनी राजनीतिक साख को बचाने के लिए ये जो ऊल-जुलूज बयान आ रहे हैं वो आदमी को चिढ़ाते हैं। उसकी बेबसी को बढ़ाते हैं।'
 
कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने उत्तरप्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के ग्रामीण इलाकों में काफ़ी तबाही मचाई है और सरकारी प्रयासों की कमी खल रही है।
 
आदित्य राघव कहते हैं, 'प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में घास उगी हुई हैं। उनकी कभी सफ़ाई नहीं होती। ऐसे में आप कैसे कह सकते हैं कि सकारात्मकता लाइए?'
 
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दावा रहा है कि उनके राज्य में सब कुछ ठीक है, हालांकि उनकी पार्टी के नेता और विधायक ही ज़मीनी हालात की शिकायत करते रहे हैं।
 
आदित्य राघव के मुताबिक़ जब तक घर-घर में जांच नहीं होगी तब तक आप कैसे कह सकते हैं, या सरकार कैसे कह सकती है कि कोविड कम हो रहा है? वो कहते हैं, 'जब जांच नहीं होगी तो अपने आप नतीजे कम आएंगे। ये सब सरकारी आंकड़ेबाज़ी है।'
 
जब आदित्य राघव की पत्नी जब बीमार थीं, तो कुछ सौ रुपए में मिलने वाला सिलेंडर का रेग्युलेटर उन्हें पांच हज़ार में मिला था।
 
वो कहते हैं, 'आम आदमी बैठा है और वो देख रहा है कि कब कोई मरीज़ मरे और कब अस्पताल में बेड खाली मिले। कोविड अस्पतालों का हाल बेहाल हैं। हकीकत कुछ और है, दिखाते कुछ और हैं।'
 
'हमारा आदमी तो चला गया... हम क्या सोचेंगे?'
 
राघव के ही गांव के किसान रिंकू शर्मा की 34 साल की पत्नी अचानक बीमार हुईं। उन्हें सांस लेने में तकलीफ़ हुई और ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतज़ार करते-करते उनकी मौत हो गई। उनके दो बेटे और एक बेटी है।
 
रिंकू ने बताया कि वो एक ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए 70,000 रुपए तक देने को तैयार थे लेकिन उन्हें सिलेंडर नहीं मिला।
 
सकारात्मक पर सरकारी कोशिशों पर वो बोले, 'हमारा तो आदमी चला गया। क्या सोचेंगे हम?'
 
कुछ दूर बनैल गांव में झलक प्रताप सिंह के 38-वर्षीय चाचा के लड़के गगन प्रताप की कोरोना से मौत हो गई। झलक प्रताप सिंह के मुताबिक़ उनके गांव में कोरोना से 32-33 लोगों की मौत हो चुकी है।
 
वो कहते हैं, 'सरकार को जब ये जानकारी थी कि दूसरी लहर आएगी तो ऑक्सीजन, अस्पताल वगैरह का पहले से इंतज़ाम किया जाना चाहिए था, जहां आदमी को सुविधा मिल सके।'
 
खुद को रज्जू भइया का रिश्तेदार बताने वाले झलक प्रताप सिंह के मुताबिक उनके गांव में भी अस्पताल है लेकिन उसमें कोई देखने वाला नहीं।
 
वो कहते हैं, 'किसी भी अस्पताल में जाओ, कहीं कुछ है ही नहीं। ऑक्सीजन नहीं है। कहीं कोई ऐडमिट करने वाला नहीं है। अस्पतालों में लेने को मना कर देते हैं।'
 
ये वही इलाके हैं जिन्होंने पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भाजपा को बड़ी संख्या में वोट दिया था। ऐसे में सवाल यह भी है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी का हाल क्या होगा?
 
रिपोर्टों के मुताबिक़ अगले साल बेहद अहम विधानसभा चुनावों में पार्टी की रणनीति तय करने के लिए भाजपा और आरएसएस नेताओं के बीच बैठकें हुई हैं।
 
'मुश्किल समय में सकारात्मक सोच ज़रूरी'
 
सरकार की तीखी आलोचनाओं के बीच ऐसी भी आवाज़ें हैं जो कोरोनाकाल में सकारात्मकता की ज़रूरत पर बल देती हैं।
 
वेंटिलेटर की कमी की वजह से कोरोना संक्रमित मशहूर शास्त्रीय गायक राजन मिश्र की हाल में मौत हो गई।
 
उनके बेटे पंडित रितेश मिश्र ने उन मुश्किल पलों को याद करते हुए बताया कि कैसे वो और उनके चाचा पंडित साजन मिश्र घंटों एक अस्पताल की पार्किंग से मदद के लिए वेंटिलेटर वाले एंबुलेंस के लिए फ़ोन करते रहे, और कैसे इस बीच उन्हें डॉक्टर ने फ़ोन करके बताया कि उनके पिता को दूसरा दिल का दौरा पड़ा।
 
पंडित राजन मिश्र को फिर तीसरा दिल का दौरा भी पड़ा जिसे वो बर्दाश्त नहीं कर पाए।
 
पंडित रितेश मिश्र कहते हैं, 'जिस दौर में यह समस्या हुई, उस दौर में ऐसी मारामारी हर जगह थी कि कितने लोग बिना ऑक्सीजन के पार्किंग में ही चल बसे।'
 
पंडित रितेश मिश्र साथ मिलकर स्थिति का सामना करने की कोशिशों की बात करते हैं और 'ब्लेम गेम' से बचने की सलाह देते हैं।
 
जब पंडित राजन मिश्र के नाम पर एक कोविड अस्पताल शुरू हुआ तो तंज़ कसे गए, लेकिन पंडित रितेश मिश्र के मुताबिक़ इसे सरकार के उनके पिता के लिए 'श्रद्धा सुमन' के तौर पर भी देखा जा सकता है।
 
85 वर्षीय मशहूर ठुमरी गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र और उनके परिवार को भी पीएम नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ से मदद की उम्मीद है।
 
बनारस में 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रस्तावक रहे पंडित छन्नूलाल मिश्र की पत्नी और उनकी बेटी संगीता की 4 दिनों की अंतराल में मौत हो गई थी।
 
पंडित छन्नूलाल मिश्र की छोटी बेटी नम्रता के मुताबिक़ उनकी मां को कोविड-19 हुआ था लेकिन उनकी दीदी में कोरोना के कोई लक्षण नहीं थे। संगीता की मौत एक अस्पताल में हुई और उनका परिवार उसकी उच्चस्तरीय निष्पक्ष जांच की मांग कर रहा है।
 
पंडित छन्नूलाल मिश्र कहते हैं, 'हमारा दुख तो बहुत है। 2-2 मृत्यु हुई है 4 दिन के अंदर। न कहीं आते-जाते हैं, घूमने का मन नहीं करता है, क्योंकि अंदर से इतना दुख है। जब खाना खाने बैठते हैं तो बिटिया की याद आती है और आंसू निकलने लगते हैं।'

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