वर्ल्ड कप फाइनल से पहले इंग्लैंड को कौन सा डर सता रहा है?

शनिवार, 13 जुलाई 2019 (21:19 IST)
अभिजीत श्रीवास्तव, बीबीसी संवाददाता
 
लंदन के ऐतिहासिक लॉर्डस मैदान पर दुनिया रविवार को एक नया चैंपियन देखेगी। यह न्यूजीलैंड और इंग्लैंड दोनों में से कोई भी हो सकता है। ये दोनों टीमें आईसीसी वर्ल्ड कप 2019 के फाइनल में खिताब के लिए आपस में भिड़ेंगी।
 
जहां न्यूजीलैंड चार साल बाद एक बार फिर फाइनल की दहलीज को पार कर वर्ल्ड कप अपने नाम करना चाहेगा वहीं इंग्लैंड फाइनल में 27 साल बाद पहुंचा है और 44 सालों के वर्ल्ड कप के इतिहास में यह उसकी चौथी कोशिश होगी कि वर्ल्ड कप अपने नाम करे।
 
और यही वो डर का कारण भी है कि कहीं एक बार फिर यह कोशिश नाकाम न हो जाये। क्योंकि फाइनल में तो इससे पहले वो तीन बार पहुंच चुका है लेकिन खिताब जीतने में हर बार उसे नाकामी ही मिली है।
 
रविवार को फाइनल का यह मुकाबला क्रिकेट का मक्का कहे जाने लॉर्ड्स के मैदान पर होना है। 1979 में माइक ब्रेयरली के नेतृत्व में इसी मैदान पर इंग्लैंड पहली बार फाइनल में हारा था।
 
तब इंग्लैंड की टीम ने ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और पाकिस्तान को लीग मैचों में और न्यूजीलैंड को सेमीफाइनल में हराकर फाइनल में कदम रखा था लेकिन वहां वेस्ट इंडीज ने उसे 92 रनों से हराकर लगातार दूसरी बार वर्ल्ड कप उठाने वाली पहली टीम बनी थी।
 
जब दूसरी और तीसरी बार फाइनल में हारा
इंग्लैंड को दूसरी बार यह खिताब हासिल करने का मौका 1987 में मिला। तब यह मुकाबला भारत-पाकिस्तान में संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। तब सेमीफाइनल में भारत को हराकर माइक गेटिंग की कप्तानी में इंग्लैंड की टीम फाइनल में पहुंची थी लेकिन वहां एलेन बॉर्डर के नेतृत्व वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम ने महज 7 रनों के अंतर से उन्हें हराकर खिताब पर पहली बार कब्जा जमाया था।
 
इंग्लैंड को तीसरी बार एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया में नाकामी झेलनी पड़ी। यह तीसरा मौका 1992 में आया। इंग्लैंड की कप्तानी ग्राहम गूच के हाथों में थी और वर्ल्ड कप ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड की धरती पर खेला गया था।
 
यह वो ही वर्ल्ड कप था जिसमें इंग्लैंड और दक्षिण अफ़्रीका के बीच सेमीफाइनल मुकाबला बारिश से प्रभावित रहा और फिर जब बारिश रुकी तो डकवर्थ लुईस नियमों के मुताबिक अफ़्रीकी टीम को 1 गेंद पर 22 रन बनाने का विवादास्पद लक्ष्य दिया गया था।
 
लेकिन इमरान ख़ान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान की टीम ने 22 रनों से फाइनल जीत कर इंग्लैंड को एक बार फिर खिताब जीतने से महरूम कर दिया था।
 
मेजबानी का फायदा, प्रदर्शन दमदार
हालांकि, इस बार इंग्लैंड ही चैंपियन बनेगा इसके लिए कई तर्क दिये जा रहे हैं। सबसे पहला तर्क तो यह कि इंग्लैंड मेजबान है और 2011 में भारत और 2015 में जब ऑस्ट्रेलिया ने खिताबी जीत दर्ज की तब वो मेजबान देश थे।
 
लेकिन यहां यह भी तथ्य है कि इंग्लैंड अपनी मेजबानी में 1979 में फाइनल में पहुंचकर खिताबी जीत हासिल करने में नाकाम रहा था। अब इस टूर्नामेंट में इंग्लैंड के प्रदर्शन और उसकी मजबूत टीम की बात करते हैं।
 
सबसे पहले टूर्नामेंट में इंग्लैंड के प्रदर्शन की बात। इंग्लैंड ने फाइनल मुकाबले की दूसरी टीम न्यूजीलैंड को लीग मुकाबले के दौरान बड़े अंतर से हराया था। उस मैच में इंग्लैंड ने 305 रन बनाये थे और न्यूजीलैंड की टीम को 186 रनों पर ऑल आउट कर 119 रनों के बड़े अंतर से हराया था।
 
इतना ही नहीं, लीग चरण की अंक तालिका में नंबर-1 पर रही टीम इंडिया को इंग्लैंड ने 31 रनों से हराया था तो नंबर दो पर रही ऑस्ट्रेलिया को ही वो सेमीफाइनल में हरा कर फाइनल में पहुंचा है।
 
टीम संतुलन में कौन है भारी?
अब यह बात तो क्रिकेट के जानकार टूर्नामेंट शुरू होने के पहले से कर रहे थे कि भारत और इंग्लैंड इस वर्ल्ड कप के सबसे बड़े दावेदार हैं। भारतीय टीम तो महज 40 मिनट के खराब खेल से सेमीफाइनल हार कर बाहर हो गई है। लेकिन इंग्लैंड फाइनल में है तो इसकी सबसे बड़ी वजह उसकी टीम लाइनअप और दमदार कप्तान इयॉन मॉर्गन है।
 
टीम के सलामी बल्लेबाज जेसन रॉय, जॉनी बेयरेस्टो ने टूर्नामेंट में कुल 922 रन जोड़े हैं। तो मध्य क्रम में जो रूट 549 रन, बेन स्टोक्स 381 रन और कप्तान मॉर्गन 362 रन बना चुके हैं।
 
उधर गेंदबाजी में जोफ्रा आर्चर 19 विकेट, मार्क वुड 17 विकेट और क्रिस वोक्स 13 विकेट लेने वाले गेंदबाज हैं तो स्पिनर आदिल राशिद ने भी 11 विकेट चटकाये हैं। यानी टॉप चार गेंदबाजों ने कुल मिलाकर टूर्नामेंट में 60 विकेट लिए हैं। कुल मिलाकर यह कहना मुश्किल नहीं कि टीम संतुलन के मामले में इंग्लैंड का पलड़ा भारी है।
 
गेंदबाजी में न्यूजीलैंड का प्रदर्शन टूर्नामेंट में अच्छा रहा है। इसके भी शुरुआती चार गेंदबाजों ने 60 विकेट लिए हैं। लेकिन बल्लेबाजी में कप्तान केन विलियम्सन और कुछ हद तक रॉस टेलर को छोड़कर किसी भी अन्य खिलाड़ी ने 300 से अधिक रन नहीं बनाये हैं। यानी फाइनल में जहां न्यूजीलैंड की टीम अपने गेंदबाजों और कप्तान विलियम्सन के भरोसे मैदान में होगी वहीं इंग्लैंड अपनी पूरी टीम के प्रदर्शन को लेकर उतरेगी।
 
लेकिन इन सब के बावजूद यक्ष प्रश्न यही है कि तीन बार मिली नाकामी को पीछे छोड़ते हुए क्या इंग्लैंड इस बार फाइनल की बाधा को पार करने में कामयाब हो पायेगा? क्योंकि सामने न्यूजीलैंड की वो टीम है जिसने कागजों पर भारी भारतीय टीम का वर्ल्ड कप से बस्ता बांध दिया।

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