क्या भारतीय टीम के कोच शास्त्री देंगे इन सवालों का जवाब? : वर्ल्ड कप 2019
शुक्रवार, 12 जुलाई 2019 (12:59 IST)
नितिन श्रीवास्तव, बीबीसी संवाददाता, मैनचेस्टर से
'गैरी और हमारी कोचिंग टीम तमाम तारीफों की हकदार है। इस दिन के लिए उन्होंने एक साल पहले हमारी तैयारी कराना शुरु कर दिया था। वो टीम में बड़ी तब्दीली लेकर आए।' साल 2011 के वर्ल्ड कप में जीत के बाद सचिन तेंदुलकर ने ये बातें कहीं थीं।
मृदुभाषी और मीडिया से झिझकने वाले दक्षिण अफ्रीका के पूर्व ओपनर गैरी कर्स्टन ने साल 2008 के एशिया कप फ़ाइनल में श्रीलंका के हाथों मिली हार के बाद ने कामकाज का तरीका साफ तौर पर बदल दिया। उसके बाद कर्स्टन ने ये तय किया कि भारत के रौबीले और करोड़पति क्रिकेटर एक अनुशासित यूनिट की तरह टीम मैनेजमेंट के साथ तालमेल बनाते हुए खेलें और देश के लिए सम्मान हासिल करें।
चार साल में दूसरी बार नॉकआउट
अब 26 मार्च 2015 को सिडनी क्रिकेट ग्राउंड के घटनाक्रम पर नज़र डालते हैं। मेजबान ऑस्ट्रेलिया ने वर्ल्ड कप सेमीफ़ाइनल में भारत को बुरी तरह से रौंद दिया था।
विराट कोहली भावशून्य आंखों के साथ पैवेलियन की बालकनी में बैठे थे और कप्तान महेंद्र सिंह धोनी जीत हासिल करने वाली ऑस्ट्रेलिया की टीम के खिलाड़ियों को बधाई देने मैदान पर आए। तभी रवि शास्त्री भारत के हर खिलाड़ी की पीठ थपथपा कर उन्हें शाबासी दे रहे थे। उस वक्त शास्त्री की उम्र 53 साल थी और वो भारतीय टीम के डॉयरेक्टर थे। शास्त्री ने साल 2014 से 2016 में तब तक ये भूमिका संभाली, जब तक पूर्व कप्तान अनिल कुंबले टीम के हेड कोच नियुक्त नहीं हो गए।
कामयाब रहे कुंबले
अनिल कुंबले करीब एक साल यानी जून 2017 तक भारत के कोच रहे। जून में ही उनके और कप्तान विराट कोहली के बीच मतभेद की रिपोर्ट मीडिया में आईं। पाकिस्तान के खिलाफ इंग्लैंड में चैंपियन्स ट्रॉफी के फ़ाइनल में मिली हार के बाद कुंबले भारतीय टीम के साथ वेस्ट इंडीज नहीं गए।
भारतीय टीम का कोच रहते हुए कुंबले के हिस्से कामयाबी भी आईं। भारत ने 17 टेस्ट मैचों में से 12 में जीत हासिल की। भारत ने आईसीसी की टेस्ट रैंकिंग में भी पहला स्थान दोबारा हासिल कर लिया।
कप्तान की पसंद रवि शास्त्री!
इसके तुरंत बाद रवि शास्त्री भारत के हेड कोच बने और आम तौर पर माना गया कि इस फ़ैसले में कप्तान और टीम के कुछ वरिष्ठ सदस्यों का समर्थन है। ये भी उम्मीद लगाई गई कि टीम डॉयरेक्टर रहते हुए भारत को शानदार तरीके से वर्ल्ड कप सेमीफ़ाइनल तक लेकर गए शास्त्री इंग्लैंड में साल 2019 में होने वाले वर्ल्ड कप के लिए टीम तैयार करेंगे। शास्त्री ने ऐसा किया भी।
उन्होंने न सिर्फ संजय बांगड़ को बल्लेबाजी कोच के तौर पर बरकरार रखा बल्कि उन्हें टीम का असिस्टेंट कोच भी बना दिया। वो भरत अरुण को टीम के बॉलिंग कोच के तौर पर आए। इस फैसले को लेकर जोरदार बहस भी हुई। वजह ये थी कि अनिल कुंबले अपने कार्यकाल के दौरान इस पद पर भारत के पूर्व तेज गेंदबाज जहीर खान की नियुक्ति के पक्ष में थे।
चयन पर सवाल
रवि शास्त्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारतीय टीम विदेशी दौरों पर युवा खिलाड़ियों को आजमाती रहे ताकि वो अलग-अलग स्थितियों में खुद को ढाल सकें।
शास्त्री को इस बात भी श्रेय दिया जाता है कि उन्होंने भारतीय खिलाड़ियों को स्वाभाविक खेल दिखाने और अपनी बल्लेबाजी और गेंदबाजी की खूबियां निखारने की आजादी दी। लेकिन वर्ल्ड कप 2019 के पहले और वर्ल्ड कप के दौरान लिए गए कुछ फ़ैसले भविष्य में भी उन्हें परेशान करते रहेंगे।
भारत के पूर्व खिलाड़ी फारुक इंजीनियर ने बीबीसी हिंदी के साथ ख़ास बातचीत में रवि शास्त्री और कप्तान कोहली को लेकर एक अहम सवाल उठाया। उन्होंने पूछा, 'ऋषभ पंत शुरुआत से टीम का हिस्सा क्यों नहीं थे? जब वर्ल्ड कप के लिए टीम घोषित हुई तो खराब चयन क्यों हुआ?' ये पूछने पर, 'क्या वो सोचते हैं कि हार के लिए टीम के कोच की भी बराबर की जिम्मेदारी है?'
इंजीनियर ने कहा, 'हम इसके लिए सिर्फ़ रवि को दोष नहीं दे सकते हैं। ये हार टीम की है और ये एक बुरा दिन था लेकिन हां, टीम चयन एक मुद्दा है और इसका समाधान होना चाहिए।'
अनुभव को क्यों किया नजरअंदाज?
बीते दो साल के दौरान रवि शास्त्री और विराट कोहली का चयन में ख़ासा दखल था और इसे लेकर एक और सवाल उठता है। जब पूरी दुनिया जानती थी कि ये टूर्नामेंट इंग्लैंड में होना है जहां गेंद हवा में लहराती है तब चेतेश्वर पुजारा और अजिंक्य रहाणे जैसे खिलाड़ियों को टीम में जगह क्यों नहीं दी गई?
कोहली के अलावा बतौर चीफ कोच रवि शास्त्री इस बात से वाकिफ थे कि पुजारा ने काउंटी क्रिकेट में खेलते हुए उठती और लहराती गेंदों का सामना करने में होने वाली दिक्कतों, खासकर इंग्लैंड की परिस्थितियों में सामने आने वाली दिक्कतों को दूर कर लिया है। रहाणे के साथ भी ऐसा ही है। उन्होंने कई बार अपनी सीधे बल्ले से खेलने और चुनौती भरे गेंदबाजी स्पैल का धैर्य का सामना करने में अपनी ठोस तकनीक का प्रदर्शन किया है। उन्होंने बीते आईपीएल में तेजी से रन जुटाकर और बड़े शॉट खेलकर अपने आलोचकों को गलत साबित किया है।
कौन लेगा जिम्मेदारी?
यहां तक कि ज्यादा अनुभव रखने वाले अंबाती रायुडू के नाम पर भी टीम चयन में विचार नहीं हुआ। शायद इसीलिए उन्होंने वर्ल्ड कप के बीच ही जल्दीबाजी में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास का एलान कर दिया।
लेकिन जब भारतीय टीम ने विजय शंकर, मंयक अग्रवाल और यहां तक कि अपनी भूमिका से कुछ हद तक इंसाफ नहीं कर पाए ऋषभ पंत जैसे अनुभवहीन खिलाड़ियों को चुनने का सोचा समझा जोखिम लिया तब उनके प्रदर्शन न कर पाने की जिम्मेदारी कौन लेगा? चयनकर्ता, कप्तान या फिर कोच जो तमाम लोगों में सबसे वरिष्ठ हैं। न सिर्फ उम्र में बल्कि क्रिकेट के अनुभव के पैमाने पर भी।
एक और सवाल जो है तो दो दिन पुराना लेकिन आज भी प्रासंगिक है।
दिग्गजों ने उठाए सवाल
ओल्ड ट्रैफर्ड में शुरुआती क्रम के तीन बल्लेबाजों (रोहित, विराट और राहुल) के विकेट सस्ते में गंवाने के बाद टीम के थिंक टैंक (रवि शास्त्री और कोहली) ने हालात संभालने के लिए महेंद्र सिंह धोनी जैसे अनुभवी खिलाड़ी को क्यों नहीं भेजा? धोनी को पंत, पांड्या और दिनेश कार्तिक के बाद सातवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए भेजा गया। ये उस दिन की सबसे बड़ी गलती थी।
ऐसे वक्त में जब भारत को बल्लेबाज़ी क्रम को मजबूती देने के लिए एक अनुभवी व्यक्ति की जरूरत थी, उन्होंने धोनी को सातवें नंबर पर बल्लेबाज़ी के लिए भेजा। हार्दिक पांड्या और दिनेश कार्तिक जैसे पिंच हिटर धोनी के पहले बल्लेबाजी के लिए आए और अफसोस ये रहा कि जब आखिर में भारत को पिंच हिटर्स की जरूरत थी तब वो ड्रेसिंग रुम बैठकर असहाय भाव से मैच देख रहे थे।
सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे भारत के पूर्व खिलाड़ियों ने धोनी को बल्लेबाजी के लिए देर से भेजने के फैसले पर सवाल उठाए। टूर्नामेंट के आधिकारिक ब्रॉडकॉस्टर के लिए कमेंट्री करते वक्त लक्ष्मण ने कहा, 'धोनी को इतने नीचे भेजना बड़ी भूल थी। वो दिनेश कार्तिक और हार्दिक पांड्या के विकेट बचा सकते थे और धोनी को ऋषभ पंत के साथ साझेदारी बनाने का मौका दे सकते थे।'
पिच पढ़ने में गलती?
सौरव गांगुली भी इस मुद्दे पर लक्ष्मण के साथ सहमत दिखे। उन्होंने कहा कि धोनी बल्लेबाजी के लिए पहले आ सकते थे और आखिर तक खेल सकते थे। उनके बाद हमारे पास जडेजा, पांड्या और कार्तिक होते, पहले जिनका चार या पांच ओवरों में खासा योगदान रहा है।' आखिर में एक अंतिम बड़ा सवाल है कि क्या टीम मैनेजमेंट ने पिच को सही तरीके से परखा था?
कोच ने अपने स्टॉफ के वरिष्ठ सदस्यों और खिलाड़ियों के साथ एक दिन पहले नैट्स के दौरान ओल्ड ट्रैफर्ड की पिच का ख़ुद करीबी मुआयना किया था।
अगर इस विकेट में तेज गेंदबाजों के लिए मदद के आसार दिख रहे थे तो स्पिनर युजवेंद्र चहल की जगह मोहम्मद शमी को आसानी से शामिल कर तेज गेंदबाजी आक्रामण की धार बढ़ाई जा सकती थी।
सेमीफाइनल में जडेजा ने स्पिनर की भूमिका निभाई। 10 ओवर में सिर्फ 34 रन दिए और खतरनाक दिख रहे न्यूज़ीलैंड के ओपनर हेनरी निकोलस का अहम विकेट लिया। वहीं, युजवेंद्र चहल ने 10 ओवर में 63 रन दिए और सिर्फ एक विकेट लिया।
हैरानी ये है कि टूर्नामेंट में सिर्फ़ चार मैच खेलने का मौका पाने वाले और 14 विकेट लेने वाले मोहम्मद शमी को ओल्ड ट्रैफर्ड में अंतिम 11 में जगह नहीं दी गई।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि क्रिकेट एक टीम गेम है और इसमें हार या ग़लत फ़ैसले के लिए इक्का-दुक्का लोगों को दोषी ठहराना ठीक नहीं है। लेकिन अगर कप्तान और खिलाड़ियों की हर फ़ैसले, रन, गेंद और कैच के लिए समीक्षा हो रही है तब इस बड़े जहाज के कैप्टन माने वाले कोच से भी मुश्किल सवाल पूछे जाने चाहिए।
और जैसा फारुक इंजीनियर बखूबी कहते हैं, 'हार को मिटाना सबसे मुश्किल है। हार आफत का पिटारा खोल देती है। इस मामले की बात की जाए तो दूसरा रन लेते वक़्त धोनी ने डाइव क्यों नहीं लगाई जबकि वो जानते थे कि फील्डर उनके छोर पर गेंद फेंक रहा है? और रविंद्र जडेजा को इतने मैचों में बाहर क्यों रखा गया जबकि शायद वो अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में हैं? ये सब दिमाग को चकराने वाला है।'