वह साल 2009 के दिसंबर महीने की कोई तारीख थी। सीता सोरेन झारखंड की जामा विधानसभा क्षेत्र के हेमंतपुर गांव में सैकड़ों लोगों से रुबरू थीं। चारों तरफ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के हरे झंडे लगे थे। सीता सोरेन मंच पर आईं और आंखें बंद कर हाथ जोड़ लिए।
उन्होंने शिबू सोरेन जिंदाबाद के नारे लगाए और कहा, 'उनके पति दुर्गा सोरेन ने उन्हें यहां साथ लेकर आने का वादा किया था। लेकिन, ऐसा नहीं हो सका। मैं अकेली आई हूं और मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए।'
लोगों की भीड़ यह सुन झारखंड मुक्ति मोर्चा ज़िंदाबाद, शिबू सोरेन ज़िंदाबाद और दुर्गा सोरेन अमर रहें जैसे नारे लगाने लगी। पारंपरिक वाद्य यंत्र बजने लगे, तब सीता सोरेन ने अपना भाषण आगे बढ़ाया। उनकी उम्र तब सिर्फ़ 35 साल थी।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन के बड़े बेटे और उनके पति दुर्गा सोरेन की कुछ ही महीने पहले महज़ 39 साल की उम्र में ब्रेन हैमरेज से मौत हुई थी। वे जामा के विधायक रहे थे। लिहाज़ा, सीता सोरेन अपने पति की पारंपरिक सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ रही थीं। उन्होंने इसके लिए शिबू सोरेन को मनाकर पार्टी का टिकट लिया था। सियासत में उनकी एंट्री कुछ इस तरीके से हुई।
बढ़ती गई महत्वाकांक्षा
पति की मौत के बाद इत्तिफ़ाक़न राजनीति में आईं सीता सोरेन ने अबतक लंबा सफर तय कर लिया है। उन्होंने जामा से कभी चुनाव नहीं हारा। वे तीन बार विधायक रहीं। इस दौरान उनकी महत्वाकांक्षा बढ़ती रही। इस कारण उन्होंने शिबू सोरेन परिवार को कई दफा मुश्किलों में भी डाला।
वे बार-बार कहती रहीं कि उनके पति दुर्गा सोरेन अपने पिता शिबू सोरेन के वास्तविक उत्तराधिकारी थे। लिहाज़ा, अब यह हक उनका है। स्पष्ट था कि वे परोक्ष रूप से मुख्यमंत्री पद पर अपना हक जताने लगी थीं। इस पर परिवार में सहमति नहीं थी।
पिछली जनवरी में उनके देवर और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ईडी द्वारा गिरफ़्तारी के वक्त भी उनकी राय परिवार के दूसरे लोगों से अलग रही।
इस कारण उनकी देवरानी कल्पना सोरेन का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए चर्चाओं में आने के बावजूद चंपाई सोरेन झारखंड के नए मुख्यमंत्री बना दिए गए।
हेमंत सोरेन ने गिरफ़्तारी से ठीक पहले एक पत्र जारी कर चंपाई सोरेन को विधायक दल का नेता नियुक्त कर दिया था। उसी पत्र में उन्होंने सहयोगी पार्टियों के विधायकों से भी चंपाई सोरेन को समर्थन देने की अपील की थी।
इसके बाद सीता सोरेन ने नई सरकार में मंत्री पद पर दावा किया। मीडिया से बातचीत में उन्होंने दावा किया कि उन्हें बाबा यानि शिबू सोरेन का आशीर्वाद मिल चुका है। लेकिन, उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया और उनके सबसे छोटे देवर बसंत सोरेन चंपाई मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री बना दिए गए।
कैश फॉर वोट के आरोप
उनपर अपने पिता बोदु नारायण मांझी के ज़रिये साल 2012 के राज्यसभा चुनाव में एक निर्दलीय प्रत्याशी से रिश्वत लेने के आरोप लगे थे। वे इससे संबंधित एक मुकदमे की नामज़द अभियुक्त रही हैं। इस मामले में उनके रांची स्थित सरकारी आवास की कुर्की ज़ब्ती की गई थी। इसके बाद उन्हें और उनके पिता को जेल में भी रहना पड़ा।
इस मामले की जांच सीबीआई को दी गई थी। तब सीता सोरेन ने कुछ दिन फरार रहने के बाद कोर्ट में सरेंडर किया और उनके पिता को लंबी फरारी के बाद साल 2015 में भुवनेश्वर से गिरफ़्तार किया गया था। सीता सोरेन अपने ख़िलाफ़ आपराधिक मामला चलाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई थीं।
सालों से लंबित इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने पिछले 4 मार्च को साल 1988 के अपने फैसले को पलट दिया।
इस खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि सांसदों और विधायकों को रिश्वत के मामले में विशेषाधिकार नहीं दिया जा सकता। उनके ख़िलाफ़ भी आपराधिक मामले चलाए जा सकते हैं। नतीजतन, अब वे फिर से जांच के दायरे में आ गई हैं।
उन्होंने अपने वयोवृद्ध ससुर शिबू सोरेन को भी मुश्किल में डाल दिया है क्योंकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव की सरकार को रिश्वत लेकर बचाने के आरोप वाला मामला शिबू सोरेन के खिलाफ अब दोबारा चलाया जा सकता है।
सीबीआई का खौफ और बीजेपी का दामन थामना
उनके ख़िलाफ़ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने करने के एक मामले में भी लोकपाल ने सीबीआई को रिपोर्ट दर्ज कर जांच करने की इजाज़त दे दी है। इस मामले में शिबू सोरेन, हेमंत सोरेन और बसंत सोरेन भी आरोपी हैं।
बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे ने लोकपाल से यह शिकायत की थी। तब उन्होंने दावा किया था कि वे सोरेन परिवार के किसी सदस्य (दुर्गा सोरेन की बेटियों को छोड़कर) को चुनाव लड़ने के योग्य नहीं रहने देंगे।
इसके बाद सीता सोरेन ने बीते 19 मार्च को झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की प्राथमिक सदस्यता और विधायक पद से इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने शिबू सोरेन को पत्र लिखकर अपने इस्तीफ़े की सूचना दी और आरोप लगाया कि उन्हें परिवार और पार्टी में पिछले 15 साल से उपेक्षा झेलनी पड़ी है। अब वे इस परिवार से अलग हो रही हैं।
इस पत्र के सार्वजनिक होने के कुछ ही घंटे बाद वे दिल्ली में बीजेपी में शामिल हो गईं। तब बीजेपी कार्यालय में एक प्रेस कांफ्रेंस भी हुई, जिसमें भी उन्होंने जेएमएम और सोरेन परिवार को लेकर कईं बातें कहीं। उनके बीजेपी में शामिल होने से पहले ही पार्टी ने दुमका से अपने वर्तमान सांसद सुनील सोरेन को लोकसभा चुनाव का टिकट देने की घोषणा कर रखी थी। तब मीडिया में चर्चा चली कि बीजेपी उन्हें या उनकी बेटी को संताल परगना की किसी सीट (दुमका नहीं) से चुनाव लड़ा सकती है।
इसके छह दिन बाद 24 मार्च को बीजेपी ने दुमका सीट से अपना उम्मीदवार बदल कर सीता सोरेन को वहां से प्रत्याशी घोषित कर दिया। यह शिबू सोरेन की पारंपरिक सीट रही है। वे यहां से कई बार सांसद रहे हैं।
हालांकि बीजेपी के सुनील सोरेन ने उन्हें साल 2019 के लोकसभा चुनाव में शिकस्त दे दी थी। इसके बाद शिबू सोरेन जेएमएम प्रत्याशी के रूप में राज्यसभा के लिए चुन लिए गए। इन दिनों वे राज्यसभा सांसद हैं।
यह भी इत्तिफ़ाक़ है कि साल 2004 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सुनील सोरेन ने सीता सोरेन के पति दुर्गा सोरेन को चुनावी शिकस्त दी थी। अब सीता सोरेन ने दुमका लोकसभा सीट पर उनके हाथ से बीजेपी का मिला टिकट छीन लिया है।
कितनी मुश्किल है दुमका की लड़ाई
दुमका में दशकों पत्रकारिता कर चुके वरिष्ठ पत्रकार आरके नीरद का मानना है कि सीता सोरेन के लिए दुमका की लड़ाई काफ़ी मुश्किल है।
आरके नीरद ने बीबीसी से कहा, “सीता सोरेन का राजनीतिक वजूद शिबू सोरेन की बहू होने की वजह से है। इसके बावजूद जामा सीट से पिछला विधानसभा चुनाव उन्होंने मामूली अंतर से जीता था। दुमका के लोग शिबू सोरेन के वोटर हैं, न कि सीता सोरेन के। उनके लिए जेएमएम से भी बड़ा नाम शिबू सोरेन का है। लिहाज़ा, सीता सोरेन को कोई चमत्कार ही यहां से जीत दिला पाएगा। वे लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाएंगी।”
“जेएमएम के वोटर उनके ख़िलाफ़ वोट करेंगे। बीजेपी के वोटरों का एक वर्ग सुनील सोरेन का टिकट कटने से नाराज़ है और वो बीजेपी के खिलाफ वोट करेगा। बीजेपी को बस इतने भर से संतोष करना पड़ेगा कि उसने शिबू सोरेन के परिवार में फूट डाली है। यह सीट निकाल पाना पार्टी के लिए मुश्किल होगा।”
सीता सोरेन के मुकाबले कौन
स्थानीय मीडिया में चर्चा है कि शिबू सोरेन अपनी बढ़ती उम्र और बीमारियों की वजह से इसबार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ना चाहते। ऐसे में इस सीट से उनके परिवार का कोई दूसरा सदस्य जेएमएम का उम्मीदवार हो सकता है।
चर्चा है कि पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दुमका सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि जेएमएम ने आधिकारिक तौर पर अभी तक कोई घोषणा नहीं की है। समझा जाता है कि पार्टी अगले 1-2 दिन में अपने प्रत्याशियों की घोषणा करेगी।
अगर हेमंत सोरेन यहां से जेएमएम प्रत्याशी बनते हैं, तो यह पहला मौका होगा जब शिबू सोरेन परिवार के दो सदस्य किसी चुनाव में आमने-सामने हों। वैसी स्थिति में दुमका की लड़ाई दिलचस्प बन जाएगी और सीता सोरेन की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी।
हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उनके पक्ष में बड़ी सहानुभूति देखने को मिल रही है। उनका अपना जनाधार है और जेएमएम कार्यकर्ता उन्हें शिबू सोरेन का उत्तराधिकारी मानते हैं। वे अभी जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं।
हालांकि, हेमंत सोरेन की छवि परिवार को साथ लेकर चलने वाले व्यक्ति की रही है। उन्होंने या उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने सीता सोरेन या उनकी बेटियों के खिलाफ कभी कोई टिप्पणी नहीं की है। पारिवारिक समारोहों में वे साथ देखे जाते रहे हैं।
सीता सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद जब कल्पना सोरेन ने सोशल मीडिया पर दुर्गा सोरेन को लेकर पारिवारिक बातें लिखकर उन्हें अपने पति का अभिभावक और पिता तुल्य बताया, तो सीता सोरेन और उनकी एक पुत्री ने अपने एक्स पोस्ट में उनके ख़िलाफ़ कड़ी टिप्पणी की। इसके बावजूद कल्पना सोरेन या परिवार के किसी सदस्य ने उसका प्रतिवाद नहीं किया।
ऐसे में बहुत संभव है कि हेमंत सोरेन उनके मुक़ाबले चुनावी मैदान में नहीं उतरें। शिबू सोरेन चुनाव लड़ेंगे, इसकी संभावना भी नहीं है। वैसी स्थिति में यहां से जेएमएम किसी दूसरे नेता को अपना प्रत्याशी बना देगा।
सीता सोरेन का मायका
सीता सोरेन ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के भगाबंदी गांव की रहने वाली हैं। उनके पिता बोदु नारायण मांझी इंडियन ऑयल में पदाधिकारी रहे हैं। उनकी मां मालती मुर्मू गृहिणी थीं।
सीता सोरेन ने बारहवीं तक की पढ़ाई की है। उनकी और दुर्गा सोरेन की 3 बेटियां हैं। उनलोगों ने हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री रहते हुए एक गैर राजनीतिक संगठन दुर्गा सोरेन सेना का गठन किया था।