सांवली महिलाओं के लिए गोरी हीरोइन क्यों?

शुक्रवार, 30 मार्च 2018 (14:07 IST)
दिव्या आर्य
जब मैं कोयंबटूर की सड़कों पर घूमी तो दो बातें समझ में आईं। सांवले रंग की औरतें सड़कों पर थीं और गोरे रंग के चेहरे बड़े-बड़े  होर्डिंग से मुझे घूर रहे थे। एक राज्य जिसकी एक पहचान उसका सांवला रंग हो, वहां देश के दूसरे हिस्सों की तरह विज्ञापनों के होर्डिंग  लगे हुए हैं।
 
मैं अकेली नहीं थी जिसका मन इन सवालों से बेचैन हुआ। #BBCShe प्रोजेक्ट के लिए जब हमलोग अविनाशी लिंगम यूनिवर्सिटी पहुंचे,  तो वहां की लड़कियों ने भी कुछ यही सवाल उठाए। "विज्ञापनों में हम जिन महिलाओं को देखते हैं, मुझे नहीं लगता कि महिलाएं वैसी  होती हैं। हमलोग ऐसे समाज की उम्मीद नहीं कर सकते हैं जहां हर महिला गोरी हो, लंबी हो और उसके बाल लंबे हों।"
 
यह बात सुनते ही वहां मौजूद 70 लड़कियों ने एकसाथ तालियां बजाईं। उनमें से ज़्यादातर लड़कियों का रंग सांवला था। दुनियाभर में  जहां की आबादी का बड़ा हिस्सा एक ख़ास रंग का है, उनमें इस बात को लेकर गुस्सा है कि विज्ञापन में दूसरे रंग के मॉडल क्यों होते  हैं?
 
गोरे रंग की मॉडल सिर्फ़ होर्डिंग और टेलीविज़न के विज्ञापनों में नहीं दिखती हैं, बल्कि सोने के आभूषणों के विज्ञापन भी ऐसे मॉडल  करते हैं। कई बड़े ब्रांड के ज्वैलरी कंपनियों के विज्ञापनों पर शायद आपकी भी नज़र गई होगी। कॉलेज की एक छात्रा ने कहा कि सिर्फ़  विज्ञापनों में ही नहीं, तमिलनाडु फिल्म इंडस्ट्री कॉलीवुड में भी गोरे रंग की हीरोइनों की पूछ है। गूगल पर जब मैंने तमिल एक्ट्रेस  लिखकर सर्च किया तो ये परिमाण मिले।
 
यह दिलचस्प है कि काजल अग्रवाल और सिमरन पंजाबी हैं, तमन्ना और हंसिका मोटवानी महाराष्ट्र से हैं, अनुष्का शेट्टी कर्नाटक से,  स्नेहा की मातृभाषा तेलुगू है और आसीन केरल से हैं। दस में से सिर्फ तीन, तृषा कृष्णा, सामंथा अक्कीनेनी और श्रुति हासन तमिलनाडु  से हैं। तीनों में समान बात यह है कि तीनों गोरे रंग की हैं।
 
वहीं, सांवले रंग के हीरो धनुष, विशाल, विजय सेतुपति, विजयकांत और सुपरस्टार रजनीकांत इन गोरी हीरोइनों के साथ फिल्में कर रहे  हैं और तमिल के दर्शक उन्हें पसंद कर रहे हैं। कई फिल्मों में गोरे रंग की हीरोइन सांवले रंग के हीरो की चाहत रखती देखी जा सकती  हैं।
 
कई लोग इन बातों को यह कह कर ख़ारिज कर सकते हैं कि विज्ञापन और फिल्मों में काल्पनिक दुनिया दिखाई जाती है और लोग उसे  उसी तरह देखते हैं। कॉलेज की ये लड़कियां इसके प्रभावों के बारे में कहती हैं कि यह देखकर उनके अंदर भी गोरे होने की चाहत जागती  है।
 
स्कूल, कॉलेज, शिक्षक और यहां तक की घर में आत्मविश्वास की कमी से लेकर भेदभाव की बातें सांवले रंग के कारण सुनने को  मिलती हैं। बुरा तब ज्यादा लगता है, जब शाहरुख़ ख़ान जैसे सुपरस्टार विज्ञापनों में यह कहते हुए पाए जाते हैं कि "फेयर इज लवली"  यानी गोरापन ही प्यारा है।
 
साल 2013 में आए इस विज्ञापन में शाहरुख़ ख़ान खुद की तरह स्टार बनने की सलाह देते हुए एक लड़के को गोरा बनाने की क्रीम देते  हैं। पिछले कुछ सालों में बॉलीवुड में इसके ख़िलाफ़ आवाज़ भी उठी है। नंदिता दास "डार्क इज ब्यूटीफुल" अभियान की ब्रांड अंबेसडर रही  हैं। मिसेज इंडिया अर्थ 2017 की रनरअप रहीं गायत्री नटराजन ने भी कहा था कि रंग के आधार पर उन्हें भेदभाव का सामना करना  पड़ा है।
 
विज्ञापनों में गोरेपन को सफलता की चाबी के तौर पर पेश किया जाता है। चेहरे को सुंदर बनाए रखने वाले सामानों के बाजार में गोरेपन  की क्रीम का हिस्सा 50 फीसदी से ज़्यादा है। पर क्या विज्ञापनों और फिल्मों का बाज़ार कॉलेज की इन लड़कियों की बात सुनेगा? न  सिर्फ़ यह समझने के लिए कि लड़कियां क्या चाहती हैं बल्कि इसलिए भी कि उनका बेचने का तरीका स्टीरियोटाइप है।
 

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