पेट संबंधी बीमारियों में कटिस्नान का प्रयोग किया गया है। हमारे शरीर के अधिकांश रोग पेट से ही पनपते हैं।
साधरणतया हम हर रोज स्नान करते हैं परंतु यदि हम स्नान करते समय कुछ चीजों का ध्यान रखे तो वह स्नान हमें ताजगी के साथ बेहतर स्वास्थ्य भी दे सकता है।
कटिस्नान की प्रक्रिया :
कटिस्नान हेतू एक बड़े टब में पानी भरें। पानी उतना होना चाहिए, जिसमें नितंब डूब जाएँ और नाभि से ऊपर पेट तक पानी रह सके। टब ऐसा हो, जिसमें आराम से बैठा जा सकें। टब का पानी मौसम के अनुसार ताजा या हल्का गुनगुना रखें।
शुरू-शुरू में इसमें 5-10 मिनट तक बैठें। धीरे-धीरे इसे आधे घंटे तक बढ़ा सकते हैं। खूरदरे तौलिए को गोल लपेटकर नाभि के नीचे दाएँ से बाएँ रगड़ें फिर बाएँ से दाएँ ताकि पेट में जो खाना जमा पड़ा है वह धीरे-धीरे ढीला होकर बाकी खाने के साथ मिलकर मल के साथ बाहर निकल जाए तथा पेट स्वस्थ एवं निर्मल हो जाए।
ध्यान रखें बस शरीर के वही भाग भीगें जो टब के अन्दर हों, बाकी शरीर गीला न हो, नहीं तो कटिस्नान का महत्व खत्म हो जायेगा।
स्वस्थ व्यक्ति को स्नान के बाद कुछ व्यायाम या तेजी से टहलना चाहिए ताकि शरीर में गर्माहट आ जाए।
कटिस्नान में मोटापा कम होता है, कब्ज दूर होती है, पेट के कई विकार नष्ट होते हैं। अजीर्ण रोग दूर होता है। इससे पाचन संस्थान की कार्यक्षमता बढ़ती है और आँतों की गंदगी साफ होती है।