भरोसा उतना नहीं, न इधर न उधर

अनिल जैन

रविवार, 18 अक्टूबर 2015 (07:44 IST)
पटना। बिहार में दूसरे चरण का मतदान शुक्रवार को ख़त्म हो गया। इसके साथ ही बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से एक तिहाई के नतीजे वोटिंग मशीनों में बंद हो गए। अब बाकी 162 सीटों पर मतदान तीन चरणों में दुर्गा पूजा और मोहर्रम के बाद होगा। दूसरे चरण के बाद भी स्पष्ट रुख नहीं दिखाई दे रहा है। हालांकि जो प्रमुख बातें दूसरे चरण के लिए 32 सीटों पर हुए मतदान के दौरान दिखाई दी, उनसे मतदान की दिशा का थोड़ा-बहुत अनुमान लगाया जा सकता है।
पहला यह कि पहले चरण की तरह इस चरण में भी महिलाएं बड़ी संख्या में वोट डालने के लिए निकलीं। दूसरा, मुस्लिम मतदाताओं में किसी तरह की कोई भ्रम की स्थिति नहीं थी। वे भाजपा और उसके सहयोगी दलों को हराने के लिए एकतरफा मतदान करते दिखे। तीसरा, जहां पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के उम्मीदवार थे, वहां महादलित उनके साथ थे। बाकी जगह महादलित महागठबंधन के समर्थन में भी नज़र आए।
 
चौथा, अति पिछड़े भी ठीक-ठाक संख्या में मतदान करते दिखाई दिए। पांचवां, दोपहर बाद मतदान काफ़ी धीमा हो गया जबकि सुबह रफ्तार बहुत तेज़ थी। जनता दल (यू) के लोगों का मानना है कि महिलाओं का बड़ी संख्या में मतदान के लिए निकलना महागठबंधन के पक्ष में है, लेकिन भाजपा के लोग इस पर सवाल खड़ा करते हैं। उनका कहना है कि महिलाएं धर्म व परंपरा में ज्यादा विश्वास करती हैं।
 
हालांकि महादलितों के वोट में जीतनराम मांझी का दबदबा है, लेकिन जहां मांझी की पार्टी चुनाव नहीं लड़ रही, वहां महादलित वोट सिर्फ एनडीए को मिलेगा, यह नहीं कहा जा सकता। अति पिछड़ों को लेकर दोनों गठबंधनों का दावा है और इन चुनावों की असली चाबी इन्हीं के वोटों में छिपी है। दोपहर बाद मतदान धीमा रहने के अर्थ भी अलग-अलग लगाए जा रहे हैं। एक मत यह है कि शाम के धीमे मतदान का मतलब भाजपा और उसके सहयोगी दलों को नुक़सान है और एक मत यह है कि इस बार लोग अपने मत को लेकर बहुत स्पष्ट थे और उन्होंने पहले पहर में ही मतदान कर दिया।
 
इसीलिए दोपहर से पहले मतदान तेज़ रहा। मुस्लिम वोट एकतरफा पड़े हैं और इनमें तीसरा मोर्चा या वाम मोर्चा कोई खास सेंध नहीं लगा सका। हर जिले में कुल मिलाकर लड़ाई बहुत कांटे की नज़र आई। मतदान के पहले तक एनडीए और भाजपा के नेता इस चरण को पूरी तरह अपने समर्थन में जाता हुआ देख रहे थे। 
 
महागठबंधन के लोगों को लग रहा था कि यहां एनडीए को वे बड़ा झटका देंगे। निजी बातचीत मे एनडीए नेता 32 में से कम से कम 25 सीटें जीतने का दावा कर रहे थे तो महागठबंधन के नेता बराबरी के। दावे अब भी वहीं पर है, लेकिन भरोसा उतना नहीं दिखाई दे रहा, न इधर न उधर।

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