बिहार, देश को किस दिशा में ले जाने वाला है? एग्जिट पोल के अनुमानों ने परेशानी को और बढ़ा दिया है। ज्यादातर एग्जिट पोल अनुमान नीतीश-लालू के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं जबकि कुछ प्रमुख एग्जिट पोल बिहार में बीजेपी की सरकार बनवा रहे हैं। पटना में सरकार किसी की भी कायम हो, एक बात जो पूरी तरह से साफ़ है वह यह है कि बिहार के नाम पर समूचा देश इस विधानसभा चुनाव में भाग ले रहा था।
पूरे देश की नजरें इसलिए अब परिणामों पर टिकी हुई है कि बिहार के जरिए भारतीय जनता पार्टी को भी बदलने का मौका मिलने वाला है और विपक्ष को भी। नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार दोनों में किसी की भी चुनावी हार या जीत हो, अपने-अपने तरीकों से दोनों के ही खातों में केवल जीत दर्ज होने वाली है जो कि देश में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूती प्रदान करेगी। नीतीश कुमार की जीत केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा सरकार को विचार करने का अवसर प्रदान करेगी कि दिल्ली चुनावों के दस महीने बाद ही बिहार चुनावों में पराजय के क्या कारण हो सकते हैं?
भाजपा ने मोदी के नेतृत्व में बिहार में अपनी संपूर्ण ताकत और प्रतिष्ठा को झोंक दिया था। चर्चा करना जरूरी हो जाएगा कि क्या धार्मिक असहिष्णुता या सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के विपक्ष के आरोपों ने बिहार के मतदाताओं को भाजपा के खिलाफ खड़ा कर दिया और कि अगले चुनावों, खासकर उत्तर प्रदेश में इस पर विशेष ध्यान देना होगा? बिहार में पराजय प्रधानमंत्री, भाजपा और संघ सभी को अपनी नीतियों और अपने सार्वजनिक प्रस्तुतिकरण में परिवर्तन लाने की गुंजाइश पैदा कर सकती है।
ऐसा अगर होता है तो वह एक बड़े राष्ट्रीय दल के रूप में भाजपा और प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी दोनों की ही अखिल भारतीय स्वीकार्यता को और व्यापक और मजबूत बना सकती है। भाजपा में अंदरुनी तौर पर भी असहमति और आंतरिक प्रजातंत्र वर्तमान के मुकाबले ज्यादा स्पेस प्राप्त होने लगेगी। मोदी एक नई ताकत के साथ अपने विकास के एजेंडे को आगे ले जा सकेंगे।
बिहार में नीतीश कुमार की पराजय भी इसलिए महत्वपूर्ण हो जाएगी कि वे अब राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता के सूत्रधार बनकर उभरेंगे। लोकसभा चुनावों के बाद से ही देश का विपक्ष जिस तरह से अस्त-व्यस्त हो गया था, बिहार के प्रयोग ने उसमें एक नई जान फूंक दी है। बिहार में प्रकट हुआ यही संगठित विपक्ष अब उत्तर प्रदेश में भी भाजपा को एक नई चुनौती देने में सक्षम नजर आने लगेगा। एक मजबूत विपक्ष केंद्र में सत्तारुढ़ सरकार को ज्यादा विनम्र बनाएगा और अपने फैसलों में उसकी सलाह को भी शामिल करना चाहेगा।
बिहार में पराजय की स्थिति में भी नीतीश और लालू इसलिए महत्वपूर्ण बने रहेंगे कि (एग्जिट पोल के अनुमानों के मुताबिक) जीत और हार के बीच फर्क वैसा नहीं होगा जैसी कि हालत इस समय लोकसभा में विपक्ष की संख्या को लेकर है। बिहार में भाजपा की जीत से यह जरूर स्थापित होगा कि मोदी ने विकास के जिस एजेंडे पर काम करना प्रारम्भ किया है उसे वे अब और ज्यादा ताकत से आगे बढ़ा सकते हैं। पार्टी, संघ और सहयोगी दलों के बीच भी प्रधानमंत्री की अनिवार्यता और ज्यादा मुखर हो जाएगी।
बिहार के परिणामों पर अगर उन राज्यों की नजरें भी टिकी हुई हों, जहां कि आने वाले महीनों में चुनाव होने हैं तो कोई बड़ा आश्चर्य नहीं। अगले वर्ष पश्चिम बंगाल और केरल में चुनाव होंगे। इन दोनों ही राज्यों में भाजपा अपनी उपस्थिति को केवल बढ़ा सकती है।
बिहार के बाद सबसे बड़ा मुकाबला वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश में होने वाला है और इसमें दो मत नहीं कि देश के प्रधानमंत्री के पद का फैसला भी यही दो राज्य करते आए हैं। अतः उत्तर प्रदेश की बड़ी फिल्म देखने से पहले देश की जनता के लिए बिहार का ट्रेलर देखना बहुत जरूरी हो गया है।