नवादा। लगभग एक दशक पहले तक नवादा और शेखपुरा को अपराधों का गढ़ माना जाता था। पूर्वी बिहार के इस इलाके में बीती सदी के अंत तक हर तरह के अपराधों की फसल लहलहाती थी, लेकिन आज हालात बिलकुल बदले हुए हैं। अब एक तरह से यह पूरा इलाका शांति का टापू माना जाता है।
आखिर यह कैसे हुआ? हर कोई इस सवाल का सवाल का खुलकर जवाब देने से कतराता है। कोई एकदम चुप्पी साध लेता है तो कोई सवाल को अनसुना कर आगे बढ़ जाता है। जो अपराधी जेल में हैं या मर चुके हैं, उनके नाम तो गिनाए जाते हैं, लेकिन जो अपराधी जीवित हैं और जेल से बाहर हैं, उनका नाम लेने से लोग बचते हैं। लोगों का यह रवैया हैरान करता है।
दरअसल, नवादा और शेखपुरा में एक समय था जब दो बड़े आपराधिक गिरोह सक्रिय हुआ करते थे। दोनों के बीच आपसी प्रतिद्वंद्विता के चलते कई बार खूनी संघर्ष हुआ जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। यह सब जातीय वर्चस्व के लिए होता था।
लेकिन कोई डेढ़ दशक पूर्व इन आपराधिक गिरोहों के सरगना और उनसे जुड़े अन्य प्रमुख लोगों ने राजनीति की ओर रुख किया। राजनीति में आने के बाद वे अपनी-अपनी जातियों के हीरो हो गए।
शेखपुरा के पुराने कम्युनिस्ट कार्यकर्ता जितेंद्र नाथ बताते हैं कि नवादा और शेखपुरा में पहले खदान, बालू और शराब के ठेकों के लिए खून-खराबा होता था, मगर जब से ऐसे लोग राजनीति में आए तो हालात बदल गए।
चार दशक तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े रहे जितेंद्र नाथ खुद भी शेखपुरा से बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। उनका मुकाबला जनता दल (यू) और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा से है। यहां 12 अक्टूबर को वोट डाले जाने हैं।
इलाके की विभिन्न सीटों पर चुनाव लड़ने वालों में ज्यादातर उम्मीदवार राजनीतिक परिवारों से हैं या उनकी दूसरी छवि है। ऐसे लोगों की भीड़ में जितेंद्रनाथ अपवाद हैं।
जितेंद्र नाथ कहते हैं कि आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहे लोगों को राजनीति ने एक प्रतिष्ठित मंच मुहैया करा दिया। आर्थिक कारोबार में उनकी हिस्सेदारी तय हो गई। बालू, खदान और शराब के ठेकों के लिए सिंडिकेट बन गए। जो लोग पहले एक-दूसरे की जान के प्यासे होते थे, वे ही अब इन सिंडिकेटों में साझेदार हो गए। जो जितना पैसा लगाता है, उसकी उतनी हिस्सेदारी। जिस पुलिस के साथ पहले उनकी लुका-छिपी चलती थी, वही पुलिस अब उन्हें सलाम बजाने लगी। सामाजिक प्रतिष्ठा मिलने लगी। उन लोगों को यह समझ में आ गया कि जब राजनीति ही उन्हें सब कुछ दे रही तो खून-खराबा करने का क्या फायदा!'
नवादा जिले की 5 सीटों में किसी एक पर भी बेदाग चेहरे की तलाश मुश्किल है। प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों में किसी का अतीत दागी है तो किसी का वर्तमान। पर उनकी यही पृष्ठभूमि उनके लिए पूंजी साबित हो रही है। कानून की पढ़ाई कर रहे राघवेंद्र कुमार कहते हैं कि जब से ये लोग राजनीति में आए हैं तब से इलाके में शांति है और अपराध बहुत कम हो गए हैं।
राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ बोलने वाली पार्टियां ही ऐसे लोगों को राजनीति में ला रही हैं। वे व्यंग्यात्मक लहेजे में कहते हैं कि मगर ऐसा करके राजनीतिक दलों ने एक तरह से आम लोगों पर उपकार ही किया है।