बिहार की राजनीति में छोटे सरकार के नाम से पहचाने जाने वाले बाहुबली अनंत सिंह एक बार विधायक बनने की तैयारी में है। अनंत सिंह माकोमा सीट से जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे है। मकोमा विधानसभा राजधानी पटना की 14 विधानसभाओं में से एक है। साल 2020 के विधानसभा चुनाव में भी अनंत सिंह को आरजेडी के टिकट पर मकोमा से जीत हासिल हुई थी लेकिन AK-47 से जुड़े एक मामले में सजा होने के चलते उनकी विधायकी खत्म हो गई थी और बाद में 2022 में हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी नीलम देवी मोकमा सीट से आरजेडी के टिकट विधायक चुनी गई। वहीं 2024 में विधानसभा में नीतीश सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आय़ा तो नीलम सिंह पाला बदलकर जेडीयू के पाले में आ गई और अब अनंत सिंह खुलकर नीतीश के साथ है।
मकोमा में सरकार ही छोटे सरकार-मकोमा विधानसभा सीट किसी पार्टी नहीं बल्कि अनंत सिंह का गढ़ है और 1990 से उनके परिवार का इस सीट पर कब्जा है। साल 1990 और 1995 में उनके बड़े भाई दिलीप सिंह इस सीट से विधायक रहे हैं। मकोमा को अनंत सिंह का गढ़ इसलिए भी कहा जाता है कि वह किसी भी दल के मोहताज नहीं है। 2005 से 2020 तक अनंत सिंह अलग-अगल पार्टियों और निर्दलीय लगातार मकोमा सीट से जीत हासिल की है। उनके परिवार का दबदबा इस इलाक़े में दशकों से चला आ रहा है।
2005 के विधानसभा चुनाव में जब लालू यादव बिहार की सत्ता से बाहर हुए और नीतीश कुमार सूबे के मुख्यमंत्री बने तो मकोमा से अनंत सिंह जेडीयू के टिकट पर पहली बार विधायक चुने गए। बिहार की राजनीति के जानकार कहते है कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने में अनंत सिंह की अहम भूमिका थी, यहीं कारण रहा कि उनको छोटे सरकार के नाम से पहचाना जाने लगा। इसके बाद साल 2010 के विधानसभा चुनाव में भी अनंत सिंह, नीतीश कुमार की पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे थे।
वहीं 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने जब भाजपा का साथ छोड़कर लालू प्रसाद का हाथ थामा तब अनंत सिंह मोकामा विधानसभा से निर्दलीय चुनाव जीते। वहीं 2020 के विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह ने आरजेडी का दामन थाम लिया और एक बार फिर मकोमा से जीत हासिल की। जेल से बाहर बाहुबली अनंत सिंह अब वह एक बार मकोमा से चुनाव लड़ने की तैयारी में है।
राजनीति के साथ अपराध का भी बढ़ा ग्राफ-बिहार की राजनीति में छोटे सरकार के नाम से पहचाने जाने वाले बाहुबली अनंत सिंह लगातार छठीं बार विधायक बनने के लिए एक बार फिर चुनावी मैदान में आ डटे है। अनंत सिंह पर एक समय 38 से ज्यादा केस दर्ज है। अनंत सिंह जैसे-जैसे राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते हुए वैसे-वैसे उनके अपराध का ग्राफ भी बढ़ता गया। अनंत सिंह जब पहली बार 2005 में विधायक बने थे तब उन्होंने अपने चुनावी हलफनामे में मात्र एक केस का जिक्र किया था जो 2020 के विधानसभा चुनाव तक 38 तक पहुंच गया था। हत्या,अपहरण,रेप और रंगदारी जैसे 38 मामले बिहार के विभिन्न थानों में अनंत सिंह के खिलाफ पुलिस की फाइलों में दर्ज है। अनंत सिंह ने साल 2020 के विधानसभा चुनाव में जो चुनावी हलफनामा दिया है उसके मुताबिक उन पर हत्या की कोशिश के 11 और जान से मारने की धमकी के ही 9 केस दर्ज थे।
महज 9 साल की उम्र में पहली बार जेल जाने वाले अनंत सिंह का सियासी सफर जैसे जैसे आगे बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे उनकी अपराध की अनंत कथा में नए-नए अध्याय भी जुड़ते जा रहे है लेकिन अनंत सिंह की अनंत अपराध कथा पर मौन रहे उनके सरपस्त नेता।
संन्यासी से बाहुबली डॉन बनने का सफर- अपराध की दुनिया में अनंत सितारे की तरह चमकने वाले अनंत सिंह के डॉन बनने की कहानी पूरी फिल्मी है। अनंत सिंह के संन्यासी से माफिया डॉन बनने की कहानी शुरु होती है 90 के दशक के बिहार की खूनी राजनीति से। यह वह दौर था जब बिहार राज्य जातीय संघर्ष की आग में झुलसने के साथ- साथ बुलेट बनाम बैलेट के जंग के आगाज का गवाह बन रहा था।
बाहुबली अनंत सिंह की माफिया डॉन बनने की कहानी जनाने के लिए थोड़ा फ्लैशबैक में चलना होगा। 1990 में जब लालू पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे तब अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह चुनाव जीतकर लालू की सरकार में मंत्री बने थे। 90 के दशक में अनंत सिंह का परिवार भले ही बिहार में अपराध की दुनिया के साथ चुनावी राजनीति में तेजी से आगे बढ़ रहा हो लेकिन चार भाईयों में सबसे छोटे अनंत सिंह इन सबसे दूर वैराग्य लेकर पटना से कोसों दूर हरिद्धार में साधु बन ईश्वर की आरधना में लीन हो गए थे।
कहते है न कि होइहि सोइ जो राम रचि राखा..अनंत सिंह के जीवन पर उक्त लाइन एकदम सटीक बैठती है। सियासी अदावत में अनंत सिंह के बड़े भाई बिरंची सिंह की दिनदहाड़े हत्या कर दी जाती है। भाई की हत्या की खबर सुनकर अनंत सिंह का खून खौल उठता है और भाई के हत्यारों को मौत के घाट उतारने के लिए वह वापस बिहार लौटता है और अपने भाई की हत्या का बदला ले लेता है। भाई के हत्यारे को मौत के घाट उतारने के साथ ही अनंत सिंह ने अपराध की दुनिया का बेताज बदशाह बढ़ने की ओर अपने कदम बढ़ा दिए और वह देखते ही देखते बिहार की राजनीति में भूमिहारों का सबसे बड़ा चेहरा बन बैठा।
इसके बाद तो अनंत सिंह के नाम का डंका बजने लगा। अपराध की दुनिया में अनंत सिंह के अपराध की अनंत कथाएं पुलिस की फाइलों में एक के बाद दर्ज होनी शुरु हो गई है। बेहद शातिर,चालक अनंत सिंह देखते ही देखते अपराध की दुनिया का बेताज बदशाह बन गया है। उसको न तो पुलिस का खौफ था औऱ न ही कानून का डर।
अपराध की दुनिया में अनंत सिंह का बढ़ता कद अब बिहार के सबसे बड़े बाहुबली नेता सूरजभान को खटकने लगा था। सूरजभान उस बाहुबली नेता का नाम था जिसने साल 2000 के विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह को मोकामा सीट से मात दी थी। विधायक बनने के बाद 2004 में सूरजभान बलिया सीट से सांसद बन गया।
सूरजभान के सांसद बनने के बाद अब अनंत सिंह पर पुलिसिया प्रेशर बढ़ने लगा। 2004 में बिहार एसटीएफ ने अनंत सिंह के घर को घेर कर उसका एनकाउंटर करने की कोशिश की लेकिन अनंत सिंह बच निकला।
माफिया डॉन से 'माननीय'बनने का सफर-अनंत सिंह अब तक इस बात को अच्छी तरह जान चुका था कि सूरजभान से मुकाबला करने के लिए उसको राजनीति के मैदान में उतरना ही पड़ेगा जिसके बाद वह साल 2005 के चुनाव में पहली बार मोकामा सीट से नीतीश की पार्टी जेडीयू के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरा और अपराधी से माननीय विधायक जी बन गया।
अनंत सिंह का विधायक बनना और फिर नीतीश कुमार का सत्ता में आना, मानो अनंत सिंह के लिए मुंह मांगी मुराद पूरी होने जैसा था। सत्तारूढ़ पार्टी का विधायक बनने के बाद उसके अपराधों की रफ्तार और तेजी से बढ़ती गई। इसके बाद 2010 में फिर अनंत सिंह फिर जेडीयू के टिकट पर मोकामा से चुनाव जीत गया।
पुलिस की फाइलों का दुर्दांत अपराधी अनंत सिंह अब छोटे सरकार के नाम से पहचाने जाना लगा था। मोकामा के लोगों के लिए अनंत सिंह दादा बन कर और गरीबों के मसीहा यानि रॉबिनहुड बन बैठा।
कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता है। साल 2014 में बिहार में सत्ता के समीकरण बदलते है। लालू और नीतीश के एक साथ आते ही अनंत सिंह के दिन बदलने शुरु हो जाते है। बिहार के एक और बाहुबली नेता पप्पू यादव जिसकी अनंत सिंह से अदावत काफी पुरानी थी वह लालू पर दबाव बनाता है और किंगमेकर लालू मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर। सरकार के मुखिया का इशारा मिलते ही सालों से चुप बैठी बिहार पुलिस अनंत सिंह को गिरफ्तार करने पहुंच जाती लेकिन अनंत सिंह के किलेनुमा घर से गोलियों की बौछार होती है। घंटों संग्राम के बाद अनंत सिंह को अखिरकार गिरफ्तार कर लिया जाता है।
2015 में अनंत सिंह जेल से मोकामा से निर्दलीय चुनाव लड़ता है और जीत हासिल करता है। अनंत सिंह भले ही लगातार चौथी बार विधायक चुन लिया गया हो लेकिन अब उस पर किसी पार्टी का हाथ नहीं था इसलिए वह थोड़ा कमजोर हो जाता है। वहीं साल 2020 में अनंत सिंह आरजेडी के टिकट पर चुनाव जीतता है, लेकिन AK-47 के मामले में सजा होने से विधायक छीन जाती है और 2022 के उपचुनाव में पत्नी नीलम देवी चुनाव जीतती है। वहीं साल 2024 में बिहार विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान नीलम देवी खुलकर नीतीश सरकार के साथ आ जाती है। वहीं 2024 में अनंत सिंह AK-47 मामले में हाईकोर्ट से बरी हो जाते है।
जेल से बाहर आते ही अनंत सिंह फिर सक्रिय होते है लेकिन इस साल जनवरी में मकोमा में सोनू-मोनू गैंग के साथ शूटआउट में फिर अनंत सिंह का नाम सामने आता है और वह सरेंडर कर देते है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अगस्त में पटना हाईकोर्ट से अनंत सिंह को जमानत मिलती है और वह सात महीने बाद पटना की बेऊर जेल से बाहर आते ही जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ने का एलान कर कहते है कि नीतीश कुमार 25 साल और बिहार का नेतृत्व करेंगे अब 2025 के विधानसभा चुनाव में एक बार अनंत सिंह मकोमा से चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी में है।