मन्ना डे पहलवान बनना चाहते थे

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ए भाई जरा देख के चलो, कसमे वादे प्यार वफा, ए मेरी जोहरा जबी, जिंदगी कैसी है पहेली हाय.. जैसे गीतों को सुरीली आवाज देने वाले मन्ना डे बचपन में पहलवान और मुक्केबाज बनना चाहते थे, लेकिन उनके चाचा केसी डे ने उनकी खूबियों को पहचानते हुए उन्हें संगीत के गुर सिखाए।

कोलकाता में स्कूल के दिनों में मन्ना डे को पहलवानी और मुक्केबाजी का शौक था और वह इसमें जुटे रहते थे, लेकिन सहपाठियों की फरमाइश पर वह गीत भी सुनाया करते थे। मन्ना डे की इन खूबियों को उनके चाचा केसी डे ने पहचाना और उन्हें ठुमरी, कव्वाली आदि की बारीकियां सिखाई। इसके बाद 1940 में मन्ना डे कोलकाता से मुम्बई आ गए और संगीतकार एचपी दास के सहायक बन गए। इसी दौर में उन्हें फिल्म ‘मशाल’ में गाने का मौका मिला और उनके लिए रास्ते खुल गए।

कई लोग ऐसे होते हैं जिनकी प्रतिभा को उतना महत्व नहीं मिलता जितने के वह हकदार होते हैं। मन्ना डे ऐसी ही शख्सियत हैं। उस जमाने में देव आनंद, दिलीप कुमार और राजकपूर की तिकड़ी में केवल राजकपूर ने अपने लिए उनकी आवाज का इस्तेमाल किया.. तब शंकर जयकिशन ने मन्ना डे की आवाज में राजकपूर के लिए गीत रिकार्ड किया था।

फिल्म चोरी चोरी के गीत ‘यह रात भीगी भीगी’, श्री 420 का गीत प्यार हुआ इकरार हुआ, मेरा नाम जोकर का ‘ए भाई जरा देख के चलो, उपकार का गीत ‘कसमे वादे प्यार वफा’ दिल ही तो है का गीत ‘लागा चुनरी में दाग’, वक्त का गीत ‘ऐ मेरी जोहरा जबी, मेरी सूरत तेरी आंख का गीत ‘पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई’ के बोल और माहौल अलग अलग हैं लेकिन इसमें एक बात समान है कि इसे भारतीय फिल्म संगीत के सुरीले गायक मन्ना डे ने आवाज दी है। पूरण चंद्र और महामाया डे के पुत्र प्रबोध चंद्र डे का जन्म एक मई 1919 को हुआ जिसे हम मन्ना डे के नाम से जानते हैं।

मन्ना डे की आवाज का जहां भी इस्तेमाल हुआ..कामयाबी की दिशा में वह मील का पत्थर साबित हुई । मन्ना डे ने बलराज साहनी, प्राण, महमूद के लिए भी गाने गाए और राजेंद्र कुमार के लिए फिल्म ‘तलाश’ और राजेश खन्ना के लिए फिल्म ‘आनंद’ में गीत गाए।

मुम्बई में पांच दशक से अधिक समय गुजारने के बाद मन्ना डे बेंगलूर में अपने परिवार के लोगों के साथ रहने चले गए थे।(भाषा)

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