जितनी रचनात्मकता इन दिनों विज्ञापन कंपनी के कॉपी राइटर दिखा रहे हैं, उतनी तो हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य लेखकों के पास भी नहीं हैं। कई बार ऐसा होता है कि टीवी पर चल रहे विज्ञापन फिल्म से ज्यादा दिलचस्प होते हैं। दस-पाँच सेकंड में पूरी एक बात दिमाग में बैठाई जाती है। साथ ही एक वस्तु का प्रचार भी किया जाता है, मगर कुछ विज्ञापन गड़बड़ भी हो जाते हैं।
हाल ही में एक मोबाइल सेवा कंपनी का विज्ञापन जारी हुआ है। विज्ञापन कहता है कि विवाहित लोग टीवी देखते हैं, लाइट चली जाती है या टीवी से बोर हो जाते हैं, तो रोमांस करने लगते हैं, जिसके नतीजे में देश की आबादी बढ़ रही है। निदान यह है कि थ्रीजी तकनीक का ऐसा मोबाइल खरीदो, जिस पर इंटरनेट चलता हो, टीवी चलती हो और फिर उसमें रमे रहो। रोमांस वगैरह को एकदम भूल जाओ।
इसी विज्ञापन में एक पत्नी पहले थ्रीजी में उलझे पति का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करती है। जब नाकाम रहती है तो कहती है- "त्याग दिया है अपना विवाहित जीवन मैंने अपने देश के लिए।" इसे कहते हैं रपट पड़े तो हर गंगे...।
विज्ञापन दिलचस्प है, मगर साथ ही वयस्कों वाली सामग्री भी इसमें काफी है। फिल्मों को तो खैर यू, यूए या ए प्रमाण-पत्र मिलता है, मगर विज्ञापनों के साथ ये मसला नहीं है। एक खामी विज्ञापन में और है। क्या थ्रीजी तकनीक केवल विवाहितों के लिए ही इतनी उपयोगी है? फिर कुँवारे लोग क्यों इस तकनीक का इस्तेमाल करें?
एक और खामी यह है कि ये विज्ञापन रोमांस को बोरियत का तोड़ दिखाता है। पिछले दिनों एक मंत्री ने कहा था कि देश की आबादी को टीवी से कंट्रोल किया जा सकता है। लोगों को टीवी दे दिया जाए तो वे रात में बजाय रोमांस करने के टीवी देखेंगे। जाहिर है इस विज्ञापन की मूल प्रेरणा मंत्री का वही बयान है।
सबसे बड़ा एतराज यह है कि इस तरह देश की सबसे बड़ी समस्या को हास्यास्पद साबित कर दिया गया है। विज्ञापन में नसबंदी केंद्र पर खड़े होकर दो लोग हँसते हैं और कहते हैं कि अब इसकी क्या जरूरत है? जितना अवैज्ञानिक उस मंत्री का बयान था, उतना ही अवैज्ञानिक यह विज्ञापन है। ह
मारे देश में जागरूकता की कमी है, वरना सवाल किया जाता कि आप टीवी अथवा थ्रीजी मोबाइल को नसबंदी के समकक्ष कैसे रख सकते हैं? किसी दिन थ्रीजी मोबाइल खराब हो गया तो? नेटवर्क नहीं आ रहा हो तो? चार्जिंग नहीं की गई हो तो? समस्याओं का ऐसा हास्यास्पदीकरण नहीं होना चाहिए।
वैसे इस विज्ञापन श्रृंखला का यही एक विज्ञापन है जो कई तरह से गड़बड़ है, वरना अन्य विज्ञापनों में कोई खामी नहीं दिखती। इस बार भी ऐसा इसलिए हुआ कि कॉपी राइटर ने एक सियासतदान के बयान से प्रेरणा ले ली। असल बात यही है कि चाहे टीवी देखो, चाहे मत देखो, चाहे थ्रीजी तकनीक इस्तेमाल करो या न करो, पर नसबंदी और रोकथाम के उपायों का कोई तोड़ नहीं है।