"रजनीकांत साहब के पास ऐसा एक जादू है जिसके जरिये वे एक आम से डायलॉग या लाइन को एक्ट्राऑर्डिनरी लाइन बना देते हैं। ये एक हुनर है उनके पास जिसके इस्तेमाल से एक आसान-सा डायलॉग भी स्टाइलिश हो जाता है। एक स्वैग आ जाता है उनकी संवाद आदाएगी में। मैं उनकी कई फिल्में देख चुका हूं, लेकिन जब मिला तो मालूम पड़ा कि उन्हें मराठी आती है, तो हम ऐसे ही कई बार मराठी में बातें कर लिया करते थे।" 2.0 में खलनायक की भूमिका निभाने वाले अक्षय कुमार के लिए दक्षिण भारतीय सुपरस्टार रजनीकांत से मिलना एक सुखद अनुभव रहा। जानिए क्या कहा उन्होंने वेबदुनिया संवाददाता से।
थर्ड डिग्री मेकअप
मेरे मेकअप में साढ़े तीन घंटे लगते थे। तीन लोग लगातार मेरा मेकअप करते थे। इस तरह के मेकअप को थर्ड डिग्री मेकअप कहा जाता है। ये सबसे कठिन तरह का मेकअप होता है जो किसी भी शख्स पर किया जा सकता हो। मेरी कॉस्ट्यूम करीब तीन किलो की होती थी। पहले मुझे बड़ी मोटी रबर की कॉस्ट्यूम पहनाई जाती थी, फिर उस पर पंख चिपकाए जाते थे। रबर की कॉस्ट्यूम के कारण मुझे पसीना बहुत आता था। जब शूट हो जाने के बाद मैं कॉस्ट्यूम उतारता था तो सिर्फ पसीने की महक आती थी।
पिंजरे में बंद पंछी
मेरे लिए सेट के पास एक छोटा सा रूम बना दिया गया था। शॉट खत्म होते ही मुझे घसीटते हुए उसमें जाना होता था। मुझे महसूस होता था कि मैं कोई बड़ा-सा पंछी हूं और मुझे पिंजरे में रहना होगा। मेरी आंखों में भी लैंस लगाए गए थे। आमतौर पर जो लैंस हम इस्तेमाल करते हैं वो हमारी आईबॉल के आकार के होते हैं, लेकिन ये बहुत बड़े बनाए गए थे, जिससे मेरी आंखों में बहुत जलन और चुभन हो जाती थी। एक बार तो मुझे कंजंक्टिवाइटिस भी हो गया था। सेट पर मेरे लिए आंखों के डॉक्टर हमेशा मौजूद रहते थे। मैंने कुल 38 दिनों की शूटिंग की, लेकिन मुझे हर तीन दिन के शूट के बाद एक दिन छुट्टी मिलती थी क्योंकि इससे ज़्यादा शरीर काम नहीं कर पाता।
दर्शक समझदार हैं
मैं किरदार के पहले एक एक्टर हूं। मुझे हर तरह के रोल करते आना चाहिए। ये तो हम भारत में तय कर लेते हैं कि हीरो, हीरो की तरह काम करेगा वरना हॉलीवुड में एक्टर हर तरह के काम करता है। वैसे भी दर्शक बहुत समझदार हैं। मुझे नहीं लगता मुझे किसी तरह की नापसंदगी को देखना पड़ेगा। मुझे फिल्म की स्क्रिप्ट पसंद आई, रोल पसंद आया तो मैंने कर लिया।
कोई फर्क नहीं पड़ता
मुझे तो इस बात की तसल्ली है कि मुझे पसंद तो किया गया। क्या फर्क पड़ता है कि पहली पसंद था या नहीं। मैं तो इस फिल्म को लिए चौथी पसंद भी होता तो कोई परेशानी वाली बात नहीं होती। अरे, मैं पसंद तो था। मैं उस समय को देख चुका हूं जब लोगों के पास काम नहीं होता था ऐसे में इतने बड़े प्रोडक्शन और इतनी बड़ी फिल्म का हिस्सा बनना अच्छा ही है। पसंद होना ना होना कोई मायने नहीं रखता मैंने फिल्म तो कर ली।