कुली: द पावर हाउस रिव्यू– रजनीकांत का जलवा बरकरार, लेकिन कहानी में लगा ब्रेक

समय ताम्रकर

गुरुवार, 14 अगस्त 2025 (23:09 IST)
फिल्मों में अभिनय करते-करते रजनीकांत को 50 साल हो गए हैं और इस खास मौके पर सुपरस्टार रजनी की फिल्म ‘कुली द पावर हाउस’ रिलीज हुई है। रजनी 74 वर्ष के हो गए हैं, लेकिन अभी भी न केवल लीड रोल में नजर आ रहे हैं बल्कि फाइट और डांस भी कर रहे हैं वो भी अपने चिर-परिचित स्वैग के साथ। दर्शकों की पीढ़ियां बदल गईं, लेकिन रजनी की अदाएं अभी भी बासी नहीं हुई है। 
 
कुली में भी रजनी बीच-बीच में अपना स्वैग और स्टाइल को दोहरा ही देते हैं तो फैंस के बीच खुशी की लहर दौड़ जाती है। रजनी आम आदमी के हीरो हैं, इसलिए इन दिनों फिल्मों में वे एकदम खासिल आम आदमी का ही रोल करते हैं, जो चप्पल या सैंडिल पहनता है, सड़क किनारे गुमटी में चाय पीता है और मौका पड़े तो बीड़ी का सुट्टा मार लेता है। इससे सिनेमाघर में बैठा आम दर्शक तुरंत रजनी के किरदार से कनेक्ट हो जाता है। 
 
फिल्म में रजनीकांत ने एक कुली का किरदार निभाया है, हालांकि उन्हें सामान उठाते हुए नहीं दिखाया गया। बस इतना बताया गया है कि कभी वे इस काम में थे और उसी दौरान उन्होंने एक बड़े आदमी की हत्या कर दी थी। लेकिन इस घटना पर पुलिस केस क्यों नहीं हुआ या जांच क्यों नहीं चली—यह फिल्म साफ नहीं करती, जो कहानी का एक कमजोर पहलू है।


 
बहरहाल, रजनी के एक जिगरी दोस्त की मौत हो जाती है और रजनी को शक है कि यह स्वाभाविक मौत न होकर हत्या है। रजनी कातिल को ढूंढने के मिशन पर निकलते हैं, जिसमें उनका साथ देती है श्रुति हासन, जो मृतक की बेटी है। कातिल की तलाश में दयाल (सोबिन शाहिर), साइमन (नागार्जुन), दाहा (आमिर खान), कलीशा (उपेंद्र) जैसे किरदार कहानी के अलग-अलग मोड़ पर आते हैं और जॉइनिंग द डॉट्स के खेल की तरह रजनी मिशन में आगे बढ़ते जाते हैं। 
 
कहानी जितनी पेपर पर अच्छी लगती है, उतना फिल्म में असर इसलिए नहीं छोड़ती क्योंकि इसे जरूरत से ज्यादा फैला दिया गया है। लगभग तीन घंटे तक बांधे रखे जाने का मसाला कुली के टीम के पास नहीं था, इसलिए कहानी कई बार आउटर में खड़ी रेल की तरह ठहर हुई लगती है तो कभी लगता है ‍कि गोल-गोल घूम रही है। 
 
यहां पर ‍निर्देशक की भी मजबूरी है। रजनी की फिल्म तो तीन घंटे की होनी ही चाहिए क्योंकि दर्शक उन्हें पेट भर कर देखना चाहते हैं और छोटी फिल्म बना दी जाए तो उन्हें लगता है कि उन्हें ठग लिया गया है, लिहाजा बात को लंबा खींचा जाता है, वरना कुली को आसानी से आधा घंटा छोटा ‍किया जा सकता था जिससे फिल्म में चुस्ती बढ़ जाती। 
 
कमियों के बावजूद फिल्म ज्यादातर समय दर्शकों को बांध कर रखती है। इसकी दो-तीन वजह हैं, जैसे बड़े स्टार्स द्वारा निभाए गए कैमियो हैं जो समय-समय पर आकर फिल्म के स्तर को उठाते हैं। स्क्रीनप्ले में समय-समय पर दर्शकों को चौंकाने वाले ट्विस्ट हैं, जो गिरती हुई फिल्म को थाम लेते हैं। कुछ मनोरंजक दृश्य हैं। पहले हाफ में इन तत्वों की संख्या अधिक है, लिहाजा पहला हाफ बेहतर है। दूसरे हाफ में फिल्म लड़खड़ाती ज्यादा है। कुछ बातें ऐसी हैं कि राइटर्स ने दर्शकों को कुछ ज्यादा ही हल्के में ले लिया है। कुछ बातें स्पष्ट ही नहीं हो पाती। 
 
निर्देशक लोकेश कनगराज ने कैथी, मास्टर जैसी उम्दा फिल्में बनाई हैं, लेकिन कुली में वे अपने उस स्तर तक नहीं पहुंच पाए। शायद रजनी के स्टारडम के चलते उन्हें कुछ समझौते करने पड़े हो क्योंकि रजनी को लेकर जब आप फिल्म बनाते हैं तो उनके चाहने वालों की पसंद का ध्यान रखना पड़ता है। टेक्नीकली लोकेश का काम बढ़िया है, लेकिन बतौर स्टोरी टेलर मामला उतना जम नहीं पाया। 


 
रजनीकांत ने पूरी फिल्म का भार बखूबी उठाया। उन्होंने अपने किरदार को थोड़ा फनी तरीके से अदा किया और बेवजह तने हुए नजर नहीं आए। एक्शन सीन बहुत स्टाइलिश नहीं है, लेकिन ऐसे डिजाइन किए गए हैं जो रजनीकांत को सूट करते हैं। 
 
श्रुति हासन का रोल लंबा जरूर है, लेकिन करने को उन्हें ज्यादा कुछ नहीं था। रजनी के बाद फिल्म में सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं सौबिन शाहिर। दयाल के रूप में वे खौफ पैदा करते हैं, हंसाते हैं और गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं। नागार्जुन विलेन के रूप में औसत रहे। उपेंद्र कम समय के ‍लिए दिखे हैं, लेकिन फिल्म को एनर्जी देते हैं। आमिर खान का कैमियो जबरदस्त है और ‍फिल्म के स्टारडम को बढ़ाता है। पूजा हेगड़े भी एक डांस में दिखाई देती हैं। तकनीकी पक्ष मजबूत है, बैकग्राउंड म्यूजिक धाकड़ है, सिनेमाटोग्राफी ऊंचे स्तर की है, और हिंदी डबिंग भी उम्दा है।

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‘कुली: द पावर हाउस’ रजनीकांत के फैंस के लिए एक विजुअल ट्रीट है—उनका स्वैग, अंदाज और करिश्मा अब भी बरकरार है। लेकिन कहानी में कसावट और एडिटिंग में चुस्ती की कमी फिल्म को क्लासिक बनने से रोक देती है। उम्मीद जितनी थी, उतनी पूरी नहीं होती, फिर भी यह ऐसी फिल्म है जिसे आप रजनी के लिए एक बार ज़रूर देख सकते हैं।

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