सुपर 30 के रियल हीरो आनंद कुमार का Exclusive Interview

"जब रितिक रोशन से मिलवाया गया तो हमें लगा कि कैसे ये हमारा रोल निभाएँगे? ये तो बहुत ही अच्छे दिखने वाले शख्स हैं। एकदम ब्रिटिश टाइप के दिखते हैं और हम तो बिल्कुल देहाती। हमें तो यक़ीन नहीं हो रहा था। तब रितिक ने हमसे कहा कि उन्हें यह रोल निभाने की तैयारी में करीब एक साल लगेगा। वे अपनी मसल को कम कर लेंगे। बहुत दुबले लगेंगे। वह बात करने का तरीका भी बदल लेंगे। उनकी रोल को निभाने को लेकर जो प्यास और तड़प थी, हमें बहुत अच्छी लगी। अब वह दिखते कैसे भी हों, लेकिन एक कलाकार की यही तो ख़ूबी होती है कि वह हर रोल में अपने आप को ढाल ले। हमें यकीन हो गया कि वह इस रोल को निभा लेंगे।" यह कहना है आनंद कुमार का, जिन पर रितिक रोशन अभिनीत फिल्म 'सुपर 30' आधारित है। 
 
वेबदुनिया से बात करते हुए आनंद बताते हैं "करीब साढ़े आठ साल पहले मुझे एक फोन आया संजीव दत्ता का, जिन्होंने मुझे कहा कि हम आप पर कहानी लिखना चाहते हैं। तब पहली बार लगा कि चलो कोई मुझ पर फिल्म बनाना चाहते हैं। हालांकि मैंने इस बात को संजीदगी से नहीं लिया। फिर मेरे भाई को फोन आया संजीव का कि वह एजुकेशन पर बात करने के लिए पटना आना चाहते हैं तो भाई ने उन्हें आने के लिए कहा। उस समय वह अनुराग बसु के साथ आए। हम तो उन्हें नहीं जानते थे। गूगल किया तब मालूम पड़ा कि वह तो जाने-माने फिल्म निर्देशक हैं। बात तब बन नहीं पाई। अनुराग बासु दूसरी फ़िल्मों में व्यस्त हो गए। हालाँकि संजीव दत्ता हमारे संपर्क में रहे।"


 
फिर फिल्म इस मुक़ाम पर कैसे पहुंची? 
करीब ढाई साल पहले हमें संजीव जी को फोन आया और उन्होंने हम दोनों भाइयों को मिलने बुलाया। बातचीत हुई। तब मेरा कहना था कि  हम सभी मिल जुल कर फैसला करें कि एक्टर और निर्देशक कौन हो? जब विकास बहल का नाम सामने आया तो मुझे उनकी फिल्म 'क्वीन' की याद आई जो कि मुझे बहुत पसंद आई थी। 

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निर्देशक विकास बहल पर यौन शोषण जैसे आरोप लगे थे। आपको तब लगा हो कि फिल्म शायद ना भी बने? 
नहीं। मुझे पूरा यकीन था कि कुछ भी हो जाए फिल्म ज़रूर बनेगी। रितिक और विकास दोनों ने बहुत मेहनत की है। जब विकास को क्लीन चिट मिली तो मैं बहुत खुश हुआ। मेरे पिताजी कहते थे कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।  
 
आपकी फ़िल्म में एजुकेशन माफ़िया की भी बात हुई है?
हाँ। हमारा 'सुपर 30' जब अच्छा कर रहा था तो कुछ लोगों से सहन नहीं हो रहा था। वे सभी हमारे साथ-साथ हमारे भाई पर भी हमले करने लगे। बुरा लगता है कि कैसे हमारी वजह से हमारे भाई को परेशानी उठानी पड़ी। जब ये फिल्म बन कर तैयार हो गई है तो हमारे आसपास के एजुकेशन माफ़िया को ये बात भी बुरी लगी और उन लोगों ने हमारे भाई पर जान लेना हमला करवाया। अभी भी उसके पांव में गहरी चोट है। इन माफ़ियाओं को हमारी मशहूरी बुरी लग रही थी। कैसे एक गरीब का बेटा इतनी इज़्ज़त पा रहा है। 

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