Exclusive Interview: साड़ी पहनने वाली महिलाएं ही देश को मंगल तक लेकर गईं- विद्या बालन

रूना आशीष

बुधवार, 14 अगस्त 2019 (15:56 IST)
"ये अक्षय (कुमार) का ऐसा ही है। कुछ ना कुछ तो करते ही रहते हैं। कभी पीठ थपथपा कर छुप जाते हैं। कभी मज़ाक बनाने लगते हैं तो कभी टाँग खींचना शुरू कर देते हैं। एक बार तो सेट पर मेरे साथ हद कर दी। मेरे पल्लू में कुछ बाँध दिया। मैं बैठी हुई थी और जैसे ही उठने को हुई तो लगा पल्लू में कुछ बँधा हुआ है। छूकर देखा तो चम्मच निकला। अब पल्लू में कोई चम्मच बाँधता है क्या? लेकिन इस बार तो मैंने भी जवाब दिया। खूब ज़ोर से चिल्ला कर उनका मज़ाक बनाया और टाँग खींची।" 
 
ज़िंदादिल विद्या बालन से मिलना लगभग डेढ़ साल बाद हुआ। 'तुम्हारी सुलु' के बाद वह 'मिशन मंगल' फिल्म के सिलसिले में पत्रकारों से मिल रही थीं। 'मिशन मंगल' के बारे में बात करते हुए विद्या बोलीं, "मेरे लिए यह शानदार बात थी कि हम पाँच हीरोइनें एक साथ काम कर रही थीं। कितना अच्छा था ये। एक ज़माना था जब हमारी इंडस्ट्री की नीतू सिंह, परवीन बाबी और शबाना आज़मी ने एक साथ एक ही फिल्म में काम किया था। आजकल कहां ऐसा मिलता है?'' 


 
फिल्म की सभी महिला कलाकारों का कहना है कि आप उनके लिए प्रेरणा हैं क्योंकि सोलो हीरोइन की फ़िल्में हिट होना आपके साथ ही शुरू हुआ? 
सच में! चलो, सबको आज मेरी तरफ से पार्टी दूंगी रात में (मस्ती भरे अंदाज़ में)। शायद मैं, सही समय पर सही जगह पर पहुंच गई। बस और कुछ नहीं। एक दौर था जब फ़िल्में और उनकी कहानियां नया रूप लेने को तैयार थीं। मैं मौजूद थी तो मेरे साथ फ़िल्मों ने नया रूप ले लिया। मेरी साथी कलाकार भी इसी तरह के बदलाव का हिस्सा हो रही हैं। सोचिए 'बदला' जैसी फ़िल्म में बच्चन साहब के होने के बावजूद भी तापसी पन्नू की मौजूदगी कितनी अहम है। वैसे भी मैं शायद बहुत खुशकिस्मत रही कि किसी मिलन लूथरिया सा एकता या कहानी के ज़रिए सुजॉय घोष ने मुझे चुन लिया। 
 
असल ज़िंदगी में कितनी पूरियाँ तलती हैं? 'मिशन मंगल' के ट्रेलर में देखा आपको पूरियाँ तलते हुए। 
(ठहाका लगाते हुए विद्या बोली) बहुत तली हैं। 'तुम्हारी सुलु' में तली थी। निर्देशक चाहते थे कि जब शॉट के लिए मैं पूरियाँ तलूं तो वो फूलनी चाहिए। थोड़े रीटेक हुए, लेकिन मैंने पूरियाँ तलना सीखा और वो भी फूलने वाली पूरियाँ। इस फिल्म तक आते-आते मुझे प्रैक्टिस हो गई थी तो परेशानी कम हुई। 
 
आमतौर पर साड़ी पहनने वाली महिला को लेकर धारणा बनती है कि वह घरेलू है, लेकिन इस फिल्म में साड़ी वाली महिलाएं वैज्ञानिक बन गईं। 
ये बहुत साधारण सी बात है कि जो हम लोगों को देख कर जज कर लेते हैं कि वो ऐसा होगा या होगी। हमें समय देना चाहिए लोगों के छुपे पहलु को देखने और परखने का। हम लुक के आधार पर धारणा बना लेते हैं। जैसे कि सशक्त महिला के बाल छोटे होते हैं और वो शर्ट ट्राउज़र्स पहनती हैं। इस फिल्म में जितनी भी महिलाएं हैं, साड़ी में हैं और सशक्त तो इतनी हैं कि देश को मंगल तक ले गईं। 

आपके पहनावे और कद काठी पर भी बहुत कमेंट हुए। 
हां, हुए। जब नई-नई आई और देखा कि सब दुबली हैं तो मैंने भी वज़न घटा लिया। फिर फिल्म के सिलसिले में लोगों से मिलती तो वह कहते कि पहले जैसा चार्म नहीं रहा आपके चेहरे पर। एक निर्माता, नाम नहीं लूंगी, बोले जाओ वज़न बढ़ा कर आओ पहले जैसा। हम चाहते हैं कि तुम सुंदर दिखो। उस दिन लगा कि कोई आपके दिखने से खुश नहीं हो सकता है। बेहतर है कि आप अपने आप से खुश रहो।  


 
आप महिलाओं के मन का बात कर रही हैं, तो सवाल पूछती हूँ, कभी आपके सामने मिड लाइफ क्रायसिस जैसी बात आई? 
मेरे हिसाब से तो मर्दों में होता है मिड लाइफ क्रायसिस। महिला तो हर महीने क्रायसिस से गुज़रती हैं। आपकी बात मैं समझ रही हूं। इस मनोभाव के बारे में बात कम होती हैं। हम कामों में मसरूफ रहती हैं और अपने बारे में कहना-बोलना भूल जाती हैं। हम महिलाएं सोचती हैं कि ये कोई अहम बात तो है नहीं। इस बारे में क्या बोलना? हमारी पीढ़ी फिर भी इस बारे में बोलना शुरू कर चुकी है। हमसे दो पीढ़ी पहले की महिलाएं तो सोचती भी नहीं थीं कि हम जिस दौर से गुज़र रहे हैं या जिस परेशानी ये जूझ रहे हैं उसके बारे में बात भी की जा सकती है। हमारी पीढ़ी ने इस बारे में बात करना शुरू की, डिस्कस किया। हो सकता है हमारी परेशानी का इन बातों से रास्ता भी निकल कर आए। हम महिलाएं सशक्त होती जा रही हैं। 

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