सोशल मीडिया और इंटरनेट के जमाने में जहां कुछ नहीं छिपा है, वही पर फिल्म वालों को सेंसर बोर्ड के वर्षों पुराने नियमों को झेलना पड़ता है। सेंसर की सख्ती बढ़ती जा रही है। कुछ दिन पहले 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' को सेंसर बोर्ड ने 'असंस्कारी' बताते हुए सर्टिफिकेट नहीं दिया था और अब रवीना टंडन की 'मातृ' भी सेंसर में अटक गई है।
अधिकांश फिल्ममेकर्स का मानना है कि सेंसरशिप के नियमों में अब बदलाव जरूरी है। इसी को लेकर फिल्म अभिनेता और निर्देशक अमोल पालेकर सुप्रीम कोर्ट की शरण में गए हैं। उन्होंने सेंसरशिप पर सवाल उठाते हुए फिल्म की सेंसरशिप के लिए गाइडलाइन्स में बदलाव की बात कही है। अमोल की जनहित याचिका पर इन्फरमेशन एंड ब्राडकास्टिंग मिनिस्ट्री को नोटिस जारी किया है।
पिछले कुछ वर्षों से अमोल सिल्वर स्क्रीन से दूर हैं। सत्तर के दशक में उन्होंने गोलमाल, छोटी सी बात, घरौंदा, चितचोर जैसी फिल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाई थीं। बाद में वे निर्देशन की ओर मुड़े और उन्होंने हिंदी तथा मराठी में कुछ फिल्में निर्देशित की।