एमी अवॉर्ड विजेता प्रोड्यूसर एकता आर कपूर ने हाल ही में सोशल मीडिया पर 'सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव' और 'द बकिंघम मर्डर्स' की बॉक्स ऑफिस असफलता पर निराशा जताई। 30 साल से इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना चुकीं एकता इससे पहले LSD, लिपस्टिक अंडर माई बुर्का और वीरे दी वेडिंग जैसी बोल्ड और क्रिटिकली अक्लेम्ड फिल्में बना चुकी हैं।
हाल ही में एकता कपूर ने सोशल मीडिया पर लिखा, जब सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव और मेरे प्यारे दोस्त हंसल मेहता की द बकिंघम मर्डर्स थिएटर्स में नहीं चलती, तो क्या हम असली गुनहगार यानी ऑडियंस को दोष दे सकते हैं? लेकिन चूंकि सोशल मीडिया पर लोगों को लताड़ना मजेदार नहीं है, चलो मान लेते हैं कि भारत का एक बड़ा हिस्सा कंटेंट के मामले में अभी भी एडोलसेंस (किशोरावस्था) में है!
एकता कपूर के इस बयान ने बहस छेड़ दी है। कुछ लोग मानते हैं कि भारतीय दर्शक अब भी कमर्शियल एंटरटेनर्स को तरजीह देते हैं और अलग तरह के सिनेमा को नजरअंदाज कर देते हैं। वहीं, कुछ का कहना है कि मसला सिर्फ दर्शकों का नहीं, बल्कि फिल्ममेकर्स को भी अपनी मार्केटिंग और थिएट्रिकल स्ट्रैटजी पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
हंसल मेहता के डायरेक्शन में बनी क्राइम थ्रिलर द बकिंघम मर्डर्स, जिसमें करीना कपूर खान लीड रोल में थीं, को क्रिटिक्स ने सराहा, लेकिन फिल्म बॉक्स ऑफिस पर असर छोड़ने में नाकाम रही। वहीं, सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव, जो छोटे शहर के फिल्ममेकर्स और उनके सिनेमा के जुनून की कहानी है, अपनी अनोखी थीम के बावजूद दर्शकों को थिएटर्स तक खींचने में नाकाम रही।