कवि प्रदीप इस गाने को लता मंगेशकर से ही गवाना चाहते थे। किसी बात को लेकर लता मंगेशकर और कवि प्रदीप के बीच मतभेद हो गया था, इसके बाद लता ने इस गाने को गाने से इनकार कर दिया। काफी समय के बाद कवि प्रदीप ने लता दीदी को मनवाया और इस गाने को लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी।
लता जी ने जब इस गाने को नेशनल स्टेडियम में प्रधानमंत्री नेहरू के सामने गाया तो उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। लता जी की आवाज में इस गाने को सुनने के बाद नेहरू जी गायिका से बात करना चाहते थे। इस पर लता मंगेशकर काफी घबरा गई थीं, क्योंकि उन्हें लगा था कि उनसे कोई गलती हो गई है। लेकिन जब वह पंडित जी से मिली तो उनकी आंखों में आंसू थे।