अधिक खर्च की वजह से उस वक्त शापुर जी इसके लिए तैयार नहीं हुए और दोनों के रिश्ते ऐसे हो गए कि बातचीत भी बंद हो गई। तभी ईद का त्योहार आया। शापुर जी एक बड़े थाल में सोने और चांदी के सिक्के लेकर के आसिफ के पास गए। इस पर के आसिफ ने कहा कि असली मोती लाओ, मुझे यह नहीं चाहिए। इसके बाद तराजू के एक पलड़े पर के आसिफ बैठे और दूसरे पलड़े पर असली मोती तौले गए। जब मोती का वजन के आसिफ के वजन से अधिक हो गया तब मुगले आजम की शूटिंग दोबारा शुरू हो पाई।
साहित्यकार डॉ. कुश चतुर्वेदी ने कहा कि इटावा में जन्मे कमरुद्दीन आसिफ का बचपन गरीबी में गुजरा लेकिन वह धुन के पक्के थे। पूरी उम्र बेहद सादगी से रहने वाले आसिफ ने मुगले आजम के रूप में उस वक्त की सबसे महंगी और सफल फिल्म बनाई। आसिफ के नजदीकी परिवार में से एक फजल यूसुफ खान ने दिवंगत निर्देशक के मकान को आसिफ स्मारक बनाने का प्रस्ताव रखा जिस पर वहां मौजूद सभी लोगों ने सहमति जताई।
प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक अजित राय ने कहा कि एक-एक घटना को पर्दे पर ऐसे उतारा कि उसकी तपिश या शीतलता को लोगों ने सिनेमाहॉल में बैठकर महसूस किया। उन्होंने कहा कि अनारकली की कहानी का जिक्र इतिहास में नहीं मिलता लेकिन के आसिफ ने काल्पनिक कहानी और किरदार को ऐसे पेश किया जिसे हर कोई सच मान बैठा। मुगले आजम बनाना हर किसी के बस की बात नहीं है।