फिल्म 'लखनऊ सेंट्रल' एक असली कहानी पर आधारित है। निर्देशक रणजीत तिवारी ने लखनऊ सेंट्रल जेल से प्रेरणा ली जिसमें आदर्श जेल विंग में संगीत का प्रचलन है। विंग में 12 पुरुषों द्वारा बनाया गया हीलिंग हार्ट्स नामक एक बैंड शामिल है जिन्हें उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई है। बैंड शादियों, प्रायवेट और बारातों में गाने गाता है।
रणजीत तिवारी एक लेख के माध्यम से बैंड के सम्पर्क में आए, जिससे उन्हें उन पर मूवी बनाने का ख्याल आया। रणजीत ने बताया कि लगभग तीन साल पहले, मैंने एक सालाना कार्यक्रम और संगीत प्रतियोगिता के बारे में एक लेख पढ़ा, जो कि जेल कैदियों को सुधार के लिए राज्य सरकार द्वारा शुरू किया गया था। इसके बाद मेरे मन में फिल्म को लेकर ख्याल आया और मैंने निर्देशक निखिल आडवाणी के साथ चर्चा की। इसके बाद वे और फरहान अख्तर ने प्रोजेक्ट के लिए साथ आए।
लखनऊ सेंट्रल जेल के अधीक्षक वीके जैन ने एक कदम उठाया और हीलिंग हार्ट्स का गठन 2007 में किया गया ताकि वो उस प्रतियोगिता में बाकी बैंड्स के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके। पंद्रह म्युज़िक इंस्ट्रुमेंट्स खरीदे गए। जेल गार्ड नूर मोहम्मद के नेतृत्व में बैंड ने सीखा और प्रतियोगिता जीती। इसके बाद वीके जैन ने उन्हें निजी पार्टी में प्रदर्शन करने का अवसर दिया। धीरे-धीरे वे प्रसिद्ध हो गए और उन्हें आगे काम मिलने लगा। अब उनकी बुकिंग ली जाती है और वे बाकी बैंड्स से आधी कीमत में काम करते हैं। बैंड ने गणतंत्र दिवस परेड जैसे कार्यक्रमों पर भी प्रदर्शन किया है।
निर्देशक रणजीत तिवारी ने बताया कि मेरी फिल्म की रीसर्च के दौरान जब मैं बैंड से मिलने जेल गया, तब मुझे एहसास हुआ कि सभी अपराधी गलत नहीं है यहां, उनमें से कुछ परिस्थितियों की वजह से कैदी हैं। मैंने देश में बहुत सी जेल देखी हैं जहां कैदियों को सुधारने के लिए कड़ी मेहनत की जाती है। सज़ा के बाद, उन्हें जीवन में दूसरा मौका मिलना चाहिए।
'लखनऊ सेंट्रल' एक साधारण आदमी की कहानी है जिसके जीवन में बहुत कुछ करने के सपने होते हैं लेकिन वो एक ट्रेजेडी में पकड़ा गया जिसके वजह से उसका जीवन हमेशा के लिए बदल जाता है। फिल्म महत्वाकांक्षा, जुनून, दोस्ती और दृढ़ संकल्प पर बनी है। फरहान अख्तर, गिप्पी ग्रेवाल, रोनित रॉय, दीपक डोबरियाल, डायना पेंटी, राजेश शर्मा और इनाम-उल-हक जैसे कलाकार इस फिल्म में हैं।