रॉक ऑन : सिम्पली रॉक्स

IFM
निर्माता : फरहान अख्तर-रितेश सिधवानी
निर्देशक : अभिषेक कपूर
गीतकार : जावेद अख्तर
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय
कलाकार : फरहान अख्तर, प्राची देसाई, अर्जुन रामपाल, पूरब कोहली, ल्यूक केनी, शहाना गोस्वामी, कोयल पुरी
रेटिंग : 3.5/5

हर इंसान किशोर या युवा अवस्था में कुछ बनने के सपने देखता है, लेकिन बाद में संसार की चक्की में वह ऐसा पिस जाता है कि कमाने के चक्कर में उसे अपने सपनों को कुचलना पड़ता है। कुछ ऐसा ही होता है ‘रॉक ऑन’ के चार दोस्तों जो (अर्जुन रामपाल), केडी (पूरब कोहली), आदित्य श्रॉफ (फरहान अख्तर) और रॉब नेंसी (ल्यूक केनी) के साथ।

चारों का सपना था कि वे देश का सबसे बड़ा बैंड बनाएँ। युवा अवस्था के दौरान वे ऐसे सपने देखते हैं। वे एक प्रतियोगिता जीतते हैं और उन्हें एक कंपनी द्वारा अलबम के लिए साइन भी कर लिया जाता है। अलबम की शूटिंग के दौरान आदित्य और जो में विवाद हो जाता है और अलबम अधूरा रह जाता है।

कहानी दस वर्ष आगे आ जाती है। आदित्य और केडी व्यवसाय में लग जाते हैं। रॉब संगीतकारों का सहायक बन जाता है और जो के पास कुछ काम नहीं रहता। चारों के दिल में अपने शौक के लिए आग जलती रहती है।

आदित्य की पत्नी साक्षी (प्राची देसाई) को आदित्य के अतीत के बारे में कुछ भी नहीं पता रहता। एक दिन पुराना सूटकेस खोलने पर उसके सामने आदित्य के बैंड का राज खुलता है। वह एक बार फिर सभी दोस्तों को इकठ्ठा करती हैं और उनका बैंड ‘मैजिक’ पहली बार परफॉर्म करता है।

इस मुख्य कहानी के साथ-साथ कुछ उप-कथाएँ भी चलती हैं। संगीत से दूर रहने की वजह से आदित्य जमाने से नाराज रहता है और इसकी आँच उसकी पत्नी साक्षी पर भी पड़ती है। दोनों के तनावपूर्ण रिश्ते की कहानी भी साथ चलती है।

जो निठल्ला बैठकर पत्नी की कमाई पर जिंदा रहता है। उसे होटल में जाकर गिटार बजाना मंजूर नहीं है। उसकी पत्नी फैशन डिजाइनर बनने के सपने को छोड़ मछलियों का धंधा करती है क्योंकि घर चलाने की मजबूरी है।

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रॉब के अंदर प्रतिभा है, लेकिन संगीतकारों का सहायक बनकर उसे अपनी प्रतिभा को दबाना पड़ता है, जिसका दर्द वह अकेले बर्दाश्त करता है।

फिल्म की मूल थीम ‘जीतने के जज्बे’ को लेकर है, जिसमें दोस्ती, संगीत, ईगो और आपसी रिश्तों को मिलाकर निर्देशक अभिषेक कपूर ने खूबसूरती के साथ परदे पर पेश किया है। उनका कहानी कहने का तरीका शानदार है। फिल्म वर्तमान और अतीत के बीच चलती रहती है और फ्लैश बैक का उपयोग उन्होंने पूरे परफेक्शन के साथ किया है।

अभिषेक द्वारा निर्देशित कुछ दृश्य छाप छोड़ते हैं। वर्षों बाद जब आदित्य से मिलने रॉब और केडी आते हैं तो वे आदित्य से हाथ मिलाते हैं। इसके फौरन बाद आदित्य अपने हाथ धोता है, उसे डर लगता है कि हाथ मिलाने से उसके अंदर मर चुके संगीत के जीवाणु फिर जिंदा न हो जाएँ।

आदित्य के चरित्र में आए बदलाव को निर्देशक ने दो दृश्यों के जरिए खूबसूरती के साथ पेश किया है। आदित्य ऑफिस के गॉर्ड के अभिवादन का कभी जवाब नहीं देता था, लेकिन जब बैंड फिर से शुरू किया जाता है तो वह आगे बढ़कर उनका अभिवादन करता है। निर्देशक ने इन दो दृश्यों के माध्यम से दिखाया है कि संगीत के बिना आदित्य कितना अधूरा था।

चूँकि फिल्म रॉक कलाकारों के बारे में है, इसलिए उन्हें स्टाइलिश तरीके से परदे पर पेश किया गया है। निहारिका खान का कॉस्ट्यूम सिलेक्शन तारीफ के काबिल है। कलाकारों के लुक पर भी विशेष ध्यान दिया गया है।

फिल्म में कुछ ‍कमियाँ भी हैं। निर्देशक यह ठीक से नहीं बता पाए कि आदित्य अपनी पत्नी साक्षी से क्यों नाराज रहता है? रॉब को बीमार नहीं भी दिखाया जाता तो भी कहानी में कुछ खास फर्क नहीं पड़ता। मध्यांतर के बाद फिल्म की गति धीमी पड़ जाती है। कुछ लोगों को ‘रॉक ऑन’ देखकर ‘दिल चाहता है’ और ‘झंकार बीट्स’ की भी याद आ सकती है।

ऐसी फिल्मों में संगीतकारों की भूमिका अहम रहती है। शंकर-अहसान-लॉय का संगीत थोड़ा कमजोर जरूर है, लेकिन फिल्म देखते समय अच्छा लगता है। फिल्म के हिट होने के बाद इसका संगीत भी लोकप्रिय होगा। जेसन वेस्ट के कैमरा वर्क और दीपा भाटिया के संपादन ने फिल्म को स्टाइलिश लुक दिया है।

निर्देशक के रूप में अपनी धाक जमा चुके फरहान अख्तर अच्छे अभिनेता भी हैं। उनका चरित्र कई शेड्स लिए हुए है और उन्होंने हर शेड को बखूबी जिया। अभिनय के साथ-साथ उन्होंने गाने भी गाए हैं। भारी-भरकम संगीत में आवाज का ज्यादा महत्व नहीं रहता है इसलिए उनकी कमजोर आवाज को बर्दाश्त किया जा सकता है।

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अर्जुन रामपाल सही मायनों में रॉक स्टार हैं और उन्होंने अपने चरित्र को बखूबी जिया है। उनकी पत्नी डेबी की भूमिका शहाना गोस्वामी ने बेहतरीन तरीके से निभाई है। प्राची देसाई, पूरब कोहली, कोयल पुरी और ल्यूक केनी भी अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं।

घटिया मसाला फिल्मों के बीच ‘रॉक ऑन’ एक ताजे हवा के झोंके के समान है।