हीरोज़ : नहीं जगाते जोश

IFM
निर्माता : समीर कर्णिक, भरत शाह, विकास कपूर
निर्देशक : समीर कर्णिक
संगीतकार : साजिद-वाजिद, मोंटी शर्मा
कलाकार : सलमान खान, सनी देओल, बॉबी देओल, प्रीति जिंटा, सोहेल खान, वत्सल सेठ, मिथुन चक्रवर्ती, डीनो मोरिया, रिया सेन

वर्तमान दौर के युवा वर्ग को सेना में जाने में कोई रुचि नहीं है। पैसा कम, जान का खतरा, दुर्गम स्थानों पर परिवार से महीनों दूर रहना इसकी वजहें हैं। युवा वर्ग की इस सोच पर निर्देशक समीर कर्णिक ने देश के असली हीरो पर ‘हीरोज़’ नामक फिल्म का निर्माण किया है। साथ ही फिल्म में यह संदेश भी देने की कोशिश की गई है कि सेना में जाए बगैर भी अपने काम के जरिए देशसेवा की जा सकती है।

सैमी (सोहेल खान) और अली (वत्सल सेठ) जिंदगी के प्रति गंभीर नहीं हैं। मौज-मस्ती के अलावा उन्हें कुछ नहीं सूझता। फिल्म स्कूल से उन्हें एक फिल्म बनाने का प्रोजेक्ट मिलता है। वे विषय चुनते हैं- ‘भारतीय सेना में क्यों नहीं जाना चाहिए’। इस काम में मदद के लिए वे एक ‘वार जर्नलिस्ट’ से मिलते हैं, जो उन्हें तीन शहीद हो चुके जवानों के खत उनके घर पहुँचाने को देता है।

पहला खत लेकर वे जाते हैं बलकारसिंह (सलमान खान) के घर। बलकार के घर में उसकी विधवा कुलजीत कौर (प्रीति जिंटा) अपने बेटे और सास-ससुर के साथ रहती हैं। बलकार के न रहने से वो घर का बेटा बनकर खेतों में ट्रैक्टर चलाती है और अपने परिवार को पालती है।

सैमी और अली इस बात को गहराई से महसूस करते हैं कि बलकार के नहीं रहने से उनके परिवार पर कई तरह के संकट आए हुए हैं, इसके बावजूद उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं है। उन्हें बलकारसिंह के शहीद होने पर गर्व है। उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि बलकारसिंह क्यों सेना में शामिल हुआ? वो कोई दूसरा काम भी कर सकता था, जिसमें जान का जोखिम न हो।

अली और सैमी का दूसरा पड़ाव होता है विक्रम शेरगिल (सनी देओल) का घर। वे विक्रम को उसके छोटे भाई धनजंय शेरगिल (बॉबी देओल) का खत देते हैं। विक्रम एयरफोर्स में था और लड़ाई के दौरान उसके पैरों पर ऐसी चोट लगी कि उसके दोनों पैर बेकार हो गए। देशभक्ति का उसमें ऐसा जज्बा है कि वह अभी भी आसमान में उड़ते लड़ाकू विमानों को देख पागलों की तरह चिल्लाने लगता है। उसके परदादा से लेकर भाई तक सभी ने देश पर अपनी जान कुर्बान कर दी।

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विक्रम से मिलने के बाद दोनों दोस्त पहुँचते हैं डॉ. नक्वी (मिथुन चक्रवर्ती) के घर। वे उन्हें उनके बेटे साहिल (डीनो मोरिया) का पत्र देते हैं। डॉ. नक्वी अपने बेटे से बेहद नाराज हैं क्योंकि उसने उनकी इच्छा के विपरीत सेना में प्रवेश किया और अपनी जान गँवाई। सैमी और अली उनकी नाराजगी दूर करते हैं और इन तीनों परिवार से मिलने के बाद उनमें भी देश के लिए कुछ करने का जज्बा जाग उठता है।

फिल्म का विषय अच्छा है और ‘रंग दे बसंती’ से मिलता-जुलता है। उस फिल्म में भी निरुद्देश्य युवक एक फिल्म में काम करते हुए बदल जाते हैं। ‘हीरोज़’ के लेखक समीर कर्णिक और असीम अरोरा इस विषय के साथ न्याय नहीं कर पाए, जबकि इस कहानी पर एक अच्छी फिल्म बनने की भरपूर संभावनाएँ थीं।

फिल्म का सबसे सशक्त पहलू ऐसे घटनाक्रम होने चाहिए थे, जो इन दो नौजवानों की सोच को बदलकर रख दें। उनमें देशभक्ति का जज्बा पैदा कर दें, लेकिन वो प्रभाव लेखकद्वय पैदा नहीं कर पाए।

सलमान और प्रीति जिंटा वाला अध्याय ही ठीक-ठाक बना है, जिसमें परिवार वालों को अपना सहारा छिन जाने के बावजूद उस पर गर्व रहता है। कई दृश्य ऐसे हैं जो प्रभावित करते हैं।

सनी और बॉबी वाला अध्याय कमजोर है। इसमें से कुछ बात नहीं निकल पाती। लेखक सनी की ही-मैन वाली छवि से कुछ ज्यादा ही प्रभावित हो गए। सनी द्वारा गुंडों की पिटाई का दृश्य नि:संदेह अच्छा है, लेकिन कहानी से मेल नहीं खाता।

मिथुन और डीनो वाला अध्याय ठूँसा हुआ और बेमतलब का है। इसे देखना बहुत बोरियत भरा काम है। इसे ठीक से नहीं लिखा गया है।
प्रीति जिंटा ने विधवा का दर्द और शहीद की पत्नी होने के गर्व को परदे पर बेहद उम्दा तरीके से पेश किया है। सलमान खान की छोटी भूमिका को देख उनके प्रशंसक निराश होंगे। सलमान ने जितना भी अभिनय किया, बेमन से किया।

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सनी देओल का अभिनय ठीक कहा जा सकता है, लेकिन वे बेहद ‍थके हुए दिखाई दिए। बॉबी देओल और डीनो मोरिया को बहुत कम फुटेज मिला। मिथुन चक्रवर्ती का खराब चरित्र-चित्रण का उनके अभिनय पर भी असर पड़ा। बेफिक्र और मस्तमौला इंसान के रूप में सोहेल खान हमेशा अच्छे लगते हैं। वत्सल सेठ भी प्रभावित करते हैं। रिया सेन, हृषिता भट्ट और अमृता अरोरा के हिस्से मे चंद दृश्य आए।

फिल्म का संगीत निराशाजनक है। रिया सेन और सनी-बॉबी पर फिल्माए गए गीत फिल्म की गति को प्रभावित करते हैं। फिल्म के संवाद सामान्य हैं।

कुल मिलाकर ‘हीरोज़’ वो प्रभाव नहीं पैदा कर पाती है कि दर्शक में देश के लिए कुछ करने की तमन्ना जाग उठे।

रेटिंग : 2/5
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