अब तक छप्पन 2 : फिल्म समीक्षा

नाली में कचरा जम जाए तो दुर्गंध फैलती है। कचरे को हटाया जाता है। वैसे ही समाज में जमा असामाजिक तत्वों का कचरा हम हटाते हैं। कई फिल्मों में इस तरह के संवाद सुन चुके हैं। सिर्फ संवाद ही नहीं बल्कि 'अब तक का छप्पन 2' फिल्म देखने के बाद लगेगा कि ऐसी सैकड़ों फिल्म देख चुके हैं। फिल्म में नया कुछ नहीं है। केवल 'अब तक छप्पन' की प्रसिद्धी का लाभ उठाने के लिए बनाई गई यह एक रूटीन फिल्म है। 
 
अपनी पत्नी को खोने के बाद साधु आगाशे (नाना पाटेकर) गोआ में जाकर मछली पकड़ कर अपना वक्त बरबाद करने में लगा हुआ है। इधर मुंबई में अंडरवर्ल्ड फिर सिर उठाने लगा है। मुख्यमंत्री और पुलिस अफसरों को साधु की याद आती है। साधु थोड़ा भाव खाता है, लेकिन बेटे के कहने पर मान जाता है। 
'अंडरवर्ल्ड का काम करने का तरीका बदल गया है। अब इस धंधे में पहले जैसी ईमानदारी नहीं है।' आमलेट पकाते हुए साधु अपने बेटे से कहता है। सिनेमाहॉल में गिने-चुने दर्शक सोचते हैं कि कुछ नया देखने को मिलेगा, लेकिन इस डायलॉग के बाद साधु उसी शैली में काम करने लगता है जैसा पुलिस ऑफिसर 'अंडरवर्ल्ड' पर आधारित फिल्मों में करते आए हैं। 
 
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इसके बाद आम दर्शक भी जान जाता है कि आगे क्या होने वाला है। विलेन की असलियत जानने में साधु आगाशे लंबा समय लेता है, लेकिन सभी जान जाते हैं कि विलेन कौन है? साधु पर गोली चलती है और वह गुंडों के पीछे भागता है, लेकिन दर्शक जान जाते हैं कि इधर साधु गुंडों के पीछे है, लेकिन दूसरी ओर उसका बेटा अकेला है। कहने का मतलब ये कि कहानी और स्क्रीनप्ले लिखने में कुछ भी नया ट्विस्ट नहीं जोड़ा गया है, जिससे एक आम फिल्म में भी रोमांच पैदा हो। गुल पनाग वाला ट्रेक तो अत्यंत कमजोर है। वे हर उस जगह पर मौजूद नजर आती हैं जहां कुछ न कुछ घटता है।  
 
निर्देशक एजाज गुलाब ने सपाट स्क्रिप्ट चुनी है। उनके निर्देशन पर रामगोपाल वर्मा की छाप है। शॉट टेकिंग उनका अच्छा है, लेकिन कहानी को उन्होंने बिना किसी उतार-चढ़ाव के पेश किया है। 
 
नाना पाटेकर ने एक आक्रोशित पुलिस ऑफिसर की भूमिका में पूरी गंभीरता के साथ काम किया है, लेकिन एक जैसे रोल में उन्हें कब तक देखते रहेंगे। विक्रम गोखले, आशुतोष राणा, गोविंद नामदेव दमदार कलाकार हैं और इस तरह की भूमिका निभान उनके लिए सरल है। गुल पनाग प्रभाव नहीं छोड़ पाई। 
 
अब तक छप्पन 2 अपने पहले भाग की छवि को धूमिल करती है। 
 
बैनर : एलुम्ब्रा एंटरटेनमेंट प्रोडक्शन, वेव सिनेमाज़ पोंटी चड्ढा प्रजेंट्स
निर्माता : राजू चड्ढा, गोपाल दलवी
निर्देशक : एजाज गुलाब
कलाकार : नाना पाटेकर, गुल पनाग, आशुतोष राणा, विक्रम गोखले, मोहन आगाशे, गोविंद नामदेव, राज जुत्शी
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 1 घंटा 45 मिनट 40 सेकंड 
रेटिंग : 1.5/5

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