दबंग वो फिल्म है जिसने सलमान खान को चोटी का सितारा बना दिया। चुलबुल पांडे के किरदार में उनकी अदाओं को काफी पसंद किया गया। 2010 में दबंग की कामयाबी के बाद 2012 में दबंग 2 बनाई गई जिसको भी सलमान के फैंस ने बॉक्स ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर बनाया।
अब 7 साल बाद इस सीरिज की तीसरी फिल्म आई है। इन सात सालों में फिल्मों और दर्शकों की पसंद में बहुत बदलाव आया है और क्या अब दर्शक दबंग जैसी फिल्म पसंद करेंगे? यह अहम सवाल है।
दबंग 3 की कहानी सलमान खान ने लिखी है। सलमान के पिता सलीम खान एक मशहूर लेखक रहे हैं और इसीलिए सलमान को भी लिखने का शौक चर्राता रहता है।
दबंग सीरिज की फिल्मों में चुलबुल बनाम खलनायक की लड़ाई रहती है। कभी यह छेदी रहता है तो कभी बच्चा सिंह। दबंग 3 में चुलबुल की लड़ाई बाली सिंह से है।
कहानी में ट्विस्ट ये दिया गया है थोड़ी सी कहानी दबंग के पहले की है, यानी चुलबुल इंस्पेक्टर कैसे बना? रज्जो के पहले खुशी नामक लड़की भी उसकी जिंदगी में थी, जिससे उसकी शादी क्यों नहीं हो पाई और थोड़ी कहानी दबंग 2 के बाद की है जिसका लिंक दबंग के पहले वाली कहानी से जोड़ा गया है।
यह आइडिया उम्दा है, लेकिन इस आइडिए पर लिखी कहानी में कोई नई बात नहीं है। चुलबुल बनाम बाली सिंह की लड़ाई में कोई दम नजर नहीं आता। हीरो और विलेन की टक्कर के लिए यहां कारण तो बड़ा है, लेकिन इसे उतने जोरदार तरीके से पेश नहीं किया गया है कि दर्शकों को मजा आ जाए। हां, चुलबुल और खुशी की प्रेम कहानी जरूर अच्छी लगती है और दोनों का जुदा होना दर्शकों को इमोशनल भी करता है।
कहानी में एक अहम बात दिखाई ही नहीं गई कि बाली सिंह को चुलबुल जब मार देता है तो वह कैसे बच जाता है और फिर सामने आ जाता है?
स्क्रीनप्ले लिखने वालों (सलमान खान, प्रभुदेवा, दिलीप शुक्ला, आलोक उपाध्याय) ने रूटीन कहानी को कॉमेडी और एक्शन के सहारे आगे बढ़ाया है ताकि दर्शकों का दिल बहलता रहे।
कॉमेडी सीन ऐसे नहीं हैं जिन पर खूब हंसी आए। ये इस तरह की बड़ी और मसाला फिल्म के स्तर के नहीं हैं। फिल्म में बीच-बीच में खूब एक्शन डाला गया है, लेकिन बिना कोई ठोस वजह के कारण एक्शन सीन जमते नहीं है।
साथ ही ये बहुत लंबे हैं और इनमें कोई खास बात नजर नहीं आती। एक्शन सीन भी इतने बड़े स्तर की फिल्म के हिसाब से बेहद रूटीन है। उनमें सफाई नहीं है।
दबंग 3 टुकड़ों-टुकड़ों में मनोरंजन करती है, लेकिन आउटडेटेट कहानी मनोरंजन में सबसे बड़ी रूकावट है। सलमान खान के स्टारडम के कारण दर्शक फिल्म से जरूर बंधे रहते हैं, लेकिन एक अधूरापन महसूस होता रहता है।
निर्देशक के रूप में प्रभुदेवा कुछ नया नहीं दे पाए। उन्होंने यह फिल्म पूरी तरह से दबंग फैंस के लिए बनाई हैं। चुलबुल-रज्जो का रोमांस, सलमान का शर्ट उतारना, मुन्नी रूठ गई तो 'मुन्ना बदनाम' वाला गाना, सलमान का चश्मे वाला स्टाइल, देसी एक्शन वाली सारी देखी दिखाई चीजों को उन्होंने फिर से दोहरा दिया है। यह सब अब प्रभावित नहीं करता।
प्रभुदेवा ने पूरा फोकस सलमान पर किया है। हर फ्रेम में सलमान का दबदबा नजर आता है। इसका असर यह हुआ कि विलेन का किरदार दब गया जिसका सीधा-सीधा असर फिल्म पर हुआ है।
सलमान के फैंस को खुश करने की कोशिश प्रभुदेवा ने की है और दबंग 3 को उसी शैली में पेश किया गया है जैसी इस सीरिज की फिल्म से दर्शक उम्मीद करते हैं।
प्रभुदेवा का प्रस्तुतिकरण ऐसा नहीं है जिसे देख लगे कि बड़े सितारे की फिल्म देख रहे हैं। फिल्म देखते समय ऐसा लगता है कि यह सलमान की कोई कम बजट की फिल्म है।
फिल्म के गाने दमदार नहीं हैं। उनका पिक्चराइजेशन बहुत ही रूटीन है। फिल्म का एक्शन थका हुआ है और सिनेमाटोग्राफी भी औसत है।
सलमान खान का स्टार पॉवर पूरी फिल्म में छाया हुआ है। उन्होंने अपनी उन अदाओं को दोहराया है जिसे दर्शक पसंद करते हैं। उनकी मासूमियत अच्छी लगती है और वे एकमात्र कारण हैं जिसकी वजह से फिल्म से जुड़ाव रहता है। उनका डांस और एक्शन ठीक-ठाक है और देखते समय महसूस होता है कि पर्याप्त होमवर्क नहीं किया गया है।
रज्जो के रूप में सोनाक्षी अच्छी लगी हैं और उनका अभिनय भी बेहतर है। सई मांजरेकर ने इस फिल्म से अपना डेब्यू किया है। उनका रोल लंबा तो नहीं है, लेकिन वे असर छोड़ती हैं।
कन्नड़ फिल्मों के स्टार किच्चा सुदीप बेहतरीन अभिनेता हैं, लेकिन यहां उनकी प्रतिभा का पूरा उपयोग नहीं किया है। अरबाज खान, डिम्पल कपाड़िया, प्रमोद खन्ना के रोल छोटे हैं और उन्होंने अपना काम ठीक से किया है।
कुल मिलाकर दबंग 3 सलमान और दबंग सीरिज के फैंस के लिए है। यदि आप इस कैटेगरी में हैं तो फिल्म अच्छी लगेगी। दबंग 3 का बॉक्स ऑफिस परफॉर्मेंस दर्शाएगा कि क्या अभी भी दबंग सीरिज को लोग पसंद करते हैं?
बैनर : अरबाज खान प्रोडक्शन्स, सलमान खान फिल्म्स, सैफरॉन ब्रॉडकास्ट