गहराइयां में रिश्तों की पड़ताल की गई है। प्यार, दोस्ती, भाईचारा परिस्थितियों के मोहताज है। बनती-बिगड़ती परिस्थितियों के अनुसार सोच बदलती है जिसका असर रिश्तों पर भी पड़ता है। प्यार में पड़ते समय इंसान आगा-पीछा नहीं देखता है, लेकिन बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो परिस्थिति बदलने के बावजूद भी अपने रिश्ते को प्यार की ऊर्जा से बरकरार रखते हैं।
निर्देशक शकुन बत्रा ने फिल्म के चार प्रमुख पात्रों, आलिशा (दीपिका पादुकोण), टिया (अनन्या पांडे), करण (धैर्य करवा) और ज़ैन (सिद्धांत चतुर्वेदी) के जरिये रिश्तों के बनते-बिगड़ते समीकरणों को दिखाया है। ये चारों 'इंडिया' के युवा हैं जो आधे से ज्यादा समय में अंग्रेजी में बात करते हैं, F**K शब्द इनके हर दूसरे संवाद में होता है, पहनावा और खान-पान विदेशियों सा है और उन्मुक्त जीवन में ये विश्वास करते हैं।
शकुन ने इन चारों किरदारों बोलचाल, परिवेश और व्यवहार से फिल्म को आधुनिकता का छौंक लगाया है ताकि फिल्म की अपील युवाओं में बढ़ जाए। माहौल सेट करने में वे सफल भी रहे हैं, लेकिन लेखन में शकुन और उनकी टीम ज्यादा गहराई में नहीं उतर पाई है।
आलिशा और करण 6 साल से लिव इन में हैं। आर्थिक रूप सें संघर्ष कर रहे हैं। करण नौकरी छोड़ कर बैठा है और किताब लिख रहा है। घर का खर्चा योग इंस्ट्रक्टर आलिशा के बल पर चल रहा है जो खूब मेहनत कर रही है। सपने पूरे नहीं हो पाने के कारण वे चिड़चिड़े हो गए हैं और असर उनके रिश्ते पर नजर आ रहा है।
करण के साथ आलिशा अपने कज़न टिया के कहने पर वीकेंड मनाने के लिए अलीबाग जाती है, जहां पर उनकी मुलाकात टिया के मंगेतर ज़ैन से होती है। आलिशा योगा का एक एप बना रही है जिसके लिए उसे रुपयों की जरूरत है। ज़ैन इस मामले में रूचि लेता है और दोनों नजदीक आ जाते हैं।
करण से आलिशा ब्रेकअप कर लेती है और ज़ैन के साथ छुप-छुप कर मुलाकात करती है। ज़ैन भी टिया के साथ रिश्ता तोड़ना चाहता है, लेकिन उसके लिए उसे 6 महीने का समय चाहिए क्योंकि उसे करोड़ों रुपये टिया का लौटाना पड़ेंगे जो उसने अपने व्यवसाय के लिए ले रखे हैं।
आलिशा की मां ने तब आत्महत्या कर ली थी जब आलिशा 7-8 साल की थी। इसके लिए वह अपने पिता को दोषी मानती है और उनसे बहुत कम बात करती है।
'गहराइयां' में हर शख्स जैसा होता है वैसा दिखता नहीं और जैसा दिखता है वैसा होता नहीं। सबके अपने नजरिये हैं। कौन सही है और कौन गलत ये दर्शकों के नजरिये पर निर्भर करता है।
लेखन की कमियां फिल्म में समय-समय पर उभरती रहती है। आलिश और करण 6 महीने से लिव-इन में है, लेकिन उनका रिश्ता ठीक से प्रस्तुत नहीं हुआ है। उसी तरह से ज़ैन और आलिशा की नजदीकियां दिखाने में बहुत जल्दबाजी की गई है। अचानक ही वे नजदीक आ जाते हैं और सीमाएं तोड़ देते हैं। टिया से ज़ैन क्यों ब्रेकअप लेना चाहता है, यह पक्ष भी अधूरा सा है।
शुरुआत में फिल्म जरूरत से ज्यादा तेज है और बीच में आलिशा के किरदार की तरह अटक जाती है। यह ठहराव इतना ज्यादा है कि आप बोर भी होने लगते हैं। क्लाइमैक्स में स्थिति सुधरती है, लेकिन अंत और बेहतर सोचा जा सकता था। कुछ सवाल बिना उत्तर के ही रह जाते हैं।
निर्देशक के रूप में शकुन ने अपने तकनीशियनों से अच्छा काम लिया है। उनकी शॉट टेकिंग अच्छी है, लेकिन वे भावनाओं को दर्शकों से कनेक्ट नहीं कर पाए जो इस तरह के ड्रामे में जरूरी होता है। फिल्म को उन्होंने जरूरत से ज्यादा लंबा बनाया है, खासतौर पर मध्य में फिल्म की लंबाई को कम किया जा सकता था।
दीपिका पादुकोण की एक्टिंग शानदार रही है। एक ऐसी लड़की जिसका रिश्ते में दम घुट रहा है, जो कुछ कर गुजरने के लिए बैचेन है का किरदार दीपिका ने अच्छे से निभाया है। अपनी एक्टिंग स्क्ल्सि से वे फिल्म को कई बार संभालते नजर आईं।
अनन्या पांडे एक्टिंग के मामले में कच्ची हैं और उन्हें काफी सुधार की जरूरत है। सिद्धांत चतुर्वेदी का चेहरा एक जैसा रहा चाहे इमोशल सीन हो या रोमांटिक। धैर्य करवा की एक्टिंग अच्छी है, हालांकि उनका किरदार ठीक से लिखा नहीं गया है।
कुल मिलाकर गहराइयां, गहराई में नहीं उतरती है, लेकिन दीपिका की एक्टिंग और आम फिल्मों से हट कर कुछ अलग करने की कोशिश के कारण देखी जा सकती है।