'कहानी कमजोर और स्टाइल पर जोर' वाली बात का शिकार बॉलीवुड की कई फिल्में रह चुकी हैं और इस लिस्ट में ताजा नाम 'मलंग' का है। फिल्म की कहानी औसत है। आप जितना यकीन करेंगे उतनी ही अच्छी लगेगी।
फिल्म देखते समय कई सवाल भी उठेंगे, जिनमें से कुछ का जवाब फिल्म के अंत में दिया भी गया है। कुछ जवाब संतुष्ट करेंगे तो कुछ अंसतुष्ट। कुछ के जवाब ही नहीं मिलेंगे, बावजूद इसके ये 'टाइम पास' मूवी है तो इसकी वजह है मोहित सूरी का निर्देशन।
मोहित ने कहानी को अपने अंदाज में कहा है और उनका यह अंदाज दर्शकों को फिल्म से अंत तक जोड़े रखता है और यही फिल्म की कामयाबी है।
आइडिया तो अच्छा है। गोआ, ड्रग्स, लव-स्टोरी, रिवेंज ड्रामा, पुलिस को चैलेंज करने वाला किलर, लेकिन इन बातों को पिरोने वाली कहानी कहीं-कहीं कमजोर पड़ गई है, इस कारण फिल्म में थ्रिलिंग मोमेंट्स के साथ-साथ बोरिंग मोमेंट्स भी झेलने पड़ते हैं।
गोआ में अद्वैत (आदित्य रॉय कपूर) और सारा (दिशा पटानी) की मुलाकात होती है। दोनों 'सुकून' और 'मजे' की तलाश में गोआ आए हैं। अपने परिवार से नाराज हैं। मुलाकात प्यार में बदल जाती है। हालात ऐसे बनते हैं कि अद्वैत एक-एक कर पुलिस वालों की हत्या करना शुरू कर देता है।
वह पुलिस ऑफिसर आगाशे (अनिल कपूर) को चुनौती देकर हत्याएं करता है। माइकल (कुणाल खेमू) और आगाशे उसे किसी भी हालत में पकड़ना चाहते हैं।
इस पकड़ा-धकड़ी में ही दो-तिहाई फिल्म खर्च कर डाली है। बीच-बीच में रोमांस के जरिये कहानी को आगे बढ़ाया गया है। फिल्म आधी होने के बाद थोड़ा बोर करने लगती है क्योंकि अद्वैत क्यों पुलिस वालों को मार रहा है, इस सवाल का जवाब देने में काफी देर लगाई गई है। इसके पहले की दर्शकों की फिल्म में रूचि खत्म हो जाए, कारण को सामने पेश कर दिया गया है।
यह कारण आपको पसंद आ गया तो फिल्म आपको अच्छी लगेगी। नहीं भी आया तो भी फिल्म ठीक-ठाक लगेगी क्योंकि मोहित सूरी का कहानी को स्क्रीन पर पेश करने का तरीका फिल्म से जोड़े रखता है।
मोहित को संगीत का अच्छा साथ मिला है। कहानी में गानों को जोड़ कर उन्होंने फिल्म को अच्छे से आगे बढ़ाया है। अद्वैत और सारा की लव स्टोरी में भी कुछ अच्छे मोमेंट्स हैं।
क्राइम थ्रिलर का माहौल भी अच्छे से बनाया गया है जिसमें सिनेमाटोग्राफी और बैक ग्राउंड म्युजिक अपना अहम रोल निभाते हैं। सिनेमाटोग्राफी में कलर्स का अच्छा उपयोग किया गया है।
बात को स्टाइलिश तरीके से कहने में कहानी कई बार लॉजिक का साथ छोड़ती है। जैसे, अद्वैत जिस आसानी से कुछ ही घंटों में तीन पुलिस वालों का मर्डर करता है वो बात पचाना मुश्किल है। कुछ ऐसी बातें भी और हैं जिनका जिक्र यहां इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे फिल्म देखने का मजा खराब हो सकता है।
कहानी का बार-बार आगे-पीछे होना भी कुछ लोगों को कन्फ्यूज कर सकता है। उन्हें समझने में दिक्कत आ सकती है कि बात वर्तमान की हो रही है या अतीत की।
फिल्म का संपादन अच्छा है। कहानी को तोड़-मोड़ कर पेश किया गया है जो अपील करता है।
आदित्य रॉय कपूर की छवि 'हीरो' वाली नहीं है। लार्जर देन लाइफ किरदार के लिए 'स्टार' का होना जरूरी है और यहां पर फिल्म में कमी लगती है। हालांकि आदित्य का अभिनय अच्छा है। दिशा पाटनी फिल्म दर फिल्म बेहतर तो हो रही हैं, लेकिन अभी उन्हें बहुत सीखना बाकी है। खास तौर पर हिंदी उच्चारण में सुधार की जरूरत है।
कुणाल खेमू असर छोड़ते हैं। जब उनका किरदार उभर कर सामने आता है तो फिल्म का स्तर ऊंचा होता है। अनिल कपूर जितने पॉवरफुल एक्टर हैं उतना दमदार उनका किरदार नहीं है।
कुल मिलाकर 'मलंग' तब ही पसंद आ सकती है जब कम उम्मीद के साथ इसे देखा जाए।