वर्ष 2012 में रिलीज़ हुई सन ऑफ सरदार न तो बड़ी हिट थी और न ही कोई यादगार फिल्म कि उसका सीक्वल बनाना जरूरी लगे। लेकिन स्क्रिप्ट्स की कमी से जूझ रहे बॉलीवुड निर्माता अब ऐसी भूली-बिसरी फिल्मों का भी सीक्वल लेकर आ जाते हैं। सन ऑफ सरदार 2 भी कुछ ऐसा ही उदाहरण है, रिश्तों की दरार, झूठ और फैमिली ड्रामे के ताने-बाने के साथ, जिसमें कॉमेडी का तड़का तो है, लेकिन स्वाद अधूरा सा लगता है।
सन ऑफ सरदार 2 में इस बार कहानी की नींव रिश्तों की टूटन, झूठ और फैमिली ड्रामे पर टिकी है, जिसमें कॉमेडी का तड़का जरूर है, लेकिन ज़ायका उतना नहीं जो लंबे समय तक मुंह में रहे।
कहानी घूमती है जस्सी (अजय देवगन) के इर्दगिर्द, जो भारत में अपनी मां (डॉली अहलूवालिया) के साथ रहता है, जबकि उसकी पत्नी डिंपल (नीरू बाजवा) स्कॉटलैंड में रहती। जस्सी जब डिंपल से मिलने स्कॉटलैंड पहुंचता है, तो उसका यह जान कर दिल टूट जाता है कि डिंपल उसको तलाक दे रही है। अब वापस भारत लौटकर मां को क्या बताए?
इसी उलझन में वह स्कॉटलैंड में किराये पर एक घर लेता है, जो राबिया (मृणाल ठाकुर), गुल (दीपक डोबरियाल, जो अब ट्रांसवुमन हैं), मेहविश (कुब्रा सैत) और राबिया की बेटी सबा (रोशनी वालिया) का है। सिचुएशन ऐसी बनती है कि जस्सी को सबा का फर्जी बाप बनना पड़ता है और झूठ के इस जाल में हास्य की परिस्थितियां निर्मित होती हैं।
सन ऑफ सरदार 2, तुर्की की फिल्म 'Aile Arasinda' से प्रेरित है, जिसे जगदीप सिंह सिद्धू व मोहित जैन ने भारतीय दर्शकों के लिए ढालने की कोशिश की है। माना कि ऐसी फिल्म में लॉजिक की बात नहीं करना चाहिए, लेकिन इतनी भी मत फेंको की दर्शकों को झुंझलाहट होने लगे।
कहानी की लॉजिक से ज्यादा दूरी और जरूरत से ज्यादा झूठ-फरेब फिल्म को पहले हाफ में कमजोर बनाते हैं। कई कॉमिक सीन फ्लैट पड़ जाते हैं। फिल्म का पहला घंटा तो बहुत ही सुस्त है और दर्शकों को इस बात से तालमेल बैठाने में परेशानी होती है कि आखिर हो क्या रहा है। बातों को जरूरत से ज्यादा खींचा गया है।
दूसरे हाफ में जैसे-जैसे किरदारों की सच्चाइयाँ सामने आती हैं, हंसी का माहौल जमता है और अंतिम 30 मिनट में फिल्म कुछ हद तक अपनी लय पकड़ती है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। दर्शक फिल्म में अपनी रूचि खो बैठते हैं।
बहुत ज्यादा कैरेक्टर्स और सबप्लॉट्स होने से भी मामला गड़बड़ा जाता है क्योंकि इन बातों को ठीक से संभाला नहीं गया। कुछ किरदार और सब प्लॉट उद्देश्यहीन लगते हैं क्योंकि इसे ठीक से डेवलप ही नहीं किया गया। कुछ सीन उम्दा हैं जो दर्शकों को हंसाते हैं, लेकिन इनकी संख्या कम है।
विजय कुमार अरोरा का निर्देशन औसत दर्जे का है। जैसा उन्होंने फिल्म को अंतिम मिनटों में बनाया, वैसा प्रभाव वे पूरी फिल्म में पैदा करते तो बात ही कुछ और होती। कॉमेडी कुछ जगह फोर्स्ड लगती है और ऐसे दृश्यों से निर्देशकों को बचना चाहिए।
अभिनय की बात की जाए तो रवि किशन और दीपक डोबरियाल फिल्म के बाद याद रहते हैं। राजा संधू के रोल में रवि किशन जबरदस्त हैं, खासतौर पर उनकी डायलॉग डिलीवरी और देसी अंदाज दर्शकों को गुदगुदाता है। गुल के रूप में दीपक डोबरियाल सरप्राइज पैकेज हैं। ट्रांसजेंडर किरदार को उन्होंने मजे लेकर निभाया है।
लीड एक्टर अजय देवगन और मृणाल ठाकुर की बात की जाए तो अजय का अभिनय तो ठीक है, लेकिन स्क्रिप्ट की कमियों के चलते उनका किरदार निखर नहीं पाया। मृणाल ठाकुर का डांस और स्क्रीन प्रेजेंस अच्छा है, पर किरदार अधूरा लगता है।
शरत सक्सेना, चंकी पांडे, संजय मिश्रा, कुब्रा सैत, मुकुल देव, डॉली अहलूवालिया सहित कुछ कलाकारों का काम उम्दा तो कुछ का औसत है।
संगीत में कुछ खास बात नहीं है। कुछ गानों का फिल्मांकन अच्छा है और इसका श्रेय सिनेमाटोग्राफर असीम बजाज को जाता है, जिन्होंने स्कॉटलैंड की वादियों से लेकर पंजाबी ठाठ-बाट तक को बखूबी फिल्माया है। बैकग्राउंड स्कोर और एडिटिंग ठीक-ठाक हैं, लेकिन लंबाई थोड़ी कम की जा सकती थी। फिल्म के संवाद उम्दा हैं।
रवि किशन और दीपक डोबरियाल की परफॉर्मेंस, आखिरी का आधा घंटा, खूबसूरत लोकेशन और कॉस्ट्यूम्स फिल्म के प्लस पाइंट्स हैं, लेकिन पहला धीमा और उबाऊ हाफ, कमजोर पटकथा और जरूरत से ज्यादा किरदार प्लस पॉइंट्स के प्रभाव को कम करते हैं।
निर्देशक: विजय कुमार अरोरा
फिल्म: SON OF SARDAAR 2 (2025)
गीत: शब्बीर अहमद, खरा और सुकृति भारद्वाज, जानी, प्रणव वत्स, मल्कित सिंह, अरमान शर्मा