थार फिल्म समीक्षा: वेस्टर्न स्टाइल में बनी देसी फिल्म

समय ताम्रकर

शनिवार, 7 मई 2022 (15:32 IST)
थार वेस्टर्न स्टाइल में बनी देसी फिल्म है। ये शोले के दौर में बनी फिल्मों की याद दिलाती है। निर्देशक राज सिंह चौधरी ने एक सामान्य सी कहानी को अच्छे से पेश किया है जिससे दर्शक फिल्म से अंत तक बंधे रहते हैं। लोकेशन्स को इस फिल्म का हीरो कहा जा सकता है, जो मुख्य पात्रों के साथ बिना संवाद के कई बात कह जाते हैं और माहौल बनाते हैं। 
 
कहानी 1985 में सेट है। सिद्धार्थ (हर्षवर्धन कपूर) नामक युवा राजस्थान के भीतरी इलाके में स्थित एक गांव में आता है। वह बहुत कम बोलता है। जिस होटल में वह रोज जाता है उसके मालिक का कहना है कि 'चाय', कचौड़ी' और 'कितने हुए', ये वाक्य ही उसने सिद्धार्थ के मुंह से सुने हैं। ग्रामीणों को वह इंग्लिश फिल्म का हीरो लगता है।
 
गांव में एक हत्या हुई है, जिसकी तहकीकात इंस्पेक्टर सुरेखा सिंह (अनिल कपूर) और उनका सहायक भूरे (सतीश कौशिक) कर रहे हैं। सिद्धार्थ से जब सुरेखा उसके गांव में आने का उद्देश्य पूछता है तो वह अपने आपको एंटीक डीलर बताता है और कहता है कि उसके पास खनन का लाइसेंस है। 
 
गांव के कुछ पुरुष शहरों में कमाई करने गए हैं और महीनों से नहीं लौटे हैं। केसर (फातिमा सना शेख) का पति महीनों बाद घर लौटता है, लेकिन कुछ दिनों से वह और उसके दो साथी लापता हैं। 
 
सिद्धार्थ गांव में क्यों आया है? केसर का पति कहां गायब हो गया है? सुरेखा सिंह मामले की तह तक पहुंच पाएगा या नहीं? ये सारे सवालों के जवाब फिल्म के अंत में मिलते हैं। 
 
कहानी में कुछ 'अगर-मगर' हैं जो फिल्म देखते समय दिमाग में कौंधते हैं, लेकिन इसके बावजूद यदि आपकी फिल्म में रूचि बनी रहती है तो कसी स्क्रिप्ट, लोकेशन और एक्टिंग के कारण। लैंडस्केप को फिल्म में बेहतरीन तरीके से शूट किया गया है। फिल्म में आउटडोर शूटिंग ज्यादा है, इससे यह निखर गई है। 
 
उड़ती धूल, चट्टानें, मिट्टी से सनी जीप, पुराने घर, निठल्ले बैठे लोग, पुरुषों का इंतजार करती महिलाएं, ये जिस तरह का माहौल बनाते हैं वो फिल्म से कनेक्ट करने में अहम रोल निभाता है। कहानी में पाकिस्तान से होने वाली स्मगलिंग, डकैत वाला एंगल भी डाला गया है, जो शुरू में अनुपयोगी सा लगता है, लेकिन बाद में उपयोगी साबित होता है। 
 
निर्देशक राज सिंह चौधरी ने फिल्म का टोन तीखा रखा है। गालियां, हिंसा और सेक्स से परहेज नहीं किया है। पैरों में कीलें ठोंकना, कान काटना, उंगली काटना, घावों में घुसकर चूहों का खून पीना जैसे हिंसक दृश्य फिल्म में रखे हैं जो दहला देते हैं। कुछ जंगली किस्म के पुरुष भी हैं जिनके लिए महिला सिर्फ वस्तु है। 
 
फिल्म में संवाद कम हैं और संवाद के बीच की जगहों को राज सिंह ने अपने कुशल निर्देशन से बढि़या तरीके से संवारा है। हालांकि जिस तरह से राज ने फिल्म शुरू की थी, अंत तक आते-आते वे वो स्तर संभाल नहीं पाए और इसमें कहानी का ज्यादा दोष है। 
 
फिल्म का टेक्नीकल डिपार्टमेंट मजबूत है। श्रेया देव दुबे ने फिल्म को खूबसूरती के साथ फिल्माया है। आरती बजाज की एडिटिंग हमेशा की तरह शानदार है। बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म की थीम के अनुरुप है। अनुराग कश्यप द्वारा लिखे गए संवाद उम्दा हैं। 
 
अनिल कपूर के लिए अभिनीत करने के लिए आसान किरदार था। हर्षवर्धन कपूर के पास संवाद कम थे और ज्यादातर समय कैमरा उनके चेहरे पर था, इस तरह के किरदार निभाना आसान नहीं होते, वे अपने कैरेक्टर में त्रीवता नहीं ला पाए। फातिमा सना शेख ने चौंकाया है और उनके चेहरे के भाव देखने लायक है, खासतौर पर हर्षवर्धन के साथ उनकी पहली मुलाकात वाले सीन में उनकी एक्टिंग शानदार है। सतीश कौशिक और फिल्म के सारे सह कलाकारों ने अपना काम बखूबी किया है। 
 
थार एक डार्क फिल्म है जो किरदारों, लोकेशन्स और निर्देशन के कारण प्रभाव छोड़ती है। 

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