Jersey Movie Review जर्सी फिल्म समीक्षा: क्रिकेट के रोमांच पर इमोशन भारी
शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022 (15:23 IST)
Jersey Movie Review 2019 में तेलुगु में बनी जर्सी को इसी नाम से हिंदी में बनाया गया है। निर्देशक भी वही हैं। यह फिल्म कई बातों को समेटे हुए है। इसमें एक क्रिकेट खिलाड़ी का संघर्ष है। खेलों में राजनीति है। खिलाड़ी के सपने पूरा न होने पर उसकी कुंठा है। मध्यमवर्गीय परिवार के संघर्ष हैं। नाकामी से कामयाब होने का सफर है। पति-पत्नी, पिता-पुत्र और कोच-खिलाड़ी के रिश्ते को भी फिल्म में रेखांकित किया गया है। एक असफल व्यक्ति खुद और परिवार के लिए कितना बड़ा तनाव बन जाता है, लोगों का उसके प्रति कैसे नजरिया बदल जाता है ये सब बातें इमोशन और ड्रामा के साथ 'जर्सी' में दर्शाई गई है।
कहानी का केंद्र बिंदु चंडीगढ़ में रहने वाले अर्जुन तलवार (शाहिद कपूर) है। वह भारतीय क्रिकेट टीम में आने का दावेदार था, लेकिन कुछ कारणों से उसका सिलेक्शन नहीं हो पाया। उसने अपने शिखर कर ही क्रिकेट खेलना छोड़ दिया। अब वह 36 बरस का हो चुका है। स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी मिली थी वो भी हाथ से निकल गई। पैसों की तंगी से जूझ रहा है। अपने बेटे के लिए जर्सी खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। अर्जुन का बेटा अपने पापा में हीरो देखता है और उसकी खातिर एक बार फिर अर्जुन बल्ला उठा लेता है।
फिल्म को गौतम तिन्ननुरी ने लिखा और निर्देशित किया है। तेलुगु फिल्म को 2019 में बेस्ट फीचर फिल्म (तेलुगु) और बेस्ट एडिटिंग का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। गौतम ने हिंदी वर्जन में कुछ बदलाव किए हैं। जैसे मूल फिल्म में हीरो को चालीस प्लस दिखाया था, यहां वह 36 वर्ष का हो गया है। साथ ही अर्जुन और उसके बेटे करण (रोनित कामरा) के रिश्ते को भी थोड़ा अलग तरीके से दर्शाया गया है।
जर्सी उतार-चढ़ाव वाली फिल्म है जिसका मुख्य आधार इमोशन है। ये इमोशन्स आपको प्रेरित करते हैं, सहानुभूति जगाते हैं और भावुक भी करते हैं। गौतम तिन्ननुरी ने बहुत सारे इमोशनल सीन रखे हैं, लेकिन जरूरी नहीं है कि सभी सीन दर्शकों पर असर छोड़े। कुछ सीन ही प्रभाव छोड़ पाते हैं और कुछ सीन देख लगता है कि इनके जरिये बेवजह दर्शकों को इमोशनल करने की कोशिश की जा रही है।
फिल्म शुरुआत में बेहद धीमी और बोरिंग है। 30-40 मिनट बाद ही रफ्तार पकड़ती है और दर्शकों में रूचि पैदा करती है। इस दौरान अर्जुन की बेचारगी और पारिवारिक जिंदगी में कटुता को दिखाया गया है। हालांकि बीच-बीच में अर्जुन के स्वर्णिम दिनों की झलक भी दिखाई गई है।
पहले हाफ से दूसरा हाफ बेहतर है और कहानी रफ्तार पकड़ती है। क्लाइमैक्स में ट्विस्ट दिए गए हैं और ये इमोशनल करते हैं। कुछ दृश्य बहुत अच्छे बन पड़े हैं, खासतौर पर शाहिद और पंकज कपूर के बीच के सीन। गौतम की कहानी तो उम्दा है, लेकिन कुछ बातों को उन्होंने बेवजह लंबा खींचा है, जैसे जर्सी वाला प्रसंग। इससे फिल्म की लंबाई बढ़ी और प्रभाव कम हुआ। फिल्म में क्रिकेट मैच के दृश्य भी हैं, लेकिन रोमांच पैदा नहीं कर पाते।
निर्देशक के रूप में गौतम तिन्ननुरी ने क्रिकेट पर कम और फैमिली ड्रामा पर ज्यादा फोकस किया है। उन्होंने अपने कलाकारों से अच्छा काम भी लिया है और कुछ दृश्यों में दर्शकों को भावुक भी किया है। फिल्म की लंबाई पर उन्हें नियंत्रण रखना था।
'रिश्वत लेने के आरोप में नौकरी गई थी, अब जब तक रिश्वत नहीं देगा नौकरी वापस नहीं मिलेगी'- जैसे कुछ बेहतरीन संवाद सुनने को मिलते हैं जिन्हें सिद्धार्थ और गरिमा ने लिखा है। फिल्म में एक-दो गाने अच्छे हैं। अनिल मेहता का कैमरा वर्क बढ़िया है।
शाहिद कपूर को ऐसा किरदार मिला है जो हर कलाकार की चाहत होती है। उन्हें हर रंग दिखाने का अवसर मिला है और वे इस पर खरे भी उतरे हैं। क्रिकेट के दृश्यों में भी उनकी मेहनत दिखाई देती है। मृणाल ठाकुर फिल्म दर फिल्म निखरती जा रही हैं और अपने किरदार की डिमांड अनुरूप उन्होंने काम किया है। पंकज कपूर बेहतरीन अभिनेता हैं और उनकी संवाद अदायगी जबरदस्त है। बाल कलाकार रोनित कामरा दर्शकों का दिल जीतते हैं।
जर्सी से जुड़े सभी लोगों की मेहनत फिल्म में नजर आती हैं, लेकिन फिल्म में कसावट और चमक नहीं है।