बरसों पहले सई परांजपे ने ‘कथा’ नामक फिल्म बनाई थी, जिसमें उन्होंने एक चाल में रहने वाले लोगों जीवनशैली और सुख-दु:ख को आधार बनाया था। उसी प्रकार फिल्म ‘देहली हाइट्स’ में देहली हाइट्स बिल्डिंग में रहने वाले लोगों को कहानी है। ‘कथा’ में जहाँ मध्यवर्गीय लोग थे, वहीं ‘देहली हाइट्स’ में ऊँचे तबके के लोग हैं।
मुख्य कहानी है अबी (जिमी शेरगिल) और सुहाना (नेहा धूपिया) की। ये पति पत्नी एक दूसरे को बेहद चाहते हैं। दोनों जिस कंपनी में काम करते है वे आपस में प्रतिद्वंद्वी रहती है। वे अपने काम और कैरियर के प्रति इतने सजग रहते है उनकी कंपनियों के बीच की प्रतिद्वंद्विता उनके संबंधों पर भी हावी होने लगती है और उनके रिश्तों में दरार आने लगती है। वे एक दूसरे पर शक करने लगते हैं।
इस मुख्य कहानी के साथ कई छोटी-मोटी कहानी गुंथी हुई है जो बीच-बीच में आती जाती रहती है। मसलन एक बेवफा पति जो अपनी मासूम बीवी के साथ धोखा करता रहता है। एक प्रॉपर्टी ब्रोकर जिसे अपनी बेटी की शादी की चिंता र्है। क्रिकेट पर सट्टा लगाने वाला सटोरिया और टीनएजर्स लड़कों की कहानी के जरिए हास्य पैदा करने की कोशिश की है। ऐसा लगता है कि इन कहानियों को अलग से फिल्माकर मुख्य कहानी के बीच-बीच में डाल दिया गया हो क्योंकि इनमें आपस में कोई तारतम्य नहीं है।
ये छोटी-छोटी कहानियाँ जिनका अंत सबको पता रहता है टीवी धारावाहिक के रूप में अच्छी लगती है लेकिन फिल्म के साँचे में यह फिट नहीं बैठ पाती है। सभी कहानियां औसत किस्म की है और दर्शक किसी भी कहानी से जुड़ाव महसूस नहीं कर पाता है।
शुरुआती एक घंटे तक तो कहानी चलती हुई नजर आती है लेकिन इसके बाद हांफने लगती है। चूंकि फिल्म दो-ढाई घंटे की होनी चाहिए, इसलिए इसे आखरी घंटे में खींचा गया है। फिल्म में कहने को बहुत कम था इसलिए ढेर सारे दृश्यों के माध्यम से कहानी को आगे बढ़ाया गया है। पूरी फिल्म दिल्ली में फिल्माई गई है और इस मेट्रो शहर के कल्चर और वातावरण को फिल्म उम्दा तरीके से प्रस्तुत करती है।
निर्देशक आनंद कुमार कहानी चयन पर जरूर सवाल उठाया जा सकता है पर उनका प्रस्तुतिकरण अच्छा है। उनके निर्देशन में संभावनाएं नजर आती है। अभिनय में जिमी शेरगिल, ओमपुरी, रोनित रॉय और अन्य किरदारों ने अपनी-अपनी भूमिका से न्याय किया है। जहाँ तक नायिका नेहा धूपिया का सवाल है उन्होंने अभिनय करने की भरसक कोशिश की है जो पर्दे पर साफ नजर आती है। नेहा और जिमी की जोड़ी बिलकुल नहीं जमती क्योंकि नेहा डीलडौल में जिमी पर बहुत भारी पड़ती है।
रब्बी शेरगिल ने गीत लिखने के साथ-साथ संगीत भी दिया है जो ठीकठाक है। निर्माता ने निर्देशक को बजट कम दिया है जिसका असर फिल्म पर दिखाई देता है।