हाईजैक : हाई कम, लो ज्यादा

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निर्माता : दिनेश विजान - कुणाल शिवदासानी
निर्देशक : कुणाल शिवदासानी
संगीत : ‍ जस्टिन येसुदास, उदय कुमार निंजौर
कलाकार : शाइनी आहूजा, ईशा देओल, केके रैना, मोना अम्बेगाँवकर, कावेरी झा, मुश्ताक काक
रेटिंग : 2/5

‘हाईजैक’ फिल्म के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि किस तरह की कहानी हमें फिल्म में देखने को मिलेगी। यहाँ कहानी से ज्यादा प्रस्तुतीकरण महत्वपूर्ण हो जाता है। एक घटना पर फिल्म बनाना आसान नहीं है। दर्शक को बाँधकर रखना पड़ता है। पटकथा रोमांच से भरी और एकदम कसी हुई होनी चाहिए। ‘हाईजैक’ में भी रोमांच है, लेकिन ऐसे अवसर कम आते हैं, साथ ही निर्णायक मौकों पर फिल्म की कहानी कमजोर पड़ जाती है।

कहानी है विक्रम (शाइनी आहूजा) की, जो चंडीगढ़ एअरपोर्ट पर मेंटेनेंस ऑफिसर है। विक्रम अपनी पत्नी को खो चुका है और उसकी जिंदगी अपनी बेटी के इर्दगिर्द घूमती है। उसकी बेटी दिल्ली से अमृतसर जाने के लिए जिस विमान में बैठती है उसका अपहरण हो जाता है।

आतंकवादी विमान को दुबई ले जाना चाहते हैं। चूँकि विमान में इतना ईंधन नहीं रहता है इसलिए उसे चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर उतारा जाता है। आतंकवादी चाहते हैं कि उनके साथी (केके रैना) को रिहा किया जाए और इस बारे में वे सरकार से बात करते हैं।

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विक्रम अपनी बेटी के बारे में चिंतित हो जाता है। चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर विमान के उतरने से उसे विमान में घुसने का अवसर मिल जाता है। विमान में घुसकर वह दो आतंकवादियों को मार गिराता है। इस काम में उसकी मदद एयरहोस्टेस सायरा (ईशा देओल) करती है।

केके को रिहा कर दिया जाता है और वह हाईजैक हुए विमान में चढ़ जाता है। बचे हुए आतंकवादियों से विक्रम कैसे निपटता है ये फिल्म का क्लायमैक्स है।

कुणाल शिवदासानी ने फिल्म के निर्देशन के साथ लेखक के रूप में दोहरी जिम्मेदारी निभाई है। एक निर्देशक के रूप में कम बजट होने के बावजूद उन्होंने अच्छा काम किया है। कहानी को परदे पर अच्छी तरह से पेश किया है, लेकिन लेखक के रूप में यदि वे कुछ घटनाक्रम को विश्वसनीय तरीके से पेश करते तो फिल्म का प्रभाव और बढ़ सकता था।

एयरपोर्ट पर हाईजैक विमान खड़ा है, जिस पर सभी की नजर है उस विमान में विक्रम का आसानी से घुस जाना गले नहीं उतरता। विक्रम बड़ी आसानी से विमान के अंदर प्रवेश कर लेता है। इसका पता न आतंकवादियों को चलता है और न ही पुलिस को। विमान के अंदर विक्रम दो आतंकवादियों को मार गिराता है और अन्य आतंकवादी इसे बिलकुल भी गंभीरता से नहीं लेते, जबकि उन्हें बेहद क्रूर दिखाया गया है। फिल्म का अंत भी कुछ ज्यादा ही फिल्मी हो गया है।

फिल्म की कहानी एक बड़े स्टार की माँग करती है, लेकिन बजट कम होने से शाइनी आहूजा से काम चलाया गया है। शाइनी ने जितना बेहतर अभिनय उनसे हो सकता था, उन्होंने किया। ईशा देओल को उनके नाम के अनुरूप फुटेज नहीं मिला। यही हाल शाइनी की पत्नी बनी कावेरी झा का रहा। आतंकवादी बने केके रैना, सत्यजीत और मुश्ताक काक का अभिनय प्रभावशाली है। विमान के यात्रियों के रूप में कोई परिचित चेहरा नहीं है। कुछ उम्दा चरित्र अभिनेताओं को लिया जाता तो फिल्म ज्यादा असर छोड़ती।

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फिल्म में गीत-संगीत की गुंजाइश कम थी, फिर भी जस्टिन-उदय द्वारा संगीतबद्ध किए गए गीत ठीक-ठाक हैं। जहाँगीर चौधरी को ज्यादातर समय विमान के अंदर शॉट लेने थे, लेकिन उन्होंने कैमरा एंगल और मूवमेंट के जरिए विविधताएँ पेश की। आउटडोर शॉट भी उन्होंने बेहतरीन तरीके से फिल्माए।

कुल मिलाकर कहा जाए तो ‘हाईजैक’ एक औसत फिल्म है।