इतने में एक बुढ़िया लाठी टेकते वहां आई। बुद्धदेव को प्रणाम कर वह बोली, ' भगवन्, जिस समय आपके आने का समाचार मुझे मिला, उस समय मैं यह अनार खा रही थी। मेरे पास कोई दूसरी चीज न होने के कारण मैं इस अधखाए फल को ही ले आई हूं। यदि आप मेरी इस तुच्छ भेंट स्वीकार करें, तो मैं अहोभाग्य समझूंगी।' भगवान बुद्ध ने दोनों हाथ सामने कर वह फल ग्रहण किया।